झूठी गवाही का आरोप : यूपी के पूर्व प्रमुख सचिव राजेश सिंह को सुप्रीम कोर्ट का नोटिस 

UPT | सुप्रीम कोर्ट

Sep 09, 2024 21:34

उत्तर प्रदेश कारागार प्रशासन एवं सुधार विभाग के पूर्व प्रमुख सचिव राजेश कुमार सिंह पर झूठी गवाही के आरोप के चलते सुप्रीम कोर्ट ने सख्त रुख अपनाया है।

New Delhi : उत्तर प्रदेश कारागार प्रशासन एवं सुधार विभाग के पूर्व प्रमुख सचिव राजेश कुमार सिंह पर झूठी गवाही के आरोप के चलते सुप्रीम कोर्ट ने सख्त रुख अपनाया है। सर्वोच्च न्यायालय ने राजेश कुमार सिंह को एक कैदी की छूट फाइल को संसाधित करने में देरी के मामले में झूठी गवाही देने के आरोप में अवमानना नोटिस जारी किया है। इस मामले की सुनवाई न्यायमूर्ति अभय एस ओका और न्यायमूर्ति ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की बेंच द्वारा की जा रही है, जिन्होंने सिंह के विरोधाभासी बयानों पर गंभीर असंतोष व्यक्त किया है।

न्यायालय का सख्त रुख
कार्यवाही के दौरान, न्यायमूर्ति अभय एस ओका ने सिंह की आलोचना करते हुए कहा, "हमें लगा था कि यह अधिकारी अपनी गलती स्वीकार कर लेगा, लेकिन पिछले तीन मौकों से उसने केवल झूठ बोला है। आपने अपनी गलती स्वीकार नहीं की है, अब आपको इसका खामियाजा भुगतना होगा।” न्यायालय ने सिंह के बयानों को भ्रामक बताया और कहा कि उनके कार्यों से छूट की प्रतीक्षा कर रहे कैदी की स्वतंत्रता खतरे में पड़ सकती है। 



झूठी गवाही के आरोपों पर नोटिस जारी
सुप्रीम कोर्ट ने सिंह की भूमिका की गंभीरता को देखते हुए उनकी कार्यप्रणाली पर सवाल उठाए और कहा कि यह घटना प्रशासनिक व्यवस्था में एक "बहुत खेदजनक स्थिति" को दर्शाती है। अदालत ने सिंह के खिलाफ अवमानना और झूठी गवाही के आरोपों पर नोटिस जारी किया है, जिसमें उनसे पूछा गया है कि उनके खिलाफ आपराधिक अवमानना की कार्यवाही क्यों न की जाए।

विवाद की शुरुआत
मामला तब शुरू हुआ जब राजेश कुमार सिंह ने राज्य सचिवालय की धीमी प्रतिक्रिया और चुनाव आचार संहिता लागू होने को देरी का कारण बताया। हालांकि, बाद में दिए गए हलफनामों में यह बात सामने आई कि सिंह द्वारा बताए गए ये कारण गलत थे। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने 20 और 28 अगस्त को सिंह के स्पष्टीकरण की प्रामाणिकता पर गंभीर सवाल उठाए। सिंह की दलीलों को खारिज करते हुए, अदालत ने उनकी गवाही को झूठा और भ्रामक करार दिया।

राज्य की कार्रवाई पर सवाल
इस मामले में और जटिलता तब बढ़ी जब राज्य द्वारा रिकॉर्ड पर मौजूद अधिवक्ता पर दोष मढ़ने की कोशिश की गई। राज्य ने अधिवक्ता पर समय पर न्यायालय के आदेशों को संप्रेषित करने में विफल रहने का आरोप लगाया। हालांकि, न्यायालय ने इस प्रयास की आलोचना करते हुए कहा कि यह सिर्फ जिम्मेदारी से बचने की एक कोशिश थी। अदालत ने कहा कि राज्य सरकार ने इस मामले को गंभीरता से नहीं लिया और यह प्रशासन की लापरवाही का परिणाम है।

मुख्य सचिव से स्पष्टीकरण की मांग
न्यायालय ने उत्तर प्रदेश के मुख्य सचिव को इस मामले में 24 सितंबर तक एक विस्तृत हलफनामा दाखिल करने का आदेश दिया है, जिसमें राज्य के अधिकारियों की कार्रवाई और देरी के कारणों को स्पष्ट करना होगा। अगली सुनवाई 27 सितंबर को निर्धारित की गई है, जहां अवमानना नोटिस और कैदी की छूट के मुद्दों पर आगे की कार्यवाही होगी।

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