योगी सरकार की सख्ती का असर : सात सालों में 46 फीसद घटीं पराली जलाने की घटनाएं, कम्पोस्टिंग से किसानों को मिला लाभ

UPT | पिछले सात सालों में पराली जलाने के मामलों में लगभग 46 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई है।

Oct 02, 2024 14:44

यूपी में सात सालों में पराली जलाने के मामलों में लगभग 46 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई है। 2017 में जहां 8 हजार 784 घटनाएं हुई थीं, वहीं 2023 में यह संख्या घटकर 3 हजार 996 रह गई।

Lucknow News : प्रदेश सरकार की सख्ती और किसानों को प्रोत्साहन देने की नीति ने पराली जलाने की घटनाओं में भारी कमी लाने में अहम भूमिका निभाई है। पिछले सात सालों में पराली जलाने के मामलों में लगभग 46 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई है। 2017 में जहां 8 हजार 784 घटनाएं हुई थीं, वहीं 2023 में यह संख्या घटकर 3 हजार 996 रह गई। सरकार की यह मुहिम अभी भी जारी है, जिसमें किसानों को पराली जलाने से होने वाले नुकसान और कम्पोस्टिंग के लाभों के बारे में जानकारी दी जा रही है।

बायो डी-कंपोजर से किसानों को लाभ 
प्रदेश सरकार किसानों को लगातार पराली जलाने से बचने और उसे कम्पोस्टिंग या सीड ड्रिलिंग के ज़रिये खेत में ही निपटाने के लिए प्रोत्साहित कर रही है। इसके लिए सरकार बायो डी-कंपोजर भी उपलब्ध करा रही है। एक बोतल बायो डी-कंपोजर से एक एकड़ भूमि में पराली की कम्पोस्टिंग की जा सकती है। साथ ही, पराली जलाने पर 15 हजार रुपये का जुर्माना भी लगाया जाता है, जिससे किसान इसे जलाने के बजाय अन्य उपाय अपनाने के लिए प्रेरित हो रहे हैं।



पराली कम्पोस्टिंग के फायदे
पराली जलाने से मिट्टी के लिए महत्वपूर्ण पोषक तत्व नाइट्रोजन, फॉस्फोरस और पोटाश (NPK) के साथ भूमि के सूक्ष्मजीव भी नष्ट हो जाते हैं, जिससे मिट्टी की गुणवत्ता कम होती है। एक अध्ययन के अनुसार, प्रति एकड़ पराली जलाने पर 400 किलो उपयोगी कार्बन और मिट्टी में मौजूद अरबों की संख्या में सूक्ष्मजीव भी नष्ट हो जाते हैं। इसके विपरीत अगर पराली की कम्पोस्टिंग की जाए तो मिट्टी को यह पोषक तत्व वापस मिलते हैं, जिससे अगली फसल में 25 प्रतिशत तक उर्वरक की बचत होती है और खेती की लागत में कमी आती है। साथ ही, यह पर्यावरण संरक्षण और ग्लोबल वार्मिंग को कम करने में भी मददगार साबित होता है।

कृषि के लिए जल संरक्षण में मदद
पराली के अवशेष खेत में छोड़ने से मिट्टी की नमी संरक्षित रहती है, जिससे भूमि की जल धारण क्षमता बढ़ती है और सिंचाई के लिए कम पानी की आवश्यकता होती है। इससे न केवल सिंचाई की लागत घटती है बल्कि दुर्लभ जल स्रोतों का संरक्षण भी होता है। सरकार के इन प्रयासों से किसान धीरे-धीरे पराली जलाने के बजाय उसकी कम्पोस्टिंग और अन्य विकल्पों को अपनाने लगे हैं, जिससे आने वाले वर्षों में भी यह सकारात्मक बदलाव जारी रहने की उम्मीद है।

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