राष्ट्रीय खेल दिवस : कुलपति बोले-हौसले से जीते जाते हैं खेल और युद्ध

UPT | शकुंतला मिश्रा राष्ट्रीय पुनर्वास विश्वविद्यालय।

Aug 30, 2024 03:11

कुलपति ने कहा कि जैसे युद्ध और खेल हौसले से जीते जाते हैं, वैसे ही नीरज चोपड़ा और मनु भाकर ने भी अपने परिश्रम से सफलता हासिल की है। उन्होंने विश्वविद्यालय के छात्रों को उपलब्ध संसाधनों का उपयोग करके विश्वविद्यालय का नाम विश्व स्तर पर ऊँचा करने के लिए प्रेरित किया।

Lucknow News : डॉ. शकुंतला मिश्रा राष्ट्रीय पुनर्वास विश्वविद्यालय में बृहस्पतिवार को हॉकी के जादूगर मेजर ध्यानचन्द की जयंती के उपलक्ष्य में राष्ट्रीय खेल दिवस मनाया गया। इस अवसर पर कुलपति संजय सिंह ने कहा कि मेजर ध्यानचन्द का खेल के प्रति समर्पण अद्वितीय था। सीमित संसाधनों के बावजूद ध्यानचन्द ने अपनी कड़ी मेहनत से भारत का नाम वैश्विक स्तर पर गौरवान्वित किया।

नीरज चोपड़ा और मनु भाकर का किया जिक्र
कुलपति ने कहा कि जैसे युद्ध और खेल हौसले से जीते जाते हैं, वैसे ही नीरज चोपड़ा और मनु भाकर ने भी अपने परिश्रम से सफलता हासिल की है। उन्होंने विश्वविद्यालय के छात्रों को उपलब्ध संसाधनों का उपयोग करके विश्वविद्यालय का नाम विश्व स्तर पर ऊंचा करने के लिए प्रेरित किया। इस अवसर पर अंतर्राष्ट्रीय पैरा बैडमिंटन खिलाड़ी सुश्री रुचि द्विवेदी और लक्ष्मण अवार्ड विजेता पैरा बैडमिंटन खिलाड़ी अब्बू हुबेदा ने भी मेजर ध्यानचन्द के जीवन के प्रेरणादायक पहलुओं पर व्याख्यान दिया।

खेल और राष्ट्र निर्माण के बीच गहरा संबंध
लखनऊ विश्वविद्यालय में भी मेजर ध्यानचंद के जन्मदिवस को राष्ट्रीय खेल के दिवस के रूप में मनाया गया। जिसमें संगोष्ठी और परिचर्चा हुई। इस अवसर पर विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. आलोक कुमार राय ने कहा कि खेल और राष्ट्र निर्माण के बीच एक गहरा संबंध है। खेल न केवल व्यक्ति के शारीरिक स्वास्थ्य को सुधारते हैं, बल्कि जीवन के अन्य व्यावहारिक पहलुओं को भी सुदृढ़ करते हैं।

राष्ट्रों को जोड़ने में खेल की महत्वपूर्ण भूमिका  
कुलपति ने यह भी कहा कि खेल भावना समुदायों और राष्ट्रों को एकजुट करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। प्रो. मनुका खन्ना ने छात्रों के जीवन में खेल के महत्व पर चर्चा की, जबकि डीएसडब्ल्यू प्रो. वीके शर्मा ने क्रीड़ा और स्वास्थ्य सेवाओं पर विचार-विमर्श किया। इस कार्यक्रम में खेल और राष्ट्र निर्माण से जुड़े विभिन्न सामाजिक, सांस्कृतिक और व्यावहारिक पहलुओं पर भी चर्चा की गई। 

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