Satellite Based Toll : अब सैटेलाइट के जरिए कटेगा टोल टैक्स, जानें कैसे काम करेगी तकनीक

UPT | नई तकनीक।

Jun 10, 2024 22:03

इलेक्ट्रॉनिक टोल कलेक्शन सिस्टम लागू करने के लिए वैश्विक स्तर पर एक सर्वे करवाया है। जिसमें लोगों से उनका इंटरेस्ट पूछा गया। एनएचएआई ने एक आधिकारिक बयान में इसकी जानकारी दी। इस पहल का उद्देश्य हाईवे पर स्थित टोल बूथों को समाप्त करना है...

Delhi News : टोल टैक्स कटवाने के लिए अब आपको अलग से कोई मेहनत करने की जरूरत नहीं है। इसके लिए सैटेलाइट बेस्ड तकनीक लाई जा रही है। भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (NHAI) ने नेशनल हाईवे पर यात्रियों को बिना किसी बाधा के टोल अनुभव देने के लिए GNSS (ग्लोबल नेविगेशन सैटेलाइट सिस्टम) आधारित इलेक्ट्रॉनिक टोल कलेक्शन सिस्टम लागू करने के लिए वैश्विक स्तर पर एक सर्वे करवाया है। जिसमें लोगों से उनका इंटरेस्ट पूछा गया। एनएचएआई ने एक आधिकारिक बयान में इसकी जानकारी दी। इस पहल का उद्देश्य हाईवे पर स्थित टोल बूथों को समाप्त करना है।

एनएचएआई का आधिकारिक बयान
बयान में कहा गया है, "राष्ट्रीय राजमार्ग उपयोगकर्ताओं को सुगम और निरंतर टोलिंग अनुभव प्रदान करने और टोल संचालन की दक्षता एवं पारदर्शिता बढ़ाने के लिए, NHAI द्वारा प्रवर्तित कंपनी भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्रबंधन कंपनी लिमिटेड (IHMCL) ने भारत में जीएनएसएस-आधारित इलेक्ट्रॉनिक टोल संग्रह प्रणाली को विकसित और लागू करने के लिए नवोन्मेषी और सक्षम कंपनियों से वैश्विक अभिरुचि की अभिव्यक्ति (EOI) आमंत्रित की है।"बयान में यह भी उल्लेख किया गया है कि उन्नत सैटेलाइट तकनीक का लाभ उठाने के लिए, EoI का उद्देश्य उन अनुभवी और सक्षम कंपनियों की पहचान करना है जो मजबूत, स्केलेबल और कुशल टोल चार्जर सॉफ्टवेयर प्रदान कर सकें। ये कंपनियां भारत में GNSS आधारित इलेक्ट्रॉनिक टोल संग्रह प्रणाली के कार्यान्वयन के लिए महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगी। 
सैटेलाइट बेस्ड टोल कलेक्शन तकनीक से यह फायदा होगा 
  •  नेशनल हाईवे पर वाहनों का आवागमन सुगम होगा और हाईवे उपयोगकर्ताओं को कई लाभ मिलेंगे।
  •  बिना किसी रुकावट के टोल भुगतान होगा, जिससे यात्रा का अनुभव परेशानी मुक्त होगा। 
  • दूरी-आधारित टोलिंग के माध्यम से उपयोगकर्ता केवल उसी हिस्से का भुगतान करेंगे जिस पर उन्होंने यात्रा की है।
  • जीएनएसएस-आधारित टोल संग्रह प्रणाली से टोल संग्रह की दक्षता में भी वृद्धि होगी। 
  • यह प्रणाली टोल चोरी और सिस्टम में किसी भी तरह की लीकेज को रोकने में मदद करेगी
  • टोल संग्रह पारदर्शी और अधिक प्रभावी होगा।
 

This EOI aims to identify experienced and capable companies that can deliver robust, scalable, and efficient Toll Charger Software, which will serve as the backbone for implementing GNSS-based Electronic Toll Collection in India.

— NHAI (@NHAI_Official) June 7, 2024
ग्लोबल नेविगेशन सैटेलाइट सिस्टम (GNSS) आधारित टोल संग्रह क्या है?
पारंपरिक टोल संग्रह में टोल प्लाजा पर भुगतान किया जाता था, जिसमें कर्मचारियों की आवश्यकता होती थी, और FASTag के बावजूद ट्रैफिक जाम की समस्या रहती थी। जीएनएसएस आधारित टोल संग्रह प्रणाली सैटेलाइट और ट्रैकिंग सिस्टम का उपयोग करके वाहन द्वारा तय की गई दूरी को मापती है और उसके अनुसार टोल वसूलती है।

जीपीएस-आधारित टोल कलेक्शन क्या है?
जीपीएस-आधारित टोल कलेक्शन सिस्टम सैटेलाइट और ट्रैकिंग सिस्टम का उपयोग करके वाहन द्वारा तय की गई दूरी को मापता है और उसी के आधार पर टोल वसूलता है। यह प्रणाली टोल प्लाजा की आवश्यकता को समाप्त करती है और यात्रियों का समय बचाती है।

यह FASTag से कैसे अलग है?
FASTag के विपरीत, सैटेलाइट-आधारित जीपीएस टोल संग्रह प्रणाली ग्लोबल नेविगेशन सैटेलाइट सिस्टम (GNSS) पर काम करती है, जो सटीक स्थान ट्रैकिंग क्षमता प्रदान करती है। यह प्रणाली दूरी के आधार पर सटीक टोल गणना के लिए ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम (GPS) और भारत के GPS एडेड जियो ऑगमेंटेड नेविगेशन (GAGAN) जैसी तकनीकों का उपयोग करती है। 

The system will be integrated into the current #FASTag ecosystem, starting with a hybrid model that operates both RFID-based and GNSS-based ETC simultaneously. Dedicated GNSS lanes will also be provided at toll plazas, allowing GNSS-based ETC vehicles to pass through freely.

— NHAI (@NHAI_Official) June 7, 2024
ग्लोबल नेविगेशन सैटेलाइट सिस्टम कैसे काम करता है?
इस प्रणाली में ऑन-बोर्ड यूनिट (OBU) या ट्रैकिंग डिवाइस वाले वाहनों से हाईवे पर तय की गई दूरी के आधार पर शुल्क लिया जाता है। डिजिटल इमेज प्रोसेसिंग द्वारा नेशनल हाईवे के साथ निर्देशांक रिकॉर्ड किए जाते हैं, जिससे सॉफ्टवेयर को टोल दरों का निर्धारण करने की अनुमति मिलती है। सीसीटीवी कैमरों से लैस गैंट्री सुचारू संचालन सुनिश्चित करते हुए अनुपालन की निगरानी करते हैं।

ऑन-बोर्ड यूनिट (OBU)
वाहनों में टोल संग्रह के लिए ऑन-बोर्ड यूनिट (OBU) लगाए जाएंगे, जो ट्रैकिंग डिवाइस के रूप में कार्य करेंगे।

ट्रैकिंग सिस्टम
OBU हाईवे और टोल सड़कों पर कार के निर्देशांक को ट्रैक करेगा और उपग्रहों के साथ साझा करेगा ताकि दूरी की सटीक गणना की जा सके।

जीपीएस और जीएनएसएस
यह प्रणाली दूरी की सटीक गणना के लिए ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम (GPS) और ग्लोबल नेविगेशन सैटेलाइट सिस्टम (GNSS) का उपयोग करती है।

कैमरे
हाईवे पर लगे कैमरे कार के निर्देशांक की तुलना ली गई तस्वीरों से करते हैं, जिससे उचित दूरी माप सुनिश्चित होता है।

कार्यान्वयन
प्रारंभ में, इस प्रणाली को प्रमुख हाईवे और एक्सप्रेसवे पर लागू किया जाएगा।

OBU की उपलब्धता
OBU सरकारी वेबसाइटों पर उपलब्ध होंगे, जैसे कि FASTag की खरीद प्रक्रिया है।

इंस्टॉलेशन
प्रारंभिक चरण में, OBU को वाहनों में बाहरी रूप से स्थापित करना होगा। भविष्य में, कार निर्माता इन उपकरणों को पहले से ही इंस्टॉल करके कारें बेच सकते हैं।

भुगतान प्रक्रिया
एक बार OBU लग जाने के बाद, तय की गई दूरी के आधार पर लिंक किए गए बैंक खाते से स्वतः टोल राशि कट जाएगी।

भुगतान प्रक्रिया और पायलट कार्यान्वयन
OBU से जुड़े डिजिटल वॉलेट से स्वचालित रूप से भुगतान किया जाएगा, जिससे टोल भुगतान प्रक्रिया सरल हो जाएगी। चुनिंदा राष्ट्रीय राजमार्गों पर पायलट परियोजनाएं इस GNSS-आधारित इलेक्ट्रॉनिक टोल संग्रह (ETC) प्रणाली की प्रभावशीलता की जांच करेंगी, जिसे शुरू में FASTag के साथ मिलाकर लागू किया जाएगा।

टोल राजस्व पर प्रभाव
वर्तमान में, भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (NHAI) टोल राजस्व के रूप में लगभग 40,000 करोड़ रुपये एकत्र करता है। इस नई उन्नत टोल संग्रह प्रणाली के आने वाले 2-3 वर्षों में लागू होने पर यह आंकड़ा बढ़कर 1.40 लाख करोड़ रुपये तक पहुंचने की संभावना है।

क्या यह भारत में चल पाएगा?
भारत के विशाल सड़क नेटवर्क और विभिन्न प्रकार के वाहनों के कारण GPS-आधारित टोल संग्रह प्रणाली को लागू करने में चुनौतियां आ सकती हैं। हालांकि, डिजिटल लेनदेन और नई तकनीकों को अपनाने में भारत की दक्षता को देखते हुए, यह प्रणाली सफल हो सकती है। इसके लिए मौजूदा बुनियादी ढांचे में महत्वपूर्ण बदलावों की आवश्यकता होगी, जो वर्तमान FASTag केंद्रित सिस्टम को बदलने का कार्य करेगा और टोल कीमतों में वृद्धि का कारण बन सकता है। इन चुनौतियों के बावजूद, यह प्रणाली भारत में टोल संग्रह प्रक्रियाओं को अधिक सुव्यवस्थित करने का एक आधुनिक दृष्टिकोण प्रदान करती है।

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