Sawan Somwar : यहां शिवलिंग ने बार-बार बदली अपनी जगह, जानें क्यों कहलाए कोनेश्वर महादेव, 40 दिनों में मन्नत करते हैं पूरी

UPT | koneshwar mandir lucknow

Aug 05, 2024 11:54

सामान्य तौर पर शिवलिंग किसी मंदिर में मध्य में विराजमान होता है। लेकिन, यहां पर बाबा कोने में विराजमान हैं। पुजारियों के मुताबिक यह मंदिर सदियों पहले गोमती नदी के करीब था। कौण्डिन्य ऋषि ने गोमती के तट पर शिवलिंग की स्थापना की।

Lucknow News : सावन के तीसरे सोमवार को शिवालयों में श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ी हुई है। देर रात से ही प्रमुख शिवालयों में भक्तों की कतार लगना शुरू हो गई। इसके बाद मंदिर के कपाट खुलते ही भगवान शिव का जलाभिषेक और दुग्धाभिषेक किया जा रहा है। शिवालयों में रुद्राभिषेक का भी आयोजन कराया जा रहा है। सावन में शिव आराधना का विशेष महत्व है। पवित्र श्रावस में शिवपूजा का कई गुना फल मिलता है। लखनऊ के प्रमुख शिवालयों में सावन के सोमवार पर भगवान शिव का श्रृंगार करने के लिए श्रद्धालु बेहद लालायित रहते हैं। चौक स्थित कोनेश्वर महादेव में अपने आराध्य के दर्शन पूजन के लिए लोग काफी दूर दूर से आते हैं। 

धर्मग्रंथों में है शिवालय का जिक्र
भगवान शिव का ये मंदिर अपने नाम के कारण काफी विशेष है। इसकी पौराणिक मान्यता  रामायण काल से जुड़ी है। यहां शिव गोमती नदी के कोने में विराजमान हैं। इसलिए इसे कोनेश्वर महादेव कहा जाता है। मान्यता है कि गोमती नदी के तट पर कौण्डिन्य ऋषि का आश्रम था। इसका जिक्र कई प्राचीन धर्मग्रंथों में है। कहा जाता है कि माता सीता को वन में छोड़ने आए शोक संतप्त लक्ष्मणजी गोमती तट पर स्थित इस आश्रम में रुके थे। कौण्डिन्य ऋषि ने अपने आश्रम में स्थापित शिवलिंग का अभिषेक एवं पूजन करने को कहा था। इस तथ्य का उल्लेख वाल्मीकि ऋषि ने अपनी रामायण में भी किया है।

कोने में विराजमान हैं कोनेश्वर महादेव
सामान्य तौर पर शिवलिंग किसी मंदिर में मध्य में विराजमान होता है। लेकिन, यहां पर बाबा कोने में विराजमान हैं। पुजारियों के मुताबिक यह मंदिर सदियों पहले गोमती नदी के करीब था। कौण्डिन्य ऋषि ने गोमती के तट पर शिवलिंग की स्थापना की। शिवालय के निर्माण के दौरान, कई बार बीच में शिवलिंग को स्थापित करने का प्रयास किया गया। लेकिन, शिवलिंग अपना स्थान बदल कर पुराने स्थान पर आ जाता था।

रात में जगह बदल लेता था शिवलिंग
कहा जाता है कि ये सिलसिला तीन से चार रातों तक लगातार चलता रहा। इसके बाद ऋषि से परामर्श करने के बाद भगवान को कोने में अपने मूल स्थान पर स्थापित किया गया। इसके बाद से इसका नाम कोनेश्वर महादेव के रूप में विख्यात हो गया। श्रावण मास में यहां सामान्य दिनों की तुलना में कई गुना भीड़ होती है। सावन के तीसरे सोमवार पर सुबह से श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ी हुई है। भीड़ के मद्देनजर विशेष प्रबंध किए गए हैं। 

मनोकामना होती है पूरी
मान्यता है कि जो भी भक्त यहां 40 दिन लगातार नियमानुसार भगवान शिव का जलाभिषेक करता है, उसकी मनोकामना भगवान शंकर अवश्य पूर्ण करते हैं। मनोकामना पूरी होने के बाद श्रद्धालु यहां जलाभिषेक, दुग्धाभिषेक और रुद्राभिषेक करने आते हैं। कुछ वर्षों पहले मंदिर का जीर्णोद्धार भी किया गया है।

जलप्रबंधन को लेकर प्रबंध
कोनेश्वर महादेव मंदिर में भगवान शंकर के अभिषेक के जल को प्यूरीफाई कर उससे भूमिगत जल को बढ़ाए जाने के लिए सोख्ता बनाया गया है। इसके साथ ही ऊर्जा संरक्षण के लिए मंदिर परिसर में सौर ऊर्जा का प्लांट स्थापित किया गया है। मंदिर में महादेव के 12 स्वरूप के दर्शन की अनुभूति होती है। साथ ही 18 भगवान की प्रतिमाएं श्रद्धालुओं को बरबस अपनी ओर आकर्षित करती हैं।

Also Read