Prayagraj District
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प्रयागराज का इतिहास : 1853 में बदल गई धर्म और अध्यात्म के नगर की पहचान 

UP Times | History of Prayagraj

Dec 20, 2023 13:56

यह क्षेत्र पूर्व में मौर्य एवं गुप्त साम्राज्य के अंश एवं पश्चिम से कुषाण साम्राज्य का अंश रहा है। प्रयागराज उत्तर प्रदेश का एक जिला है जोकि एक प्रशासनिक और शैक्षिक शहर भी है जहां पर गंगा, यमुना तथा लुप्त सरस्वती का संगम है जिसे त्रिवेणी कहा जाता है। यहां दुनिया के सबसे बड़े मेले का आयोजन होता है।

Short Highlights
  • 1853 में बदल गई धर्म और अध्यात्म के नगर प्रयागराज की पहचान 
  • स्वतंत्रता आंदोलन क्रांति में प्रयागराज का योगदान 
Prayagraj News : यह क्षेत्र पूर्व में मौर्य एवं गुप्त साम्राज्य के अंश एवं पश्चिम से कुषाण साम्राज्य का अंश रहा है। प्रयागराज उत्तर प्रदेश का एक जिला है जोकि एक प्रशासनिक और शैक्षिक शहर भी है जहां पर गंगा, यमुना तथा लुप्त सरस्वती का संगम है जिसे त्रिवेणी कहा जाता है। यहां दुनिया के सबसे बड़े मेले का आयोजन होता है। प्रयाग विशेषकर हिन्दुओं के लिए पवित्र स्थल है। प्रयाग (वर्तमान में प्रयागराज) में आर्यों की प्रारंभिक बस्तियां स्थापित हुई थी।
 

गुप्त साम्राज्य से अंग्रेज़ों का शासनकाल

भारतवासियों के लिए प्रयाग एवं वर्तमान कौशाम्बी जिले के कुछ भाग यहां के महत्वपूर्ण क्षेत्र रहे हैं। यह क्षेत्र पूर्व में मौर्य एवं गुप्त साम्राज्य के अंश एवं पश्चिम से कुषाण साम्राज्य का अंश रहा है। बाद में ये कन्नौज साम्राज्य में आया। 1526 में मुगल साम्राज्य के भारत पर पुनराक्रमण (पराजित)के बाद से इलाहाबाद मुगलों के अधीन आया। अकबर ने यहां संगम के घाट पर एक वृहत दुर्ग (महान किला) निर्माण करवाया था। इस दौरान शहर में मराठों के आक्रमण भी होते रहे थे। इसके बाद अंग्रेज़ों के अधिकार में आ गया। 1765 में इलाहाबाद के किले में थल-सेना के गैरीसन दुर्ग की स्थापना की थी। 1857 के प्रथम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में इलाहाबाद भी सक्रिय रहा। 1904 से 1949 तक इलाहाबाद संयुक्त प्रांतों की राजधानी था।
 

गैरीसन किले की स्थापना

1775 में इलाहाबाद के किले में थल-सेना के गैरीसन किले की स्थापना की थी।
 

ब्रिटिश का शासन 1801 ई०

1801 ई० में प्रयागराज का ब्रिटिश इतिहास शुरू हुआ तब अवध के नवाब ने इसे ब्रिटिश शासन को सौंप दिया। ब्रिटिश सेना ने अपने सैन्य उद्देश्यों के लिए किले का इस्तेमाल किया।
 

स्वतंत्रता आंदोलन क्रांति में प्रयागराज का योगदान 

इलाहाबाद की भारत के स्वतंत्रता आंदोलन में भी अहम भूमिका रही है। कम लोग ही जानते हैं कि प्रयागराज शहर आज़ादी के युद्ध का केंद्र था और बाद में अंग्रेज़ों के खिलाफ भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन 1857 ई० का गढ़ बन गया। राष्ट्रीय नवजागरण का उदय इलाहाबाद की भूमि पर हुआ तो गांधी युग में यह नगर प्रेरणा केंद्र बना। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के संगठन और उन्नयन में भी इस नगर का योगदान रहा है। सन 1857 के विद्रोह का नेतृत्व यहां पर लियाकत अली खान ने किया था। 

कांग्रेस पार्टी के तीन अधिवेशन यहां पर 1888,1892 और 1910 में जॉर्ज यूल,व्योमेश चंद्र बनर्जी और सर विलियम वेडरबर्न की अध्यक्षता में हुए। महारानी विक्टोरिया का 1 नवम्बर 1858 का प्रसिद्ध घोषणा पत्र यहीं स्थित ‘मिंटो पार्क’ में तत्कालीन वायसराय लॉर्ड कैनिंग द्वारा पढ़ा गया था। नेहरू परिवार का पैतृक आवास ‘स्वराज भवन’और ‘आनंद भवन’ यहीं पर है। नेहरू-गांधी परिवार से जुडे़ होने के कारण इलाहाबाद ने देश को प्रथम प्रधानमंत्री भी दिया।

आज़ादी के प्रथम संग्राम 1857 के पश्चात ईस्ट इंडिया कंपनी ने मिंटो पार्क में आधिकारिक तौर पर भारत को ब्रिटिश सरकार को सौंप दिया था। इसके बाद शहर का नाम इलाहाबाद रखा गया तथा इसे आगरा-अवध संयुक्त प्रांत की राजधानी बना दिया गया।
 

राजनीति का गढ़

प्रयागराज शहर ब्रिटिश राज के खिलाफ़ भारतीय स्वाधीनता आंदोलन का केंद्र था जिसका आनंद भवन केंद्र बिंदु था। इलाहाबाद (वर्तमान में प्रयागराज)में महात्मा गांधी ने भारत को मुक्त करने के लिए अहिंसक विरोध का कार्यक्रम प्रस्तावित किया था। प्रयागराज ने स्वतंत्रता के पश्चात भारत की सबसे बड़ी संख्या में प्रधानमंत्री पद प्रदान किया है, जवाहर लाल नेहरू, लाल बहादुर शास्त्री, इंदिरा गांधी, राजीव गांधी, वी.पी.सिंह। पूर्व प्रधान मंत्री चंद्रशेखर इलाहाबाद विश्वविद्यालय के छात्र थे। 1904 से 1949 तक इलाहाबाद संयुक्त प्रांतों (अब, उत्तर प्रदेश) की राजधानी था।
 

इलाहाबाद उच्च न्यायालय की स्थापना

जब प्रयागराज में 1868 ई० इलाहाबाद उच्च न्यायालय की स्थापना हुई तभी से प्रयागराज न्याय का गढ़ बन गया।
 

कांग्रेस का वार्षिक अधिवेशन 

भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का वार्षिक अधिवेशन यहां दरभंगा किले के विशाल मैदान में 1888 एवं पुनः 1892 में हुआ था।
 

ऑल सेंट्स कैथेड्रल चर्च 

ब्रिटिश वास्तुकार सर विलियम ईमरसन ने कोलकाता में विक्टोरिया मेमोरियल डिजाइन करने से तीस साल पहले 1871 ई० में ऑल सेंट्स कैथेड्रल चर्च के रूप में एक भव्य स्मारक की स्थापना की।
 

इलाहाबाद विश्वविद्यालय की स्थापना 

इलाहाबाद विश्वविद्यालय की स्थापना सन् 1887 ई को एल्फ्रेड लायर की प्रेरणा से हुई थी। इस विश्वविद्यालय का नक्शा प्रसिद्ध अंग्रेज़ वास्तुविद इमरसन ने बनाया था। इलाहाबाद विश्वविद्यालय चौथा सबसे पुराना विश्वविद्यालय था। प्रयागराज भारतीय स्थापत्य परंपराओं के साथ संश्लेषण में बने कई विक्टोरियन और जॉर्जियाई भवनों में समृद्ध रहा है।
 

व्यवसाय की नींव प्रयागराज

देश का चौथा सबसे पुराना उच्च न्यायालय, जो कि 1866 में आगरा में अवस्थित हुआ,के 1869 में इलाहाबाद स्थानांतरित होने पर आगरा के तीन विख्यात एडवोकेट पंडित नन्दलाल नेहरू, पंडित अयोध्या नाथ और मुंशी हनुमान प्रसाद भी इलाहाबाद आए और विधिक व्यवसाय की नींव डाली। मोतीलाल नेहरू इन्हीं पंडित नंदलाल नेहरू जी के बड़े भाई थे। कानपुर में वकालत आरम्भ करने के बाद 1886 में मोतीलाल नेहरू वक़ालत करने इलाहाबाद चले आए और तभी से इलाहाबाद और नेहरू परिवार का एक अटूट रिश्ता आरम्भ हुआ।

‘इलाहाबाद उच्च न्यायालय’से सर सुन्दरलाल, मदन मोहन मालवीय,तेज बहादुर सप्रू, डॉ.सतीशचन्द्र बनर्जी, पी.डी.टंडन, डॉ.कैलाश नाथ काटजू, पंडित कन्हैया लाल मिश्र आदि ने इतिहास में अपनी अमिट छाप छोड़ी। उत्तर प्रदेश विधानमण्डल का प्रथम सत्र समारोह इलाहाबाद के थार्नहिल मेमोरियल हॉल में 8 जनवरी,1887 को आयोजित किया गया था।
 

1857 की क्रांति के बाद यहां 14 दिनों तक लहराया आज़ादी का झंडा     

धर्म और अध्यात्म के नगर प्रयागराज की पहचान 1853में बदल गई। जबकि मुगल शासक बादशाह अकबर ने यमुना के तट पर एक शानदार किले का निर्माण कराया और प्रयागराज का नाम बदलकर अल्लाहाबाद कर दिया। जिसके बाद कालान्तर में प्रयागराज इलाहाबाद के नाम से मशहूर हो गया। गुलामी के इस नाम के साथ प्रयागराज का वास्ता 435 वर्षों तक बना रहा, अंग्रेज़ी राज के दौरान प्रयागराज कई वर्षों तक संयुक्त प्रान्त की राजधानी के तौर पर भी जाना जाता रहा। 1857 की पहली आज़ादी की क्रांति में प्रयागराज चौदह दिनों तक अंग्रेज़ों की गुलामी से आज़ाद रहा।
 

435 साल बाद मिला प्राचीन नाम प्रयागराज

1947 में भारत की स्वतंत्रता के बाद कई बार उत्तर प्रदेश की भारतीय जनता पार्टी की अगुवाई वाली सरकारों द्वारा इलाहाबाद का नाम बदलकर प्रयागराज करने के प्रयास किए गए। 1992 में इसका नाम बदलने की योजना तब विफल हो गयी, जब तत्कालीन मुख्यमंत्री कल्याण सिंह को बाबरी मस्जिद विध्वंस प्रकरण के बाद अपने पद से त्यागपत्र देना पड़ा था। 2001 में तत्कालीन मुख्यमंत्री राजनाथ सिंह की सरकार के नेतृत्व में एक और बार नाम बदलने का प्रयास हुआ, जो अधूरा रह गया। 2018 में नगर का नाम बदलने का प्रयास आखिरकार सफल हो गया, 435 सालों की गुलामी को तोड़कर 18 अक्टूबर 2018 को प्रयागराज का पुर्नजन्म हुआ। योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व वाली सरकार ने आधिकारिक तौर पर इसका नाम बदलकर प्रयागराज कर दिया।
 

चन्द्रशेखर आज़ाद क्रांतिकारियों की शरणस्थली   

उदारवादी व समाजवादी नेताओं के साथ-साथ इलाहाबाद क्रांतिकारियों की भी शरणस्थली रहा है। चंद्रशेखर आज़ाद ने यहीं पर अल्फ्रेड पार्क में 27 फ़रवरी 1931 को अंग्रेज़ों से लोहा लेते हुए जॉन नॉट बावर और पुलिस अधिकारी विशेश्वर सिंह को घायल कर कई पुलिसजनों को मार गिराया औरं अंततः ख़ुद को गोली मारकर आजीवन आज़ाद रहने की कसम पूरी की। 1919 के रॉलेट एक्ट को सरकार द्वारा वापस न लेने पर जून,1920 में इलाहाबाद में एक सर्वदलीय सम्मेलन हुआ, जिसमें स्कूल, कॉलेजों और अदालतों के बहिष्कार के कार्यक्रम की घोषणा हुई, इस प्रकार प्रथम असहयोग आंदोलन और ख़िलाफ़त आंदोलन की नींव भी इलाहाबाद में ही रखी गई थी।
 

अल्फ्रेड पार्क

प्रयागराज में ही स्थित अल्फ्रेड पार्क भी कई युगांतरकारी घटनाओं का गवाह रहा है। राजकुमार अल्फ्रेड ड्यूक ऑफ़ एडिनबरा के प्रयागराज आगमन को यादगार बनाने हेतु इसका निर्माण किया गया था। पुनः इसका नामकरण चन्द्रशेखर आज़ाद की शहीद स्थली रूप में उनके नाम पर किया गया। इसी पार्क में अष्टकोणीय बैण्ड स्टैण्ड है, जहां अंग्रेज़ी सेना का बैण्ड बजाया जाता था। इस बैण्ड स्टैण्ड के इटालियन संगमरमर की बनी स्मारिका (निशानी) के नीचे पहले महारानी विक्टोरिया की भव्य मूर्ति थी, जिसे 1957 में हटा दिया गया। इसी पार्क में उत्तर प्रदेश की सबसे पुरानी और बड़ी जीवन्त गाथिक शैली में बनी पब्लिक लाइब्रेरी भी है, जहां पर ब्रिटिश युग के महत्त्वपूर्ण संसदीय कागज़ात रखे हुए हैं। पार्क के अंदर ही 1931 में इलाहाबाद महापालिका द्वारा स्थापित संग्रहालय भी है। इस संग्रहालय को पंडित जवाहरलाल नेहरू ने 1948 में अपनी काफ़ी वस्तुएं भेंट की थीं।

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