भ्रूण प्रत्यारोपण में काशी हिंदू विश्व विद्यालय के विज्ञानियों को मिली सफलता : साहिवाल नस्ल के पहले भ्रूण प्रत्यारोपण का हुआ सफलता 

UPT | साहिवाल नस्ल के भ्रूण प्रत्यारोपण को मिली पहली सफलता

Nov 19, 2024 20:27

25 फरवरी को भ्रूण को सफलतापूर्वक एकत्र किया गया, जिसमें विभिन्न विकासात्मक चरणों में 8 उच्च गुणवत्ता वाले भ्रूण शामिल थे, जिन्हें सिंक्रनाइज्ड सरोगेट गायों में प्रत्यारोपित किया गया। इस प्रक्रिया को डॉ. मनीष कुमार (प्रधान अन्वेषक), डॉ. कौस्तुभ किशोर सराफ तथा डॉ. अजीत सिंह (सहायक अन्वेषक) के नेतृत्व में  सफलता पूर्वक क्रियान्वित किया गया।

Varanasi News : राष्ट्रीय कृषि विकास योजना के तहत पशु चिकित्सा और पशु विज्ञान संकाय, कृषि विज्ञान संस्थान बनारस हिंदू विश्वविद्यालय ने साहिवाल नस्ल के पहले सफल भ्रूण प्रत्यारोपण में सफलता प्राप्त की है। जो इस मूल्यवान स्वदेशी गाय की नस्ल के संरक्षण की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। यह परियोजना साहिवाल और गंगा तीरी नस्ल के संरक्षण के लिए सहायक प्रजनन प्रौद्योगिकियों (ART) जैसे कि भ्रूण प्रत्यारोपण और सरोगेसी का उपयोग करती है। 

यह कार्य पशु चिकित्सा और पशु विज्ञान संकाय, राजीव गांधी दक्षिणी परिसर, बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में स्थित बरकच्छा, मिर्जापुर, उत्तर प्रदेश में किया जा रहा है। मंगलवार को इस परियोजना के तहत भ्रूण प्रत्यारोपण से एक मादा साहिवाल बछड़ी का जन्म हुआ, जो इस परियोजना की सफलता का प्रतीक है। मादा गाय और नवजात बछड़ी दोनों पूर्ण रूप से स्वस्थ्य है और बछड़ी का वजन 19.5 किलोग्राम है। भ्रूण प्रत्यारोपण के लिए उच्च आनुवंशिक योग्यता वाले साहीवाल प्रजनन सांड के वीर्य का उपयोग किया गया। 

25 फरवरी को भ्रूण को सफलतापूर्वक एकत्र किया गया, जिसमें विभिन्न विकासात्मक चरणों में 8 उच्च गुणवत्ता वाले भ्रूण शामिल थे, जिन्हें सिंक्रनाइज्ड सरोगेट गायों में प्रत्यारोपित किया गया। इस प्रक्रिया को डॉ. मनीष कुमार (प्रधान अन्वेषक), डॉ. कौस्तुभ किशोर सराफ तथा डॉ. अजीत सिंह (सहायक अन्वेषक) के नेतृत्व में  सफलता पूर्वक क्रियान्वित किया गया। यह सफल भ्रूण प्रत्यारोपण बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के लिए स्वदेशी साहिवाल और गंगातीरी नस्ल के संरक्षण में एक महत्वपूर्ण उपलब्धि है। 

भविष्य में डॉ. मनीष कुमार और उनकी टीम अन्य उन्नत प्रौद्योगिकियों को अपनाने की योजना बना रहे हैं, जिससे सहायक प्रजनन प्रौद्योगिकियों की प्रभावशीलता और दक्षता में और सुधार किया जा सके। इस परियोजना की सफलता से विंध्य क्षेत्र के दूध उत्पादक किसानों के आर्थिक उत्थान में महत्वपूर्ण योगदान मिलेगा। साहिवाल और गंगातीरी नस्ल के संरक्षण से स्वदेशी दूध उत्पादन में सुधार और स्थिरता आएगी, जिससे स्थानीय किसानों को लाभ होगा। इस महत्वपूर्ण उपलब्धि पर संस्थान के निदेशक प्रो. एस.वी.एस. राजू,  संकाय प्रमुख प्रो. एन.के. सिंह और विभागाध्यक्ष प्रो. अमित राज गुप्ता ने परियोजना टीम को बधाई दी और उन्हें इस कार्य को आगे बढ़ाने के लिए प्रोत्साहित किया, ताकि दुग्ध उत्पादक डेयरी किसान लाभान्वित हो सके। 

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