सीएम योगी ने कहा- 'जियो और जीने दो' भारतीय लोकतंत्र का मूल मंत्र : प्रजा का सुख ही राजा की जिम्मेदारी

UPT | मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ

Sep 15, 2024 18:33

रविवार को मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने युगपुरुष ब्रह्मलीन महंत दिग्विजयनाथ महाराज की 55वीं और राष्ट्रसंत ब्रह्मलीन महंत अवेद्यनाथ महाराज की 10वीं पुण्यतिथि के अवसर पर आयोजित समसामयिक विषयों के सम्मेलनों की श्रृंखला के...

Gorakhpur News : रविवार को मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने युगपुरुष ब्रह्मलीन महंत दिग्विजयनाथ महाराज की 55वीं और राष्ट्रसंत ब्रह्मलीन महंत अवेद्यनाथ महाराज की 10वीं पुण्यतिथि के अवसर पर आयोजित समसामयिक विषयों के सम्मेलनों की श्रृंखला के पहले दिन 'लोकतंत्र की जननी है भारत' विषयक सम्मेलन की अध्यक्षता की। इस सम्मेलन के मुख्य अतिथि राज्यसभा के उपसभापति हरिवंश नारायण सिंह का स्वागत करते हुए मुख्यमंत्री योगी ने कहा कि लोकतंत्र के संदर्भ में वैदिक काल, रामायण और महाभारत के समय के कई उद्धरण मौजूद हैं। भारतीय लोकतंत्र में प्राचीन काल से लेकर आज तक जनता की आवाज और उसके हित को सर्वोपरि माना गया है।

'प्रजा का सुख ही राजा की जिम्मेदारी'
उन्होंने आगे कहा कि भारतीय सभ्यता हमेशा यही मानती रही है कि प्रजा का सुख ही राजा की जिम्मेदारी है। रामायण काल में भगवान राम ने भी जनता की आवाज को महत्व दिया। भगवान कृष्ण ने कभी स्वयं को राजा नहीं माना। उनके समय में गणपरिषद शासन का कार्य देखती थी। द्वारका में जब आंतरिक संघर्ष शुरू हुआ, तब परिषद के सदस्य आपस में लड़कर समाप्त हो गए। उस समय भगवान श्रीकृष्ण ने कहा था कि राज्य के नियम सभी नागरिकों पर समान रूप से लागू होते हैं।



'भारतीय सभ्यता आधुनिक काल तक लोकतांत्रिक मूल्यों से भरी रही'
योगी आदित्यनाथ ने कहा कि जब दुनिया में सभ्यता, संस्कृति और मानवीय मूल्यों की कोई अपेक्षा नहीं थी, तब भारत में ये सभी तत्व अपने चरम पर थे। भारतीय सभ्यता और संस्कृति प्राचीन काल से लेकर आधुनिक काल तक लोकतांत्रिक मूल्यों से भरी रही है। इसका उद्देश्य न तो किसी का शोषण करना था और न ही किसी पर बलात्कारी शासन स्थापित करना था। इसकी भावना 'सर्वे भवंतु सुखिनः' रही है। आज इस भावना का नया स्वरूप प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के 'सबका साथ, सबका विकास' के संकल्प में देखा जा सकता है। हमारी ऋषि परंपरा ‘जियो और जीने दो’ की रही है, जो सच्चे लोकतंत्र का प्रतीक है, और यही मूल्यपरक लोकतंत्र भारत ने दुनिया को दिया है।

'लोकतंत्र की विरासत को संजोने में हुई चूक'
सीएम ने कहा कि यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि देश में कुछ लोगों पर गुलामी की मानसिकता आज भी हावी है। जबकि भारत में लोकतंत्र की जड़ें प्राचीन समय से ही गहरी रही हैं। उन्होंने बताया कि भारत तब गुलाम हुआ जब लोकतंत्र की विरासत को संजोने में चूक हुई। उन्होंने कहा कि प्राचीन भारत में निरंकुश राजा को सत्ताच्युत करने का अधिकार जनता के प्रतिनिधित्व वाले परिषद के पास होता था। लोकतंत्र में यह स्पष्ट है कि जनता का हित ही सर्वोच्च है। प्राचीन काल में देखें तो वैशाली गणराज्य इसका एक उदाहरण है जहां पूरी व्यवस्था जनता के हितों के लिए समर्पित थी।

'भारतीय मूल्यों और संस्कारों से ही चल रहा लोकतंत्र'
‘लोकतंत्र की जननी है भारत’ विषयक सम्मेलन के मुख्य अतिथि राज्यसभा के उपसभापति हरिवंश नारायण सिंह ने कहा कि लोकतंत्र के संस्कार पांच हजार वर्ष पुराने भारतीय मूल्यों से गढ़े गए हैं। सही मायने में भारतीय मूल्यों और संस्कारों से ही लोकतंत्र चल रहा है। खुलकर अपनी बात रखना ही लोकतंत्र का यथार्थ है और यह मूल्य भारत की हजारों वर्षों की परंपरा में निहित रहे। भारतीय लोकतंत्र में जनता को हर प्रकार की आजादी के साथ खामी को भी ठीक करने की गुंजाइश है। उन्होंने कहा कि अंग्रेजी मूल्यों से प्रभावित लोगों ने ही भारतीय लोकतंत्र को आयातित समझने की भूल की है। इस भूल का कारण यह रहा कि भारतीय लोकतंत्र को यूनान को नजर से देखने की आदत डाली गई। उन्होंने कहा कि भारत को आजादी मिलने के बाद कई विदेशी विद्वानों ने कहा था कि भारत में लोकतंत्र टिकेगा नहीं और आज उसका जवाब यह है कि अगले साल हम संविधान लागू होने का अमृत वर्ष मनाने जा रहे हैं।

'सीएम योगी में रामराज की भावना'
हरिवंश ने योगी आदित्यनाथ को रामराज की अवधारणा को साकार करने वाला बताते हुए कहा कि सीएम योगी में रामराज की भावना स्पष्ट रूप से झलकती है। समान रूप से न्याय और सुरक्षा के प्राचीन भारतीय मूल्यों को योगी की कार्यशैली में देखा जा सकता है। राज्यसभा के उपसभापति ने ब्रह्मलीन महंत दिग्विजयनाथ और ब्रह्मलीन महंत अवेद्यनाथ की पुण्य स्मृति को नमन करते हुए कहा कि अतीत के महापुरुषों को याद करना भविष्य के लिए प्रेरणा का स्रोत होता है। इन दोनों गोरक्षपीठाधीश्वरों का राष्ट्रीय, सामाजिक और सांस्कृतिक चेतना के पुनर्जागरण में महत्वपूर्ण योगदान रहा है। महंत दिग्विजयनाथ और महंत अवेद्यनाथ का जीवन भारतीय मूल्यों के प्रति पूरी तरह से समर्पित रहा।

ये सभी रहे मौजूद
सम्मेलन को आगरा के ब्रह्मचारी दास लाल और सुग्रीव क़िलाधीश अयोध्या के स्वामी विश्वेष प्रपन्नाचार्य ने भी संबोधित किया। इस अवसर पर गोरखनाथ मंदिर के प्रधान पुजारी योगी कमलनाथ, अयोध्या से आए महंत सुरेश दास, कटक से आए महंत शिवनाथ, काशी से आए महामंडलेश्वर संतोष दास उर्फ सतुआ बाबा, मिथिलेशनाथ, राममिलन दास, कर्नाटक से आए भयंकरनाथ, अहमदाबाद से आए कमलनाथ, और रविंद्रदास भी प्रमुख रूप से उपस्थित थे।

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