महानिर्वाणी अखाड़े के नागाओं का शौर्य : मुगलों के विरुद्ध सनातन धर्म की रक्षा की ऐतिहासिक गाथा, मठ-मंदिरों के लिए...

UPT | महानिर्वाणी अखाड़ा

Dec 02, 2024 18:07

सनातन धर्म की रक्षा में भारतीय मठ-मंदिर और तीर्थ सदैव प्रमुख रहे हैं। इन्हें मुगल आक्रांताओं के हमलों से बचाने में जिनका योगदान सर्वोपरि रहा, वे थे महानिर्वाणी अखाड़े के नागा संन्यासी। 1774 में काशी...

Prayagraj News : सनातन धर्म की रक्षा में भारतीय मठ-मंदिर और तीर्थ सदैव प्रमुख रहे हैं। इन्हें मुगल आक्रांताओं के हमलों से बचाने में जिनका योगदान सर्वोपरि रहा, वे थे महानिर्वाणी अखाड़े के नागा संन्यासी। 1774 में काशी के ज्ञानवापी और विश्वनाथ मंदिर पर औरंगजेब की सेना के हमले के दौरान नागाओं ने अपनी शौर्य और पराक्रम की मिसाल पेश की। इतिहास के इस गौरवशाली अध्याय को दशनामी परंपरा में विशेष स्थान दिया गया है। जहां महानिर्वाणी अखाड़े के नागाओं को "वीर" की उपाधि से नवाजा गया।

महानिर्वाणी अखाड़े की स्थापना और उद्देश्य
महानिर्वाणी अखाड़े की स्थापना 16वीं शताब्दी के अंत में हुई। बिहार के हजारीबाग स्थित गढ़कुंडा में सिद्धेश्वर महादेव मंदिर के प्रांगण में अखाड़े की नींव रखी गई। इस अखाड़े की स्थापना का उद्देश्य धर्म की रक्षा के लिए अस्त्र-शस्त्र में निपुण नागा संन्यासियों की सेना तैयार करना था। बीएसएम स्नातकोत्तर महाविद्यालय रुड़की के पूर्व प्राचार्य डॉ. रामचंद्र पुरी के शोध में इसका उल्लेख किया गया है। अखाड़े के पहले गुरु कपिल महामुनि ने काल भैरव और गणेश जी के छत्र के नीचे सनातन धर्म का ध्वज फहराकर इसकी शुरुआत की।

धर्म की रक्षा के लिए हुए युद्ध
औरंगजेब के निर्देश पर 1771 में काशी में मठ-मंदिरों को तोड़कर मस्जिद बनाने के उद्देश्य से उसकी सेना ने आक्रमण किया। इस समय महानिर्वाणी अखाड़े के नागा संन्यासियों ने धर्म की रक्षा के लिए 1774 में भीषण युद्ध किया। पुस्तक "दशनाम नागा संन्यासी एवं श्री पंचायती महानिर्वाणी अखाड़ा" में इस युद्ध का उल्लेख मिलता है। औरंगजेब ने अपने सेनापति मिर्जा अली तुरंग खां और अब्दुल अली को हिंदू मनसबदारों राजा हरिदास केसरी और नरेंद्र दास के साथ विशाल सेना लेकर ज्ञानवापी और विश्वनाथ मंदिर पर आक्रमण के लिए भेजा। काशी में भय और हाहाकार का माहौल बन गया। लेकिन महानिर्वाणी अखाड़े के हजारों नागाओं ने रमण गिरि, लक्ष्मण गिरि मौनी और देश गिरि के नेतृत्व में ज्ञानवापी की रक्षा के लिए वीरता से लड़ाई लड़ी।

हरिवंश पुरी और शंकर पुरी का बलिदान
इस युद्ध में हरिवंश पुरी और शंकर पुरी ने नेतृत्व करते हुए वीरगति पाई। इनकी समाधियां आज भी काशी में धर्म की रक्षा के प्रतीक के रूप में प्रतिष्ठित हैं। श्रीमहंत यमुना पुरी बताते हैं कि इन नागाओं के बलिदान ने काशी में धर्म का दीप जलाए रखा।

अन्य तीर्थों की रक्षा में भी वीरता
1777 में हरिद्वार और पुष्कर तीर्थ की रक्षा के लिए भी महानिर्वाणी अखाड़े के नागा संन्यासियों ने मुगलों और गुज्जरों से युद्ध किया। ये युद्ध सनातन धर्म की रक्षा की उस अदम्य इच्छा का प्रतीक थे। जो नागा संन्यासियों के हृदय में बसी थी।

पेशवाई परंपरा की शुरुआत
प्रयागराज के महाकुंभ में अखाड़ों के प्रवेश को "पेशवाई" कहा जाता है। औरंगजेब की सेना को हराने के बाद जब महानिर्वाणी अखाड़े के नागाओं ने प्रयागराज में प्रवेश किया तो अस्त्र-शस्त्र और बाजे-गाजे के साथ भव्य जुलूस निकाला गया। यह परंपरा आज भी महाकुंभ में निभाई जाती है।

महानिर्वाणी अखाड़े की प्रशासनिक संरचना
महानिर्वाणी अखाड़े की संरचना किसी सैन्य संगठन की तरह होती है। श्रीमहंत रवींद्र पुरी के अनुसार अखाड़े को "आम्नाय," "मढ़ी," "धूनी," और "दावा" जैसी इकाइयों में विभाजित किया गया है। यह व्यवस्था अखाड़े के आंतरिक संचालन को व्यवस्थित करने में सहायक होती है।

नागाओं की वीरता का महत्व
महानिर्वाणी अखाड़े के नागा संन्यासियों का शौर्य भारतीय इतिहास में अमर है। उनकी वीरता न केवल सनातन धर्म के प्रति उनकी निष्ठा को दर्शाती है, बल्कि यह भी प्रमाणित करती है कि धर्म की रक्षा के लिए उन्होंने अपने प्राणों का उत्सर्ग करने से कभी पीछे नहीं हटे।

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