Hardoi News : लेमनग्रास से मालामाल हो रहे किसान, एक बार लगाकर पांच साल ले रहे मुनाफा

UPT | हरदोई में लेमनग्रास की खेती

Mar 16, 2024 11:52

उत्तर प्रदेश के हरदोई जिले में उद्यान विभाग के वैज्ञानिक खेती के प्रयासों के चलते किसान अपनी आमदनी बढ़ा रहे हैं। अब गेहूं और धान जैसी पारंपरिक खेती से हटकर किसान आयुर्वेदिक ...

Short Highlights
  • आयुर्वेदिक दवाओं और सौंदर्य प्रसाधन में होता है तेल का इस्तेमाल।
  • लेमनग्रास की खेती से किसान कर रहे लाखों की कमाई।

 

Hardoi News : उत्तर प्रदेश के हरदोई जिले में उद्यान विभाग के वैज्ञानिक खेती के प्रयासों के चलते किसान अपनी आमदनी बढ़ा रहे हैं। अब गेहूं और धान जैसी पारंपरिक खेती से हटकर किसान आयुर्वेदिक खेती कर रहे हैं। हरदोई में लगभग 25 किसान लेमनग्रास की खेती कर रहे हैं। किसान बताते हैं कि लेमनग्रास की खेती करने से उन्हें पारंपरिक खेती से बढ़कर धन लाभ हो रहा है। इस खेती की बाजार में अच्छी कीमत मिल रही है। सबसे बड़ी बात यह है कि क्षेत्र में आवारा पशु इसे नहीं खाते हैं। अब उन्हें देखकर अन्य किसान भी पारंपरिक खेती से हटकर आयुर्वेदिक खेती की तरफ रुख कर रहे हैं। वे रोजाना नए किसानों को जागरूक भी कर रहे हैं। इस खेती ने उनकी वीरान पड़ी दुनिया बदल दी है। सबसे बड़ी बात यह है कि इस पर दैवीय आपदा का भी कोई असर नहीं पड़ता है।

एक साल में 3 बार होती है फसल की कटाई
हरदोई के नीर गांव निवासी 30 वर्षीय किसान अभिमन्यु बताते हैं कि पिछले काफी समय से लेमनग्रास की खेती कर रहे हैं। आयुर्वेदिक खेती में एक बार फसल लगाने के बाद 5 वर्षों तक दूसरी फसल लगाने की आवश्यकता नहीं पड़ती है। एक साल में 3 बार और 5 वर्षों में 15 बार फसल की कटाई होती है। उद्यान विभाग कृषकों को सब्सिडी भी देता है।

ऐसे निकाला जाता है लेमनग्रास का तेल
हरदोई के किसान दीपक बताते हैं कि वाष्पीकरण विधि से इसका तेल निकालकर महंगी कीमतों पर बाजार में बेचा जाता है। गुरुग्राम, कन्नौज, लखनऊ, कानपुर समेत कई जगहों पर इसके खरीदार उपलब्ध हैं। हरदोई के ही एक दूसरे किसान नीलू ने बताया कि इस फसल को आवारा पशु भी नहीं खाते हैं। क्षेत्र में आवारा पशुओं की बहुतायत समस्या है। इसलिए लेमनग्रास की खेती उनके लिए अतिउत्तम और फायदेमंद है। सहायक जिला उद्यान अधिकारी अजय वर्मा ने बताया कि लेमनग्रास की खेती से निकलने वाला तेल सौंदर्य प्रसाधन साबुन, शैंपू और दवाओं के बनाने के काम आता है।

आयुर्वेदिक दावाओं में होता है तेल का इस्तेमाल
क्षेत्रीय आयुर्वेदिक यूनानी अधिकारी आशा रावत ने बताया कि सौंदर्य प्रसाधनों के साथ ही साबुन, शैंपू, तेल में इसका प्रयोग नींबू के स्थान पर किया जाता है। पेट की अपच, किडनी की बीमारियों, अनिद्रा के साथ ही कैंसर जैसी घातक बीमारी में भी इसका प्रयोग किया जाता है। लेमनग्रास शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाती है। इसमें विशेष आयुर्वेदिक औषधीय गुण विद्यमान हैं। अक्सर गांव देहात में इसका प्रयोग चाय बनाते समय इसकी पत्तियों को उसमें डालकर किया जाता है। कोरोना काल में भी लेमनग्रास का इस्तेमाल अत्याधिक लोगों ने किया था। इसका दूसरा नाम जराकुश है। अक्सर इसे गांव के आंगन में देखा जा सकता है।

लेमनग्रास की खेती से कर रहे लाखों की कमाई
उद्यान विभाग में कार्यरत मधु विकास निरीक्षक हरिओम ने बताया कि इसकी खेती से किसान को प्रति वर्ष प्रति एकड़ में एक लाख 25 हजार से डेढ़ से दो लाख तक की बचत होती है। जैसे-जैसे इसकी फसल पुरानी होती है, फायदा बढ़ता जाता है। वैश्विक बाजार में इसके तेल की काफी मांग है। 15 सौ रुपए प्रति लीटर के हिसाब से इसका तेल कन्नौज, गुरुग्राम, लखनऊ आदि जगहों पर खरीद लिया जाता है।

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