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यहां पर आज भी नहीं दी जाती किसी को फांसी यहां पर आज भी नहीं दी जाती किसी को फांसी, चौकाने वाला रहा ‘हरदोई बाबा’ का इतिहास

Uttarpradesh Times | Hardoi Temple

Dec 09, 2023 15:42

भारतवर्ष में ब्रिटिश हुकूमत की मार कई लोगों ने झेला हैं और इसके साथ ही देश के स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों ने ब्रिटिशों को भी दातों चने चबवाएं थे। वहीं भारत देश की कुछ रहस्यमई शक्तियों ने भी अंग्रेजों को मजा चखाया था। हरदोई में आज भी श्री हरदोई बाबा का नाम बड़े आदर और सम्मान के साथ में लिया जाता है। हरदोई बाबा ने अंग्रेजों का भारत में जीना हराम कर के रखा था। बता दे आज भी हरदोई में कोई भी धार्मिक आयोजन, शादी और संस्कार बिना हरदोई बाबा के दर्शन के नहीं होता हैं। 

Hardoi Temple: भारतवर्ष में ब्रिटिश हुकूमत की मार कई लोगों ने झेला हैं और इसके साथ ही देश के स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों ने ब्रिटिशों को भी दातों चने चबवाएं थे। वहीं भारत देश की कुछ रहस्यमई शक्तियों ने भी अंग्रेजों को मजा चखाया था। हरदोई में आज भी श्री हरदोई बाबा का नाम बड़े आदर और सम्मान के साथ में लिया जाता है। हरदोई बाबा ने अंग्रेजों का भारत में जीना हराम कर के रखा था। बता दे आज भी हरदोई में कोई भी धार्मिक आयोजन, शादी और संस्कार बिना हरदोई बाबा के दर्शन के नहीं होता हैं। उत्तर प्रदेश की राजनीति में हरदोई का अपनी एक अलग मान्यता है। हरदोई बाबा के किस्से आजादी के समय से लेकर आज भी कई रहस्यों में समेटे हैं। मंदिर के संचालन जितेश दीक्षित ने बताया कि अंग्रेजी हुकूमत के समय में हरदोई की जिला जेल में एक निर्दोष को फांसी की सजा सुनाई गई थी, जिसके बाद निर्दोष ने आकर बाबा से उसे फांसी दिए जाने की शिकायत की थी। जिस पर हरदोई बाबा क्रोधित हो गए थे।

यहां आज भी नहीं दी जाती फांसी

बता दे इसके बाद हरदोई बाबा ने सपने में आकर अंग्रेज अफसर से उस व्यक्ति को फांसी न देने के लिए कहा पर अंग्रेजों ने उस व्यक्ति को फांसी दे दी। जिसके बाद फांसी का तख्त पलट गया और फांसी दिए गए व्यक्ति की मृत्यु भी नहीं हुई। ऐसा बताया जाता है कि हरदोई बाबा ने स्वप्न में आकर अंग्रेज जेलर से फांसी के तख्त को हरदोई से ले जाने का आदेश दिया था। जिसके बाद अंग्रेज जेलर ने तख्त को हरदोई से हटाकर फतेहगढ़ भेज दिया था। तभी से लेकर के आज तक हरदोई जेल में किसी को भी फांसी की सजा नहीं दी जाती है। 

फतेहगढ़ में दी जाती फांसी

इसके बाद से आज भी हरदोई में किसी को फांसी नहीं जाती हैं। हरदोई में फांसी की सजा सुनाई तो जाती है, लेकिन फांसी फतेहगढ़ जेल में दी जाती है। वहीं इस मंदिर के जानकार बताते है कि कि यह मंदिर करीब 400 वर्ष पुराना है। अंग्रेजी हुकूमत से पहले यहां पर जंगल हुआ करता था। 

यहां लोगों की समस्यां का होता इलाज

लोगों का ऐसा कहना हैं कि इस जंगल में पहले एक बूढ़े बाबा कुटी बनाकर तपस्या किया करते थे। जिनके पास आसपास के लोग आपनी समस्या लेकर समाधान लेने आया करते थे। वहीं संत बूढ़े बाबा ने वहीं मौजूद हवन कुंड वाली जगह पर ही जीवित समाधि ले ली थी और इसके बाद उसी स्थान पर एक पत्थर की मूर्ति प्राप्त हुई थी। बाबा की समाधि लेने के बाद भी वहां पर लोगों का आना-जाना लगा रहता था। कई सालों तक लोग वहां जाकर अपनी समस्या को बताकर आशीर्वाद प्राप्त किया करते थे। इसके बाद धीरे-धीरे उस स्थान के विकास करने के बाद मंदिर के भव्य रूप में इसे परिलक्षित किया गया। 

हिंदु-मुस्लिम दोनों करते यहां पर दर्शन

इस मंदिर को लेकर लोगों के मन में जो सच्ची आस्था हैं वह देखकर मन भर जाता हैं। इस मंदिर के पुजारी ने बताया कि यहां पर हिंदुओं के अलावा मुस्लिम भी दर्शन करने आते हैं। दोनों धर्म के लोग यहा किसी अच्छे काम को करने के बाद प्रसाद चढ़ाने के लिए जरूर आते हैं। शादी होने के बाद बहू सबसे पहले मंदिर ही जाती हैं। इस जनपद के ज्यादातर संस्कार हरदोई बाबा मंदिर के संरक्षण में ही होते हैं। यह रहस्यमई मंदिर समय-समय पर लोगो को अपने प्रभाव दिखाता रहता है। यहां के बुजुर्गों का कहना है कि हरदोई बाबा के मंदिर में धूनी कभी ठंडी नहीं होती, वह प्राचीन काल से जलती चली आ रही है। 

संकट हरण सकाहा शिव मंदिर

इस शिव मंदिर का इतिहास बेहद ही रोचक हैं। इस मंदिर की चमत्कारी शिवलिंग की भक्ती दूर-दूर तक लोगों में देखने को मिलती हैं। इस प्राचीन मंदिर को लेकर ऐसी मान्यता है कि यहां आने वाले भक्तों के ऊपर किसी भी प्रकार का कोई भी संकट क्यों न हो उसे भगवान शिव हर ही लेते हैं। इसके साथ ही बता दे यहां की चमत्कारी शिवलिंग दिन में तीन बार अपना रंग भी बदलती हैं। यह मंदिर हरदोई जिले से 18 किलोमीटर दूर विकासखंड बावन के सकाहा गांव में स्थित है। 

मंदिर से जुड़ी मान्यता 

इस मंदिर के पुजारी बताते हैं कि 1951 में बेहटागोकुल थाने में तत्कालीन थानाध्यक्ष शिव शंकर लाल वर्मा ने इसकी खुदाई कराई थी। दरअसल कई दिनों तक खुदाई करने के बाद भी शिवलिंग का छोर तो नहीं मिला पर नीचे से पानी आना शुरू हो गया, तब दरोगा ने खुदाई रुकवा दी। इसके बाद ऐसा कहा जाता है कि भगवान भोलेनाथ ने दरोगा के सपने में आकर शिवलिंग को यथावत रहने का आदेश दिया। जिसके बाद दरोगा ने यहां एक भव्य और विशाल मंदिर बनवाया। 
इस शिव मंदिर में की शिवलिंग के इतिहास से आज भी लोग अनजान हैं। यहां पर कई खोजकर्ता आए और यहां से खाली हाथ वापस चले गए हैं, क्योंकि इस शिवलिंग के इतिहास के बारें में किसी भी तरह की कोई जानकारी नहीं प्राप्त कर पाएं। यहां के लोगों का कहना है कि उनके दादा और परदादा के समय में भी ये शिवलिंग यहां यथावत मौजूद था। ऐसा माना जाता है कि यह शिवलिंग एक स्वयं भू शिवलिंग है, जिसका प्राकट्य स्वयं ही हुआ था, इसमें स्वयं भगवान शिव का वास है। बता दे इस प्राचीन शिवलिंग के कई चौंकाने वाले तथ्य हैं। इस शिवलिंग का रंग सुबह के समय भूरा होता है तो दोपहर और शाम के बीच इसका रंग काला हो जाता है। वहीं अगर रात की बात करें तो रात्रि में इसका रंग सुनहरा हो जाता है। इसी के साथ बता दे कि पहले ये शिवलिंग छोटे आकार की थी, जो आज बेहद विशाल हो गई है। कहते हैं कि समय दर समय इस शिवलिंग का आकार बढ़ता जाता हैं। 

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