पूर्वांचल में कृषि के कायाकल्प की तैयारी : कुशीनगर का कृषि विवि, गोरखपुर का पशु चिकित्सा महाविद्यालय, बनारस का इरी होंगे मददगार

UPT | कृषि के कायाकल्प की तैयारी

Aug 08, 2024 13:17

पूर्वांचल क्षेत्र की मिट्टी दुनिया की सबसे उपजाऊ मिट्टियों में से एक मानी जाती है। गंगा,यमुना,सरयू,राप्ती,गंडक जैसी नदियां साल भर जल से भरी रहती हैं। पूरे क्षेत्र में नहरों का जाल फैला हुआ है। पूर्वांचल क्षेत्र देश का सबसे सघन आबादी वाला क्षेत्र है, इसलिए यहां मानव संसाधन की भी कमी नहीं है।

Lucknow News : देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश का पूर्वांचल क्षेत्र इंडो गंगेटिक बेल्ट में स्थित है। इस बेल्ट की मिट्टी दुनिया की सबसे उपजाऊ मिट्टियों में से एक मानी जाती है। गंगा,यमुना,सरयू,राप्ती,गंडक जैसी नदियां साल भर जल से भरी रहती हैं। जमीन की कुछ फीट गहराई पर ही पानी उपलब्ध है। पूरे क्षेत्र में नहरों का जाल फैला हुआ है। अकेली सरयू नहर ही पूर्वांचल के करीब दर्जन भर जिलों की 14 लाख हेक्टेयर भूमि को अपनी सिंचाई क्षमता से कवर करती है। खेती के लिए उपजाऊ भूमि,पर्याप्त पानी और श्रमिकों की उपलब्धता महत्वपूर्ण होती है। पूर्वांचल क्षेत्र देश का सबसे सघन आबादी वाला क्षेत्र है,इसलिए यहां मानव संसाधन की भी कमी नहीं है। इस आबादी का एक बड़ा हिस्सा खेती में लगा हुआ है और यह क्षेत्र एक बड़ा उपभोक्ता बाजार भी है। ऐसे में यहां खेतीबाड़ी के क्षेत्र में हमेशा से संभावनाएं रही हैं। 

आजाद भारत में पूर्वांचल की उपेक्षा हुई 
अंग्रेजों ने इस बात को समझा और यहां गन्ने की खेती को बढ़ावा दिया। हर कुछ किलोमीटर पर चीनी मिलें लगाईं,जिससे यह क्षेत्र देश ही नहीं,बल्कि पूरी दुनिया के लिए चीनी का कटोरा बन गया। लेकिन आजाद भारत में पूर्वांचल की उपेक्षा हुई। संसद में गाजीपुर के सांसद विश्वनाथ गहमरी ने जब इस बदहाली को उजागर किया,तब सबकी आंखें नम हो गईं,लेकिन कुछ खास नहीं हुआ। राजनीतिक कारणों से पूर्वांचल हमेशा उपेक्षित रहा।

सात साल में योगी सरकार ने कर दिया कायाकल्प 
योगी सरकार के सात साल के प्रयासों से कृषि बहुल पूर्वांचल की खेतीबाड़ी का कायाकल्प हो गया। दो दशक से बंद गोरखपुर का खाद कारखाना अब पहले से अधिक क्षमता से चालू हो गया है। इसलिए अब यहां फसली सीजन में खाद के लिए मारामारी नहीं होती। करीब पांच दशक से बजट के अभाव में अधूरी पड़ी सरयू नहर परियोजना को योगी आदित्यनाथ के मुख्यमंत्री बनने पर युद्ध स्तर पर पूरा किया गया। इस नहर की सिंचाई क्षमता 14 लाख हेक्टेयर है,जो पूर्वांचल के दर्जन भर जिलों की खेतीबाड़ी के लिए संजीवनी बन गई है। संयोग से ये वही जिले हैं,जिनके लिए सिद्धार्थनगर का एक जिला एक उत्पाद कालानमक धान को जीआई (जियोग्राफिकल इंडिकेशन) मिला है।

कई नए आयामों पर हुआ है काम 
खेतीबाड़ी के कायाकल्प की दिशा में कई नए आयामों पर भी काम हुआ है। वाराणसी स्थित भारतीय सब्जी अनुसंधान केंद्र, कुशीनगर का कृषि विज्ञान केंद्र,राष्ट्रीय बागवानी विकास संस्थान (एनएचआरडीएफ),राष्ट्रीय बीजीय मसाला अनुसंधान केंद्र, टाटा ट्रस्ट और अजीम प्रेमजी फाउंडेशन मिलकर किसानों को सब्जी,बीजीय मसाले, प्याज की खेती और बागवानी के लिए प्रोत्साहित कर रहे हैं। योगी सरकार ने केले को कुशीनगर का कृषि उत्पाद घोषित किया है,जिससे इसकी संभावनाएं और बढ़ गई हैं। कृषि विज्ञान केंद्रों की बुनियादी सुविधाओं में सुधार और सेंटर ऑफ एक्सीलेंस के तहत इनको प्रोसेसिंग और प्रशिक्षण केंद्र में बदलना,किसानों को कृषि जलवायु के अनुकूल उन्नत किस्म के सब्जी और फलों के पौधे उपलब्ध कराने का भी खासा लाभ हुआ है। 

बदलाव का सिलसिला अभी जारी है 
यह बदलाव का सिलसिला अभी जारी है और आगे भी जारी रहेगा। गोरखपुर में बनने वाला पशु चिकित्सा महाविद्यालय,कुशीनगर में महात्मा बुद्ध के नाम पर बनने वाला कृषि विश्वविद्यालय इसका जरिया बनेंगे। पूर्वांचल का अधिकांश हिस्सा बाढ़ग्रस्त है। यहां नदियों के दियारा क्षेत्र में कभी सबसे स्वस्थ पशु संपदा पाई जाती थी। पशु चिकित्सा महाविद्यालय खुलने पर इसका लाभ पशुपालकों को मिलेगा। इसी तरह कृषि विश्वविद्यालय में इस क्षेत्र और बदलते जलवायु के मद्देनजर जो शोध होंगे,जो नई प्रजातियाँ विकसित होंगी, उनका दूरगामी लाभ यहाँ के किसानों को होगा। इसी तरह का लाभ अंतरराष्ट्रीय चावल अनुसंधान केंद्र (इरी) की वाराणसी में खुली शाखा से भी होगा।

कायाकल्प की मुहिम में विश्व बैंक भी योगी सरकार के साथ 
योगी सरकार की किसानों के हितों की प्रतिबद्धता को देखते हुए विश्व बैंक भी इसमें सहयोग करने जा रहा है। इसके लिए एक परियोजना बनाई गई है, जिस पर 4000 करोड़ रुपये खर्च किए जाएंगे। इसके लिए जिन 28 जिलों का चयन किया गया है, उनमें से 21 पूर्वांचल के हैं। बाकी सात जिले बुंदेलखंड के हैं। इस प्रकार,पूर्वांचल की खेतीबाड़ी का कायाकल्प योगी सरकार के सात साल के प्रयासों का परिणाम है। क्षेत्र की उपजाऊ भूमि,पर्याप्त जल संसाधन और मानव संसाधन की उपलब्धता ने इस क्षेत्र को कृषि में समृद्धि की ओर अग्रसर किया है। आने वाले वर्षों में गोरखपुर का पशु चिकित्सा महाविद्यालय, कुशीनगर का कृषि विश्वविद्यालय और वाराणसी स्थित दक्षिण एशिया क्षेत्रीय केंद्र अंतरराष्ट्रीय चावल अनुसंधान संस्थान (इरी) इस प्रयास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे। विश्व बैंक के सहयोग से इस क्षेत्र में और भी अधिक विकास होगा,जिससे पूर्वांचल के किसानों की दशा और दिशा में व्यापक सुधार होगा। 

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