रिपोर्ट से उठे सवाल : तो क्या भ्रष्टाचारियों पर कार्रवाई की पत्रावली पर कुंडली मार लेता है लखनऊ विश्वविद्यालय

UPT | लखनऊ विश्वविद्यालय में भ्रष्टाचार।

Sep 10, 2024 00:52

उत्तर प्रदेश के समाज कल्याण विभाग के आधीन जनजाति विकास निगम ने गोरखपुर व आसपास के क्षेत्रों के ट्राइब्लस की स्थितियों के अध्ययन के लिए मानव विज्ञान को दस लाख रुपये की ग्रांट मुहैया करायी। नियमों के मुताबिक यह राशि विवि के सरकारी खाते में मंगानी चाहिए। लेकिन धन तत्कालीन विभागाध्यक्ष के खाते में भेजा गया।

Short Highlights
  • ट्राइब्लस पर अध्ययन के लिए मिला सरकारी धन निजी खाते में जमा किया
  • महालेखा परीक्षक ने भ्रष्टाचार पकड़ा, आंतरिक जांच में हुई पुष्टि फिर भी कार्रवाई नहीं
Lucknow News : लखनऊ विश्वविद्यालय में भ्रष्टाचार चरम की ओर है। बड़े भ्रष्टाचारियों की जांच पर अधिकारी कुंडली मारकर जम गए हैं। छोटी-छोटी उपलब्धियों की वाहवाही बटोरी जा रही है। उत्तर प्रदेश के समाज कल्याण विभाग के आधीन जनजाति विकास निगम ने गोरखपुर व आसपास के क्षेत्रों के ट्राइब्लस की स्थितियों के अध्ययन के लिए मानव विज्ञान को दस लाख रुपये की ग्रांट मुहैया करायी। नियमों के मुताबिक यह राशि विवि के सरकारी खाते में मंगानी चाहिए। लेकिन धन तत्कालीन विभागाध्यक्ष के खाते में भेजा गया। जिसे डॉ.यूपी सिंह ने निजी खाते में ट्रांसफर कर लिया।

महालेखा परीक्षक ने पकड़ी गड़बड़ी 
सरकारी महकमे से किसी प्रोजेक्ट के लिए मिलने वाली राशि विवि के खाते में जानी चाहिए, जहां से नियमानुसार भुगतान किया जाता है। इस धन को खर्च करने के लिए विभागाध्यक्ष ने कुछ लोगों की नियुक्तियां भी कर लीं। धनराशि खर्च हो जाने का दावा भी किया गया। महालेखा परीक्षक ने इस गड़बड़ी को पकड़ा और इसे भ्रष्टाचार का गंभीर मामला मानते हुए पूरे प्रकरण की जांच कराने का आदेश लखनऊ विश्वविद्यालय के कुलपति को दिया। इसी बीच विभाग के डीन प्रो.पीसी मिश्र बने, जिन्होंने अपने स्तर से छानबीन कराई और जांच में वित्तीय अनियमितता का उल्लेख करते हुए कुलपति को कार्रवाई की संस्तुति की, जिसके आधार पर कुलपति ने एक रिटायर आईपीएस अधिकारी, विवि के लेखाधिकारी और मानव विज्ञान के विभागाध्यक्ष की तीन सदस्यीय कमेटी का गठन किया।

कमेटी की जांच-पड़ताल में हुई पुष्टि
सूत्रों का कहना है कि इस कमेटी ने बैंक खातों की जांच पड़ताल की और पाया कि सरकारी धन निजी खाते में जमा किया गया। इसके अलावा इस प्रोजेक्ट के तहत जिन लोगों को नियुक्त किया गया था, उनमें से कुछ ने नियुक्ति के लिए आवेदन ही नहीं करने की बात कही। इसके लिए एक प्रोजेक्ट मैनेजर रखा गया था, उसकी सक्षम स्तर  से अनुमति भी नहीं ली गयी थी। कमेटी ने अपनी जांच में डॉ. यूपी सिंह को वित्तीय अनियमितता का दोषी पाया और इस मामले में कठोर कार्रवाई की संस्तुति की। मगर, विश्वविदालय के कुलपति प्रो.आलोक राय जांच की संस्तुतियों को दबाकर बैठ गए। जांच की संस्तुति के बाद विवि कार्य परिषद की आधा दर्जन से अधिक मीटिंगें हो चुकी हैं, मगर भ्रष्टाचार का यह मुद्दा कार्य परिषद केसदस्यों के सामने रखा ही नहीं गया।

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