श्री पंचायती अखाड़ा बड़ा उदासीन की कहानी : 1600 शाखाओं में फैली परंपरा, चार महंत करते हैं अखाड़े का संचालन

UPT | श्री पंचायती अखाड़ा बड़ा उदासीन

Jan 11, 2025 17:19

प्रयागराज में 13 जनवरी से महाकुंभ का आयोजन शुरू होने जा रहा है, जो एक ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व का अवसर है। लाखों श्रद्धालु और साधु-संत इस आयोजन में भाग लेने के लिए संगम नगरी पहुंच रहे हैं....

Prayagraj News : प्रयागराज में 13 जनवरी से महाकुंभ का आयोजन शुरू होने जा रहा है, जो एक ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व का अवसर है। लाखों श्रद्धालु और साधु-संत इस आयोजन में भाग लेने के लिए संगम नगरी पहुंच रहे हैं। महाकुंभ में 13 प्रमुख अखाड़ों के साधु संत पवित्र नदियों में स्नान करेंगे। इन अखाड़ों में से एक प्रमुख अखाड़ा है – श्री पंचायती अखाड़ा बड़ा उदासीन। इस अखाड़े की स्थापना और परंपरा से जुड़ी कई रोचक बातें हैं, जो साधारण जन के लिए जानना दिलचस्प हो सकता है।

उदासीन का अर्थ क्या है?
श्री पंचायती अखाड़ा बड़ा उदासीन का इतिहास बहुत पुराना है और यह 111 साल पुराना अखाड़ा है। इस अखाड़े में कोई नागा साधु नहीं होते, जो इसे अन्य अखाड़ों से अलग बनाता है। अखाड़े का नाम ‘उदासीन’ ब्रह्मा के समाधिस्थ स्वरूप से संबंधित है, जो आत्मिक शांति और परब्रह्म के ध्यान में लीन होने का प्रतीक है। इस अखाड़े का मुख्य आश्रम प्रयागराज में स्थित है।



कब हुई थी अखाड़े की स्थापना
इस अखाड़े की स्थापना 1825 ईस्वी में हरिद्वार के हर की पौड़ी पर हुई थी। इसके संस्थापक निर्वाण बाबा प्रीतम दास महाराज थे और इस अखाड़े के पथप्रदर्शक आचार्य श्री चंद्रदेव थे, जो गुरु नानक देव के पुत्र थे। धार्मिक विद्वानों के अनुसार, यह अखाड़ा ब्रह्मा के प्रति आस्था और ध्यान को महत्व देता है और वही इस अखाड़े के सदस्यों के मुख्य उद्देश्य हैं।

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सांसारिक वासनाओं से होते हैं मुक्त
महंत कोठारी शिनावनंद महाराज के अनुसार, उदासीन परंपरा उन व्यक्तियों से जुड़ी है, जो सांसारिक वासनाओं से मुक्त होकर ब्रह्मा के ध्यान में लीन हो जाते हैं। वह इसे एक उच्च स्तरीय ध्यान और समाधि की अवस्था मानते हैं। वे बताते हैं कि मध्यकाल में जब उदासीन परंपरा लुप्त होने लगी थी, तब अविनाशी मुनि और भगवान चंद्र देव ने इस परंपरा को पुनर्जीवित किया और इसे मजबूत किया।

कौन हैं अखाड़े के इष्ट देव
इस अखाड़े का अपना विशेष इष्ट देव है – श्री श्री 1008 चंद्र देव जी, जिनकी पूजा अखाड़े के साधु-संत करते हैं। चंद्र देव ने इस संप्रदाय की 165वीं आचार्य की भूमिका भी निभाई थी। अखाड़ा सनातन धर्म और सिख पंथ दोनों की परंपराओं का पालन करता है और इसके देशभर में 1600 शाखाएं हैं। इसमें चार पंगत होती हैं और इन पंगतों के चार महंत होते हैं, जिनमें से एक श्रीमहंत अखाड़े का संचालन करते हैं।

भगवान चंद्राचार्य से जुड़ी है परंपरा
श्री पंचायती अखाड़ा बड़ा उदासीन की परंपरा भगवान श्री चंद्राचार्य से जुड़ी हुई है। उनके द्वारा स्थापित संस्कृत पाठशाला, अस्पताल और मंदिरों की परंपरा आज भी जारी है। इस अखाड़े की स्थापना 1825 में हरिद्वार के राजघाट पर हुई थी। यह अखाड़ा अपने सदस्य संतों को लोक कल्याण के कार्यों में संलग्न होने के लिए प्रेरित करता है। निर्वाण प्रियतम दास महाराज ने इस अखाड़े की स्थापना दक्षिण भारत के हैदराबाद में भी की थी।

अखाड़े में होते हैं चार मुख्य महंत
अखाड़े में निर्णय लेने की प्रक्रिया में चार मुख्य महंत होते हैं, जो सभी महत्वपूर्ण फैसलों में भाग लेते हैं। वर्तमान में महंत महेश्वर दास महाराज अखाड़े के अध्यक्ष हैं। उनके साथ महंत रघु मुनि महाराज, महंत दुर्गा दास महाराज और महंत अद्वैतानंद महाराज प्रमुख हैं। ये सभी महंत अखाड़े के कार्यों और धार्मिक अनुष्ठानों का संचालन करते हैं और साधु-संतों को दिशा-निर्देश देते हैं।

अखाड़ा करता है स्कूल और अस्पताल का संचालन
पंचायती अखाड़ा बड़ा उदासीन का उद्देश्य सनातन धर्म की रक्षा और लोक कल्याण के कार्यों को बढ़ावा देना है। यह अखाड़ा भंडारा, निशुल्क चिकित्सा, शिक्षा और धर्मशालाओं की स्थापना करता है। इसके द्वारा चलाए जा रहे स्कूल, कॉलेज और अस्पताल देशभर में लोगों की सेवा कर रहे हैं। यह अखाड़ा सामाजिक कार्यों के माध्यम से लोगों को भारतीय संस्कृति से जोड़ने का कार्य करता है।

क्या कहती हैं धार्मिक मान्यताएं
अखाड़े की धार्मिक मान्यता के अनुसार, निर्वाण देव श्री प्रियतम दास महाराज को नेपाल के तराई क्षेत्र में बाबा बनखंडी से दर्शन प्राप्त हुए थे, जिन्होंने उनकी कठिन तपस्या की परीक्षा ली थी। बाबा बनखंडी ने उन्हें पवित्र धूनी से विभूति का गोला प्रदान किया था, जो आज भी इस अखाड़े में पूजा जाता है। यह गोला अखाड़े की आस्था का एक महत्वपूर्ण प्रतीक बन गया है।

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देशभर में फैली हैं शाखाएं
पंचायती अखाड़ा बड़ा उदासीन की शाखाएं देश के विभिन्न हिस्सों में फैली हुई हैं। उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, बिहार, हरियाणा, पंजाब, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, गुजरात और हैदराबाद में इसके प्रमुख केंद्र हैं। यह अखाड़ा हर स्थान पर स्थानीय लोगों के बीच धार्मिक और सामाजिक सेवाएं प्रदान करता है, जिनमें संस्कृत विद्यालय, आयुर्वेदिक अस्पताल और होम्योपैथी क्लीनिक शामिल हैं।

धर्म ध्वजा पर हनुमान की तस्वीर
इस अखाड़े की धर्म ध्वजा का भी विशेष महत्व है। इसमें भगवान हनुमान की तस्वीर और चक्र का प्रतीक होता है। महाकुंभ के दौरान अखाड़े के साधु-संत गंगा स्नान के लिए जाते हैं और ध्यान में मग्न रहते हुए दिनचर्या का पालन करते हैं। अखाड़े में नागा साधु नहीं बनाए जाते और इसकी परंपरा अत्यंत सख्त होती है।

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