नागा संन्यासी भारतीय संस्कृति और धर्म की एक अनोखी धारा का प्रतिनिधित्व करते हैं। इन्हें 8वीं शताब्दी में आदि शंकराचार्य ने दशनामी परंपरा के तहत संगठित किया था। वे न केवल धार्मिक तपस्वी होते हैं, बल्कि आवश्यकता पड़ने पर योद्धा के रूप में भी कार्य करते हैं।