चौधरी चरण सिंह का 'अजगर' समीकरण, जयंत की नई धार : क्या राजनीति में नया अध्याय लिखेंगे 'बागपत के लाल'?

UPT | क्या राजनीति में नया अध्याय लिखेंगे 'बागपत के लाल'?

Jul 18, 2024 21:07

रालोद प्रमुख जयंत चौधरी ने अपने दादा चौधरी चरण सिंह के प्रसिद्ध 'अजगर' समीकरण को नए युग की राजनीति के अनुरूप पुनर्परिभाषित किया है। इस नवीनीकृत रणनीति में, 'अ' अब अहीर (यादव) के बजाय अगड़ा और अल्पसंख्यक वर्गों का प्रतीक बन गया है।

Short Highlights
  • 'अजगर' समीकरण को जयंत की नई धार
  • संगठनात्मक ढांचे में लागू करने की कोशिश
  • अल्पसंख्यकों में पैठ मजबूत करेगी रालोद
New Delhi : रालोद प्रमुख जयंत चौधरी ने अपने दादा चौधरी चरण सिंह के प्रसिद्ध 'अजगर' समीकरण को नए युग की राजनीति के अनुरूप पुनर्परिभाषित किया है। इस नवीनीकृत रणनीति में, 'अ' अब अहीर (यादव) के बजाय अगड़ा और अल्पसंख्यक वर्गों का प्रतीक बन गया है। यह बदलाव वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य में रालोद की स्थिति को मजबूत करने का एक प्रयास है।

क्या है अजगर का मतलब?
'अजगर' समीकरण, जिसका मूल रूप से अर्थ अहीर (यादव), जाट, गूजर और राजपूत जातियों का गठबंधन था, को पहली बार किसान नेता सर छोटूराम ने प्रस्तुत किया था। बाद में, चौधरी चरण सिंह ने इसे यूपी की राजनीति में प्रभावी ढंग से लागू किया, जिससे कांग्रेस के लंबे समय से चले आ रहे प्रभुत्व को चुनौती मिली। जयंत चौधरी के नेतृत्व में, रालोद ने इस ऐतिहासिक समीकरण को आधुनिक समय की आवश्यकताओं के अनुरूप संशोधित किया है। नए 'अगजर' समीकरण में 'अ' अब अगड़ा और अल्पसंख्यक समुदायों का प्रतिनिधित्व करता है। यह बदलाव मुख्य रूप से समाजवादी पार्टी के साथ यादव समुदाय के मजबूत संबंधों के कारण किया गया है।

संगठनात्मक ढांचे में लागू करने की कोशिश
इस नए दृष्टिकोण का प्रभाव पहले से ही दिखाई दे रहा है। 2022 के विधानसभा चुनावों में रालोद ने नौ सीटें जीतीं, जबकि 2024 के लोकसभा चुनावों में दो सीटें हासिल कीं। यह परिणाम पार्टी के लिए एक बड़ी उपलब्धि है, खासकर 2022 से पहले के निराशाजनक प्रदर्शन को देखते हुए।रालोद अब इस नए समीकरण को अपने संगठनात्मक ढांचे में भी लागू करने की योजना बना रही है। पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव संगठन त्रिलोक त्यागी के अनुसार, जल्द ही पार्टी संरचना में इस नए दृष्टिकोण की झलक देखने को मिलेगी।

अल्पसंख्यकों में पैठ मजबूत करेगी रालोद
यह रणनीतिक बदलाव न केवल रालोद के लिए, बल्कि उत्तर प्रदेश की राजनीति के लिए भी महत्वपूर्ण है। यह पार्टी को विभिन्न समुदायों, विशेष रूप से अगड़ा वर्गों और अल्पसंख्यकों के बीच अपनी पैठ बढ़ाने में मदद कर सकता है। साथ ही, यह बदलाव उत्तर प्रदेश में जातीय समीकरणों के बदलते स्वरूप को भी दर्शाता है। हालांकि, यह देखना बाकी है कि यह नया समीकरण लंबे समय में कितना प्रभावी साबित होगा। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि रालोद को इस नए गठबंधन को मजबूत करने और अपने मूल समर्थक आधार को बनाए रखने के बीच एक नाजुक संतुलन बनाना होगा। समग्र रूप से, जयंत चौधरी की यह पहल उत्तर प्रदेश की राजनीति में एक नया अध्याय खोलने की क्षमता रखती है। यह न केवल रालोद के भविष्य को आकार देगी, बल्कि राज्य के राजनीतिक परिदृश्य को भी प्रभावित कर सकती है।

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