महंत के बयान से सहारनपुर में बवाल : 24 घंटे बाद जागे जिम्मेदार, नरसिंहानंद के विरोध में मुस्लिम युवकों ने कर दिया था पथराव

UPT | जुलूस के बाद पुलिस पर पथराव

Oct 07, 2024 23:38

जूना अखाड़े के महा मंडलेश्वर यति नरसिंहानंद के बयान के बाद सहारनपुर के शेखपुरा कदीम में पथराव की घटना हुई। युवा सड़कों पर उतर आए और पुलिस पर पथराव किया, लेकिन कोई भी जिम्मेदार घटना स्थल पर नहीं पहुंचा। चौकी पर तैनात पुलिसकर्मी सैकड़ों की भीड़ का सामना करते हुए छिपते और भागते नजर आए।

Short Highlights
  • महंत के बयान के बाद पथराव की घटना
  • बवाल के बाद 13 युवकों की गिरफ्तारी
  • उपद्रवियों के पत्थरों से छिपती रही पुलिस
Saharanpur News : जूना अखाड़े के महा मंडलेश्वर यति नरसिंहानंद के बयान के बाद सहारनपुर के शेखपुरा कदीम में पथराव की घटना हुई। युवा सड़कों पर उतर आए और पुलिस पर पथराव किया, लेकिन कोई भी जिम्मेदार घटना स्थल पर नहीं पहुंचा। चौकी पर तैनात पुलिसकर्मी सैकड़ों की भीड़ का सामना करते हुए छिपते और भागते नजर आए। 24 घंटे बाद जिले के जिम्मेदार अधिकारी घटनास्थल पर पहुंचे और ग्रामीणों के साथ मीटिंग की। इस देरी ने पुलिस की नाकामी को उजागर किया।

बवाल में 13 युवकों की गिरफ्तारी
शेखपुरा कदीम में रविवार को हुए बवाल के बाद जिले के अधिकारियों की भूमिका पर सवाल उठ रहे हैं। घटना में 13 युवकों को गिरफ्तार किया गया और डीएम मनीष बंसल व एसएसपी रोहित सिंह सजवाण ने सोमवार को पुलिस फोर्स के साथ घटनास्थल पर पहुंचकर ग्रामीणों के साथ मीटिंग की ¹। इस दौरान शांति समिति बनाने पर जोर दिया गया, लेकिन गांव के चौक में सभी दुकानें बंद मिलीं। सवाल उठ रहा है कि जिले के जिम्मेदार रविवार को कहां थे और घटनास्थल पर क्यों नहीं पहुंचे? क्या सीओ, इंस्पेक्टर और चौकी इंचार्ज के भरोसे पर ही पूरे बवाल को छोड़ दिया गया? घटना के कारणों और जिम्मेदारों की भूमिका की जांच होनी चाहिए।


ज्ञापन के बाद विरोध क्यों 
गांव के रेती चौक पर हजारों की संख्या में मुस्लिम समाज के लोग इकट्ठा हुए, जिन्हें चौकी पर महामंडलेश्वर यति नरसिंहानंद के खिलाफ ज्ञापन देने जाना था। पुलिस ने इस स्थिति को शुरू में हल्के में लिया, और वहां केवल कुछ ही पुलिसकर्मी मौजूद थे। जब इंस्पेक्टर देहात, चंद्रसैन सैनी ने देखा कि भीड़ बढ़ रही है, तो उन्होंने गांव में जाकर ज्ञापन लेने का निर्णय लिया।

ज्ञापन के दौरान उपद्रव
भीड़ में कुछ युवकों ने चौकी में जाकर ज्ञापन देने की जिद की, जिससे स्थिति तनावपूर्ण हो गई। युवाओं को उकसाने के बाद भीड़ दो भागों में बंट गई। शांतिपूर्ण प्रदर्शन करने वाले लोग अपने घर लौट गए, जबकि दंगाई चौकी की ओर दौड़ने लगे। दो से तीन पुलिसकर्मियों ने उन्हें रोकने की कोशिश की, लेकिन उपद्रवियों की भीड़ उग्र हो गई और पुलिसकर्मियों के पीछे दौड़ पड़ी। इस दौरान, पुलिस पर पत्थरबाजी होती रही, जिससे स्थिति और बिगड़ गई।

उपद्रवियों के पत्थरों से छिपती रही पुलिस
लगातार उपद्रवी के पत्थरबाजी हमले से बचते हुए पुलिस पेड़ के पीछे छिप गई। जैसे ही उपद्रवी उनकी ओर बढ़ते, पुलिस वहां से भागने लगी। चौकी की पुलिस ने मामले को सुलझाने की कोशिश की, लेकिन इसके बाद ही अतिरिक्त पुलिस फोर्स मौके पर पहुंची। हालांकि, उस फोर्स ने उपद्रवियों को खदेड़ने का काम किया। ग्रामीणों का कहना है कि अगर पुलिस व्यवस्था सही होती और पहले से पुलिस बल तैनात होता, तो ऐसी स्थिति उत्पन्न ही नहीं होती।

लोकल इंटेलिजेंस हुआ फेल, अफसरों की देरी से बढ़ा संकट
सहारनपुर में महामंडलेश्वर के बयान के बाद हुई हिंसा ने लोकल इंटेलिजेंस की विफलता को उजागर किया। बड़ा सवाल यह है कि पश्चिमी यूपी में तनाव के बावजूद सहारनपुर का इंटेलिजेंस अलर्ट क्यों नहीं था? क्या पुलिस और अधिकारियों को सूचित नहीं किया गया? यदि कराया गया तो फिर इतनी बड़ी संख्या में भीड़ कहां से आई? जिसने फ़िजा को ही बदलने का काम किया। बड़े अफसर मौके पर क्यों नहीं पहुंचे? एक दिन बाद बड़े अफसर घटनास्थल पर क्यों पहुंचे? क्या पुराने 2013, 2017, 2022 में जो घटा उसकी नए अफसरों को जानकारी नहीं थी।

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