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Varanasi Ghat: दुनिया में सिर्फ एक ही जगह है, जहां मिलता है मृत्यु के बाद मोक्ष

Uttarpradesh Times | Varanasi Ghat

Dec 20, 2023 16:33

वाराणसी के नाम इतिहास के पन्नों में सुनहरें अक्षरों से लिखा गया हैं। वाराणसी को आध्यात्मिक ज्ञान और कई लाजवाब दृश्यों के लिए जाना जाता है, इसके साथ ही यह शहर हिंदु तीर्थयात्रियों को अपनी ओर आकर्षित भी करता है।

Varanasi Ghat: वाराणसी का नाम इतिहास के पन्नों में सुनहरें अक्षरों से लिखा गया हैं। वाराणसी को आध्यात्मिक ज्ञान और कई लाजवाब दृश्यों के लिए जाना जाता हैं, इसके साथ ही यह शहर हिंदु तीर्थयात्रियों को अपनी ओर आकर्षित भी करता हैं। यहां पर गंगा के किनारे लगभग 80 से अधिक घाट बसे हैं, जिसमें कुछ घाटों का अपना अलग इतिहास हैं। वाराणसी के कुछ घाट समृद्ध इतिहास और संस्कृति का प्रतीक हैं। 

दशाश्वमेध घाट

यह घाट सबसे पुराने और सबसे महत्वपूर्ण घाटों में एक हैं। दशाश्वमेध घाट को लेकर दो हिंदु पौराणिक कथाएं हैं। जिसमें इस घाट के निर्माण को लेकर कहा जाता है कि इस घाट को भगवान ब्रह्मा ने भगवान शिव के स्वागत के लिए करवाया था। इसी के साथ दूसरी कथा में कहा जाता है कि यहां पर यज्ञ के दौरान 10 घोड़ों की बलि दी गई थी। इसीलिए इस घाट को दशाश्वमेध घाट कहा जाता है। दशाश्वमेध घाट संध्याकाल की गंगा आरती के दौरान जीवंत हो उठता है। यहां पर आरती पूजा, नृत्य और आग के साथ समाप्त की जाती है। नदी किनारे जलती दीपक की रोशनी और चंदन की महक घाट को ढक लेती है।

मणिकर्णिंका घाट

वाराणसी शहर में मणिकर्णिका घाट खास स्थान रखता है। यहां पर अंतिम संस्कार की जगह भी पवित्र मंदिरों के पास स्थित हैं। यहां पर कतार में रखी लकड़ियों के ढेर और आग की धारा में लगातार शव जलते रहते हैं। यहां पर प्रत्येक शवों को कपड़े में लपेट कर एक अस्थायी स्ट्रेचर पर गलियों से लाया जाता है। ऐसे माना जाता है कि एक बार भगवान शिव नें विष्णु जी को एक वरदान दिया था जिसमें उन्होंने कहा था कि जिसकी मृत्यु काशी में होगी वह जन्म और मृत्यु के अंतहीन चक्र से मुक्त हो जाएगा और उसकी आत्मा भी मुक्त हो जाएगी।

अस्सी घाट

अस्सी घाट वाराणसी के सबसे दक्षिण में स्थित है। यह घाट गंगा और अस्सी नदी के संगम पर स्थित हैं। यहां पर श्रद्धालु शिवलिंग के रुप में भगवान शिव की पूजा से पहले स्नान करते हैं। यह वही अस्सी घाट है जहां कवि तुलसीदास जी ने रामचरितमानस जैसे ग्रंथ की रचना की थी।

अहिल्याबाई घाट

इंदौर की महारानी अहिल्याबाई होल्कर को यह घाट समर्पित है। अहिल्याबाई ने 1785 में घाटों को नया स्वरूप देकर यात्रियों के लिए सहूलियत देने के लिए कार्यो को गति दी थी। इसी गंगा घाट के तट पर ही विशाल महल का निर्माण कराया था। बता दे कि कुछ इतिहासकार बताते हैं कि घाट का प्राचीन नाम गिरिघाट था, मगर इसका जीणोद्धार अहिल्याबाई ने कराया था इसलिए इसकी पहचान अहिल्याबाई घाट के रूप में हो गई। घाट पर ही अहिल्याबाई बाड़ा, हनुमान मंदिर व प्राचीन शिव मंदिर हैं।

पंचगंगा घाट

पंचगंगा घाट को पांच नदियों के संगम में बनाया गया हैं। जिसमें गंगा, सरस्‍वती, धुपापापा, यमुना और किरना नदी है। इन पांचों नदियों में अब केवल गंगा को देखा जा सकता है, बाकी की चार नदियां पृथ्‍वी में समा गई हैं। इस घाट को वाराणसी के सबसे पवित्र घाटों में से एक माना जाता है।

मान मंदिर घाट

मान मंदिर घाट अपनी अलंकृत राजपूत वास्तुकला के लिए जाना जाता है। जयपुर के राजपूत राजा मान सिंह ने 1600 ई.में वहां अपना महल बनवाया था। यह महल अपनी अलंकृत खिड़की की नक्काशी और अन्य शानदार विशेषताओं के साथ अपने आप में एक प्रमुख पर्यटक आकर्षण है। मान मंदिर घाट में कई हिंदू मंदिर भी हैं जिनमें रामेश्वर मंदिर, स्थूलदंत विनायक मंदिर और सोमेश्वर मंदिर शामिल हैं। शाम और सुबह के समय घाट का सौंदर्य अलग ही हो जाता है। 

चेत सिंह घाट

इस घाट का काफी ऐतिहासिक महत्व है। यह महाराजा चेत सिंह और अंग्रेजों के बीच 18वीं शताब्दी की लड़ाई का स्थल था। चेत सिंह ने घाट पर एक छोटा किला बनवाया था लेकिन दुर्भाग्य से अंग्रेजों ने उन्हें हरा कर उस किले पर कब्ज़ा कर लिया और उन्हें कैद कर दिया। चेत सिंह की हार के बाद ब्रिटिश सेना ने इस क्षेत्र पर कब्ज़ा कर लिया था। स्वाभाविक रूप से, चेत सिंह घाट पर भारत के स्वतंत्रता संग्राम की छाप और यादें हैं। चेत सिंह घाट को खिड़की घाट के नाम से भी जाना जाता है। 

हरिश्चंद्र घाट

वाराणसी के इस घाट की अपनी अलग पहचान हैं। यहां पर दिनों-रात हिन्दुओं के अंतिम संस्कार किए जाते हैं। ऐसा कहा जाता है कि इस घाट पर मोक्ष की प्राप्ति होती है। बनारस में अंतिम संस्कार के लिए दो घाट काफी प्रसिद्ध हैं। जिसमें पहला मणिकर्णिका घाट और दूसरा हरिश्चंद्र घाट हैं। इस घाट का इतिहास राजा हरिश्चंद्र से जुड़ा है। राजा हरिश्चंद्र के बेटे की मृत्यु के बाद पुत्र के दाह संस्कार के लिए अपनी पत्नी की साड़ी का एक टुकड़ा दान में दिया था, जिसके बाद दान की ये परम्परा चलती आ रही है।

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