Prayagraj News : 100 वारंट के बाद भी पेश नहीं हुए सपा विधायक, हाई कोर्ट ने 1995 के मामले में राहत देने से किया इनकार

UPT | इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सपा विधायक को राहत देने से किया इनकार

May 09, 2024 12:20

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 1995 के मामले में मेरठ विधायक को राहत देने से इनकार कर दिया है। 29 साल बाद हाईकोर्ट ने उन्हें राहत देने से इनकार करते हुए कहा कि गंभीर आपराधिक आरोपों का सामना कर रहे व्यक्तियों को कानूनी जवाबदेही से ...

Prayagraj News : इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 1995 के एक मामले में मेरठ से समाजवादी पार्टी विधायक रफीक अंसारी के खिलाफ आपराधिक मामला रद्द करने से इनकार कर दिया है। 1997 से 2015 के बीच लगभग 100 गैर-जमानती वारंट जारी होने के बावजूद अंसारी ट्रायल कोर्ट में पेश नहीं हुए।

विधानसभा सत्र में भाग लेने की इजाजत देना खतरनाक
रफीक अंसारी द्वारा दायर एक आवेदन को खारिज करते हुए, जस्टिस संजय कुमार सिंह ने कहा कि मौजूदा विधायक के खिलाफ गैर-जमानती वारंट पर ध्यान न देना और उन्हें विधानसभा सत्र में भाग लेने की इजाजत देना एक खतरनाक और गंभीर मिसाल कायम करेगा। अदालत ने कहा कि गंभीर आपराधिक आरोपों का सामना कर रहे व्यक्तियों को कानूनी जवाबदेही से बचने की अनुमति देकर हम कानून के प्रति दंडमुक्ति और अनादर की संस्कृति को कायम रखने का जोखिम खड़ा करते हैं।

विधायक ने धारा 482 के तहत याचिका दायर की थी
रफीक अंसारी ने धारा 482 के तहत एक याचिका दायर की थी, जिसमें मांग की थी कि मेरठ में अतिरिक्त मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट की एमपी/एमएलए कोर्ट में आपराधिक मामला चल रहा है, जिसे रद्द किया जाए। यह मामला 1995 में मेरठ के नौचंदी पुलिस स्टेशन में दर्ज किया गया था। जांच के बाद 22 आरोपियों के खिलाफ पहला आरोप पत्र दायर किया गया था और उसके बाद आवेदक अंसारी के खिलाफ एक और पूरक आरोप पत्र दायर किया गया था, जिस पर संबंधित अदालत ने अगस्त 1997 में संज्ञान लिया था।

101 वारंट जारी लेकिन कोर्ट में पेश नहीं हुए
विधायक अंसारी सुनवाई के दौरान कोर्ट में पेश नहीं हुए, इसलिए 12 दिसंबर 1997 को एक गैर-जमानती वारंट जारी किया गया। इसके बाद उनके खिलाफ बार-बार गैर-जमानती वारंट (जिनकी संख्या 101 है) जारी होते रहे लेकिन अंसारी ट्रायल कोर्ट में पेश नहीं हुए।

अंसारी के वकील की दलील
हाई कोर्ट में सुनवाई के दौरान अंसारी के वकील ने दलील दी कि अंसारी के खिलाफ आपराधिक कार्यवाही को इस आधार पर रद्द करने की मांग की कि मामले में मूल रूप से आरोपित 22 आरोपियों को मुकदमे का सामना करने के बाद पहले ही बरी कर दिया गया था।

शुरुआत में, कोर्ट ने माना कि किसी भी आरोपी के खिलाफ आपराधिक मुकदमे में दर्ज किए गए सबूत केवल उस आरोपी की दोषीता तक ही सीमित हैं और इसका सह-अभियुक्तों पर कोई असर नहीं पड़ता है, जिन पर अलग से मुकदमा चलाया गया है या जाएगा। अंसारी की याचिका को खारिज करते हुए, अदालत ने कहा कि सह-अभियुक्तों को बरी किए जाने को सीआरपीसी की धारा 482 के तहत प्रासंगिक परिस्थितियों में आरोपियों और जिन्होंने मामला दायर किया है, के खिलाफ कार्यवाही को रद्द करने की शक्ति का प्रयोग करने का आधार नहीं माना जा सकता है। 

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