Lal Krishna Advani Ram Mandir : आडवाणी की रथयात्रा से उठी थी 'राम लहर', अयोध्या में राम मंदिर की इबारत लिखने में लालकृष्ण आडवाणी बने सबसे बड़ा चेहरा

UPT | Lal Krishna Advani Ram Mandir

Feb 03, 2024 13:23

अयोध्या के राम मंदिर निर्माण के लिए यह लहर जन-जन तक पहुंचाने का काम आडवाणी ने अपनी रथयात्रा की बदौलत किया। आपको बता दें कि 1990 में गुजरात के सोमनाथ से शुरू हुई...

Lucknow News : 1975 में आपातकाल की घोषणा के बाद प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के विरोध में पूरे विपक्ष ने मिलकर जिस जनता पार्टी का गठन किया था, उसमें 1951 में डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी द्वारा स्थापित भारतीय जनसंघ का भी विलय हुआ था। जनसंघ के स्थापना वर्ष में ही लाल कृष्ण आडवाणी ने इसकी सदस्यता ले ली थी। उन्हीं आडवाणी ने 1977 के चुनावों में जीती जनता पार्टी के अंदरूनी कलह में फंसने के बाद अटल बिहारी वाजपेयी के साथ भारतीय जनता पार्टी की स्थापना की। भाजपा के लिए पहला लोकसभा चुनाव 1984 का था। प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या हो चुकी थी। सहानुभूति की लहर पर सवार कांग्रेस पार्टी की एकतरफा जीत हुई और भाजपा को सिर्फ दो सीटों पर सफलता मिली। जिसके बाद पार्टी अध्यक्ष अटल बिहारी वाजपेयी ने अपना पद छोड़ दिया और आडवाणी नए पार्टी प्रमुख बने। अटल की तुलना में आडवाणी हिंदुत्व को लेकर ज्यादा मुखर थे। उनके इस मानस का असर पार्टी की नीतियों और कामकाज पर भी दिखने लगा। कुछ साल पहले ही विश्व हिंदू परिषद ने अयोध्या में बाबरी मस्जिद की जगह राम मंदिर के निर्माण का आंदोलन शुरू किया था। आडवाणी के नेतृत्व में भाजपा ने भी राम मंदिर निर्माण के लक्ष्य को अपने घोषणा पत्र में शामिल कर लिया।

रथयात्रा के जरिए जन-जन तक पहुंचे आडवाणी
अयोध्या के राम मंदिर निर्माण के लिए यह लहर जन-जन तक पहुंचाने का काम आडवाणी ने अपनी रथयात्रा की बदौलत किया। आपको बता दें कि 1990 में गुजरात के सोमनाथ से शुरू हुई उनकी रथयात्रा को भले ही बीच में ही बिहार में तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव ने रोक ली हो, लेकिन इसके बदौलत भाजपा 1991 के चुनाव में 120 सीटें जीतने में सफल रही।

राम मंदिर निर्माण का संकल्प कभी पीछे नहीं छूटा 
1992 में बाबरी मस्जिद विध्वंस के समय खुद मंच पर उपस्थित थे, इसी कारण सीबीआई ने आपराधिक साजिश में उन्हें आरोपी बनाया। बाबरी मस्जिद विध्वंस की निंदा करते हुए भी आडवाणी ने कभी भी राम मंदिर निर्माण के संकल्प को पीछे नहीं छूटने दिया, बल्कि इसे बाकायदा भाजपा के चुनावी घोषणापत्र का हिस्सा बना दिया और 1996 में भाजपा लोकसभा में सबसे बड़ी पार्टी के रूप में सामने आई।

आडवाणी की बनी कट्टर हिंदूवादी छवि
भाजपा के असली संगठनकर्ता होने के बावजूद लालकृष्ण आडवाणी जानते थे कि उनकी कट्टर हिंदूवादी छवि के कारण पार्टी को संसद में सहयोगी जुटाना आसान नहीं होगा और पार्टी ने नरमपंथी अटल बिहारी वाजपेयी को प्रधानमंत्री के चेहरे के रूप में आगे किया। लेकिन राजग सरकार में हमेशा नंबर दो पर रहे और बाद में उप प्रधानमंत्री भी बने।

2009 के बाद पार्टी पर पकड़ ढीली हुई 
उनके खिलाफ पार्टी के अंदर ही विरोध फूट पड़ा था। इसके बावजूद आडवाणी पार्टी पर अपनी पकड़ मजबूत रखने और राजग से मुख्य सहयोगियों को एकजुट रखने में सफल रहे। लेकिन 2009 के लोकसभा चुनाव में 2004 से बड़ी हार के बाद आडवाणी की पार्टी पर पकड़ ढीली पड़ने लगी। पर यह सच है कि जब भी भाजपा की जीवन यात्रा का वर्णन होगा तो आडवाणी शीर्ष पुरुषों में शामिल होंगे। 

Also Read