Prayagraj News : महाकुंभ में जंगम संन्यासियों का प्रवेश, शिवभक्ति और धर्म की अनोखी परंपरा का स्मरण

UPT | कथा सुनाते जंगम संन्यासी।

Jan 06, 2025 20:22

महाकुंभ में भगवान शिव और माता पार्वती की कथा सुनाने वाले संन्यासियों ने मेला क्षेत्र में प्रवेश कर लिया है। आज हम आपको इन जंगम संन्यासियों के इतिहास और महत्व से रूबरू कराएंगे।

Prayagraj News : महाकुंभ 2025 का आयोजन प्रयागराज में भव्यता के साथ हो रहा है। इस धार्मिक आयोजन में देश-विदेश से लाखों श्रद्धालु और साधु-संत भाग ले रहे हैं। हर वर्ष की तरह इस महाकुंभ में आज जंगम संन्यासियों ने महाकुंभ में अपनी उपस्थिति दर्ज कराई। मान्यता है और इन साधुओं का कहना कि इनकी उत्पति भगवान शिव की जांघ से हुई है। जिसके बाद से इन्हें जंगम की उपाधि मिली। इनका काम देश भर में शिव और माता पार्वती की कथा सुनना है।    जंगम संन्यासियों का परिचय और महत्व  जंगम धार्मिक भिक्षुओं का एक प्रमुख शैव संप्रदाय है। इनका नाम "जंगम" का अर्थ है "चलता हुआ लिंग," जो शिव की उपस्थिति को हर स्थान पर ले जाने वाले साधकों का प्रतीक है। जंगम संन्यासियों को वीरशैव परंपरा का हिस्सा माना जाता है और यह भगवान शिव के प्रति अपनी अटूट भक्ति और समाज में धर्म के प्रचार-प्रसार के लिए विख्यात हैं। जंगम संन्यासियों का उल्लेख प्राचीन ग्रंथों, जैसे बसव पुराण, में मिलता है। इनका इतिहास शिवभक्ति और धर्म की सच्ची भावना के प्रचार-प्रसार का साक्षी है। मान्यता है कि शिव ने जंगम ऋषियों को अपने माथे के पसीने से उत्पन्न किया था और उन्हें अमरता का आशीर्वाद दिया।

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 जंगम संन्यासियों का ऐतिहासिक योगदान जंगम साधुओं ने प्राचीन काल से लेकर आज तक समाज में धर्म और नैतिक मूल्यों को स्थापित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।   1. आध्यात्मिक संदेश: जंगम संन्यासी शिव और पार्वती की पवित्र कहानियां सुनाकर भक्ति और साधना का संदेश फैलाते हैं। 2. शिव मंदिरों के पुजारी: जंगम शिव मंदिरों में पूजा-अर्चना करते हैं और धार्मिक अनुष्ठानों की अध्यक्षता करते हैं। 3. समाज सुधारक: वीरशैव आंदोलन के जरिए उन्होंने जातिवाद और भेदभाव को समाप्त करने का प्रयास किया। 4. शिवभक्ति का प्रचार: भारत के विभिन्न राज्यों, जैसे कर्नाटक, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, और उत्तर प्रदेश, में जंगम परंपरा का गहरा प्रभाव है।    जंगम संन्यासियों का वैश्विक प्रभाव जंगम साधुओं की परंपरा न केवल भारत, बल्कि नेपाल और अन्य देशों में भी फैली हुई है।
नेपाल में जंगम मठ : 9वीं शताब्दी में स्थापित इन मठों ने वीरशैव परंपरा को नेपाल में प्रचारित किया।
काशी का जंगमवाड़ी मठ : उत्तर प्रदेश के काशी में स्थित यह मठ 8वीं शताब्दी से वीरशैव धर्म का प्रमुख केंद्र है।

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   महाकुंभ में जंगम साधुओं का प्रवेश  महाकुंभ में जंगम संन्यासियों का छावनी में प्रवेश पारंपरिक शोभायात्रा के साथ हुआ। वाद्ययंत्रों, शंखध्वनि, और मंत्रोच्चार के बीच इन साधुओं ने शिव का गुणगान करते हुए श्रद्धालुओं को आशीर्वाद दिया। उनकी उपस्थिति ने महाकुंभ को और भी आध्यात्मिक बना दिया।   जंगम संन्यासियों का धर्म और समाज में योगदान धर्म शिक्षा : जंगम साधु समाज को आगमिक ज्ञान और शिवभक्ति का पाठ पढ़ाते हैं। समाज सेवा : उन्होंने अपने जीवन को समाज के कल्याण के लिए समर्पित कर दिया है। परंपराओं का संरक्षण : जंगम संन्यासी शिव मंदिरों में अनुष्ठानों की परंपराओं को जीवित रखते हैं।   महाकुंभ में जंगम परंपरा का संदेश जंगम संन्यासियों का महाकुंभ में प्रवेश न केवल उनकी ऐतिहासिक और धार्मिक परंपरा को जीवंत करता है, बल्कि शिवभक्ति और समाज सेवा का संदेश भी देता है। यह परंपरा हमें धर्म, समानता, और भक्ति के मूल्यों को याद दिलाती है। जंगम संन्यासियों की उपस्थिति महाकुंभ को और भी खास बनाती है। उनका इतिहास और योगदान हमें भारतीय संस्कृति की विविधता और गहराई का अहसास कराता है।

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