मकर संक्रांति 2025 : त्रेता युग से बाबा गोरखनाथ को चढ़ाई जाती खिचड़ी, जानिए कैसे शुरू हुई परंपरा

UPT | बाबा गोरखनाथ मंदिर

Jan 14, 2025 10:42

इसमें ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और सामाजिक समरसता के गहरे तत्व भी निहित हैं। हर साल लाखों श्रद्धालु इस दिन अपनी श्रद्धा और भक्ति के साथ मंदिर में खिचड़ी चढ़ाकर बाबा गोरखनाथ से आशीर्वाद...

Gorakhpur News : मकर संक्रांति के अवसर पर गोरखनाथ मंदिर में खिचड़ी चढ़ाने की परंपरा सदियों पुरानी है। जो त्रेतायुग से चली आ रही है। यह परंपरा न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक है, बल्कि इसमें ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और सामाजिक समरसता के गहरे तत्व भी निहित हैं। हर साल लाखों श्रद्धालु इस दिन अपनी श्रद्धा और भक्ति के साथ मंदिर में खिचड़ी चढ़ाकर बाबा गोरखनाथ से आशीर्वाद प्राप्त करते हैं।

परंपरा की शुरुआत और ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
मान्यता है कि यह परंपरा उस समय शुरू हुई जब बाबा गोरखनाथ हिमाचल प्रदेश में स्थित मां ज्वाला देवी के दरबार में पहुंचे थे। उन्होंने वहां भोजन को भिक्षा के रूप में स्वीकार किया और यहीं से खिचड़ी चढ़ाने की परंपरा का आरंभ हुआ। बाद में बाबा गोरखनाथ ने गोरखनाथ मंदिर में अपना ध्यान साधना आरंभ किया। इस परंपरा का संबंध नेपाल के एकीकरण से भी है। कथा के अनुसार नेपाल के तत्कालीन राजा ने अपने बेटे राजकुमार पृथ्वी नारायण शाह को बाबा गोरखनाथ का आशीर्वाद लेने भेजा। बाबा ने राजकुमार को दही लाने को कहा और आशीर्वाद स्वरूप उन्हें नेपाल के एकीकरण का वरदान दिया। इसके बाद से नेपाल का राजपरिवार हर साल मकर संक्रांति के अवसर पर गोरखनाथ मंदिर में खिचड़ी चढ़ाने की परंपरा निभाता आ रहा है।


मकर संक्रांति और गोरखनाथ मंदिर का धार्मिक महत्व
मकर संक्रांति का पर्व सूर्य के उत्तरायण होने का प्रतीक है, जो सकारात्मक ऊर्जा, सुख-समृद्धि और नई शुरुआत का संकेत देता है। इस दिन गोरखनाथ मंदिर में सबसे पहले गोरक्षपीठाधीश्वर योगी आदित्यनाथ बाबा गोरखनाथ को खिचड़ी का भोग अर्पित करते हैं। इसके बाद नेपाल के राजपरिवार की ओर से खिचड़ी चढ़ाई जाती है। मंदिर के कपाट खोलने के बाद आम श्रद्धालु अपनी-अपनी खिचड़ी चढ़ाकर बाबा से आशीर्वाद लेते हैं। इस परंपरा का उद्देश्य मानव जीवन में सुख, शांति और समृद्धि की कामना करना है।

नेपाल के एकीकरण और खिचड़ी परंपरा का संबंध
बाबा गोरखनाथ की खिचड़ी परंपरा नेपाल के ऐतिहासिक एकीकरण से भी जुड़ी है। कथा है कि नेपाल के तत्कालीन राजा ने अपने पुत्र राजकुमार पृथ्वी नारायण शाह को बाबा का आशीर्वाद लेने भेजा। राजकुमार जब बाबा से मिलने पहुंचे तो बाबा ने दही की मांग की। राजकुमार ने दही लाकर बाबा को अर्पित किया। बाबा ने दही से आचमन कर उसे राजकुमार की हथेली पर उलट दिया और उन्हें नेपाल के एकीकरण का आशीर्वाद दिया। इस घटना के बाद नेपाल के राजपरिवार ने मकर संक्रांति के अवसर पर गोरखनाथ मंदिर में खिचड़ी चढ़ाने की परंपरा शुरू की, जो आज भी जारी है।  

खिचड़ी मेला
मकर संक्रांति के अवसर पर गोरखनाथ मंदिर में खिचड़ी चढ़ाने के साथ-साथ भव्य खिचड़ी मेले का आयोजन किया जाता है। यह मेला सामाजिक समरसता का उदाहरण है, जहां हर धर्म और वर्ग के लोग बिना भेदभाव के इस आयोजन का हिस्सा बनते हैं। मेले में पारंपरिक व्यंजन, हस्तशिल्प और सांस्कृतिक प्रस्तुतियां लोगों के आकर्षण का केंद्र होती हैं। यह आयोजन न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक है, बल्कि स्थानीय समुदाय के आर्थिक विकास और सांस्कृतिक पहचान को भी मजबूत करता है।

उत्तरायण का वैज्ञानिक और धार्मिक महत्व
मकर संक्रांति के दिन सूर्यदेव दक्षिण से उत्तर की ओर गमन करते हैं। जिसे उत्तरायण कहा जाता है। यह समय ऊर्जा के संचार और सकारात्मक बदलाव का प्रतीक माना जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इस दिन स्वर्ग के द्वार खुल जाते हैं और मृत्यु के बाद मोक्ष प्राप्ति की संभावना बढ़ जाती है।

समाज और संस्कृति पर प्रभाव
गोरखनाथ मंदिर में मकर संक्रांति का यह आयोजन धार्मिक आस्था, ऐतिहासिक परंपरा और सामाजिक एकता का संगम है। यह पर्व केवल एक धार्मिक आयोजन नहीं, बल्कि समाज को एकजुट करने और भारतीय संस्कृति की विविधता और समृद्धि को प्रदर्शित करने का माध्यम है।

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