गंभीर मरीजों को अब सुई के दर्द से मिलेगी राहत : एसजीपीजीआई के चिकित्सकों को मिला पेटेंट, जानें खासियत

UPT | संजय गांधी स्नातकोत्तर आयुर्विज्ञान संस्थान।

Jul 25, 2024 01:57

क्रिटिकल केयर मेडिसिन विभाग में बेहद गंभीर मरीजों का इलाज किया जाता है। उनकी हालत पहले से ही गंभीर होती है, इसलिए इलाज में बेहद सावधानी और ध्यान रखने की जरूरत होती है। जरा सी लापरवाही या गलती होने पर मरीज की जान पर खतरा हो जाता है।

Lucknow News : क्रिटिकल केयर यूनिट में भर्ती गंभीर मरीजों को पोषण देने से लेकर दवा चढ़ाने के दौरान अब तकलीफ का सामना नहीं करना पड़ेगा। मरीजों को आमतौर पर कई बार सुई चुभोने से जो दर्द और दिक्कत होती है, उससे अब उन्हें पूरी तरह निजात मिल जाएगी। संजय गांधी स्नातकोत्तर आयुर्विज्ञान संस्थान (एसजीपीजीआई) ने मुख्य नस में सुई डालने की बेहद खास विधि को खोजा है, जिसका पेटेंट भी उसे मिल गया है। संस्थान के निदेशक डॉ. आरके धीमन ने इस उपलब्धि पर चिकित्सकों को बधाई दी है। उन्होंने नई तकनीक को गंभीर मरीजों के लिए वरदान बताया है।

2013 में खोजा और 2016 में पेटेंट के लिए किया आवेदन
एसजीपीजीआई के चिकित्सकों ने साल 2013 में इस तकनीक को खोजा था। इस पर काम करने के बाद वर्ष 2016 में इसके पेटेंट के लिए आवेदन किया गया था। अब इसे हरी झंडी मिली है और संस्थान ने पेटेंट हासिल कर लिया है। क्रिटिकल केयर मेडिसिन विभाग के डॉ. तन्मय घटक, विभागाध्यक्ष डॉ. आरके सिंह और पूर्व विभागाध्यक्ष डॉ. एके बैरोनिया के नाम से यह पेटेंट मिला है। एसजीपीजीआई के चिकित्सक इस उपलब्धि पर बेहद गर्व महसूस कर रहे हैं। उन्होंने मरीजों के लिए इसे बेहद सफल और सुरक्षित विधि करार दिया है।

गले के करीब, पैर की मोटी नस का लिया जाता है सहारा
क्रिटिकल केयर मेडिसिन विभाग में बेहद गंभीर मरीजों का इलाज किया जाता है। उनकी हालत पहले से ही गंभीर होती है, इसलिए इलाज में बेहद सावधानी और ध्यान रखने की जरूरत होती है। जरा सी लापरवाही या गलती होने पर मरीज की जान पर खतरा हो जाता है। डॉ. तन्मय घटक ने बताया कि अत्यंत गंभीर मरीजों को दवा से लेकर खाना तक कैथेटर के जरिए दिया जाता है। इसके लिए आमतौर पर गले के करीब या फिर पैर की मोटी नस की मदद ली जाती है। 

कई कोशिशों के बाद मिली कामयाबी
उन्होंने बताया कि गले के करीब सुई या सेंट्रल वीनस कैनुलेशन डालना बेहद खतरे वाला होता है। इससे शरीर के कई अंगों को नुकसान पहुंचने की आशंका बनी रहती है। इन तमाम दिक्कतों और मरीज को राहत देने के लिए अल्ट्रासाउंड आधारित सुई डालने की तकनीक इस्तेमाल में लाई गई। हालांकि इसमें भी दिक्कत है कि सुई की नोक नजर नहीं आती है। ऐसे में नस की दीवार को नुकसान पहुंचने का अंदेशा बना रहता है। इन दिक्कतों का हल निकालने के लिए सुई पर माप अंकित करने का प्रयोग किया गया। इसके तहत सुई पर हर आधे सेंटीमीटर पर निशान लगाए गए। फिर अल्ट्रासाउंड के जरिए गहराई मापी गई। इस तरह की प्रक्रिया करने से सुई डालने का अंदाजा लगाना संभव हो जाता है। इससे गंभीर मरीजों को बड़ी राहत मिली है। इस विशेष खोज के लिए भारतीय पेटेंट कार्यालय की ओर से अब पत्र जारी कर दिया गया है। एसजीपीजीआई के लिए ये बहुत बड़ी उपलब्धि है। 

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