ऑथर Sanjay Singh

UPPCL Privatisation : आरक्षित अभियंता शुक्रवार को आंदोलन को व्यापक बनाने की तय करेंगे रणनीति, बोले- प्रबंधन देख रहा तमाशा

UPT | UPPCL

Dec 19, 2024 19:28

पावर ऑफिसर्स एसोसिएशन ने प्रदेश के ऊर्जा मंत्री एके शर्मा ने विधानसभा में रखे तथ्यों पर भी चिंता जाहिर की और कहा कि उन्होंने बिजली कार्मिकों के अनेक मामलों से लेकर बिजली चोरी और अन्य अहम बातों का खुलासा किया। जबकि संगठन केवल इतना ही बताना चाहता है कि ऊर्जा मंत्री अपने कार्यकाल में प्रदेश में सबसे ज्यादा प्रदेश में ऐतिहासिक कार्य होने का जिक्र करते रहते हैं।

Lucknow News : उत्तर प्रदेश पावर कारपोरेशन लिमिटेड (UPPCL) के दक्षिणांचल विद्युत वितरण निगम लिमिटेड (DVVNL) और पूर्वांचल विद्युत वितरण निगम लिमिटेड (PuVVNL) को निजी हाथों में सौंपने के फैसले के विरोध में ऊर्जा संगठन आगे की रणनीति बनाने में जुट गए हैं। उत्तर प्रदेश पावर ऑफिसर्स एसोसिएशन ने निर्णय किया है कि कल शुक्रवार को पूरे प्रदेश की सभी बिजली कंपनियों के दलित व पिछड़े वर्ग के अभियंताओं से ऑनलाइन वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए अब तक के कार्यक्रम की समीक्षा की जाएगी और आगे कार्यक्रम की रूपरेखा को अंतिम रूप दिया जाएगा। पूरे प्रदेश में सभी दलित व पिछड़े वर्ग के अभियंताओं को अवगत करा दिया गया है वह सभी संगठन के साथ ऑनलाइन जुड़कर आंदोलन को आगे व्यापक बनाने को लेकर अपनी राय दें।

आरक्षित अभियंताओं का छीना जा रहा हक
पावर ऑफिसर्स एसोसिएशन के कार्यवाहक अध्यक्ष अवधेश कुमार वर्मा, महासचिव अनिल कुमार, सचिव आरपीकेन, संगठन सचिव बिंदा प्रसाद, सुशील कुमार वर्मा, अजय कुमार, प्रभाकर ने कहा जिस प्रकार से दलित व पिछड़े वर्ग के अभियंताओं के साथ उनका हक लगातार छीना जा रहा है और पावर कारपोरेशन प्रबंधन चुपचाप तमाशा देख रहा है, ये उचित नहीं है।



ऊर्जा मंत्री एके शर्मा ने सदन में दिए बयान पर उठाए सवाल
संगठन ने प्रदेश के ऊर्जा मंत्री एके शर्मा ने विधानसभा में रखे तथ्यों पर भी चिंता जाहिर की और कहा कि उन्होंने बिजली कार्मिकों के अनेक मामलों से लेकर बिजली चोरी और अन्य अहम बातों का खुलासा किया। जबकि संगठन केवल इतना ही बताना चाहता है कि ऊर्जा मंत्री अपने कार्यकाल में प्रदेश में सबसे ज्यादा प्रदेश में ऐतिहासिक कार्य होने का जिक्र करते रहते हैं। सोशल साइट एक्स पर उनका आधिकारिक अकाउंट इसका प्रत्यक्ष प्रमाण है। ऐसे में इस बात पर भी सबको विचार करना चाहिए कि सभी कार्मिक एक जैसे नहीं हैं। बड़ी संख्या में कार्मिकों के जरिए ही बड़े-बड़े कीर्तिमान स्थापित किए जाते हैं। इसलिए सभी को एक तराजू में तुलना उचित नहीं है।

ऊर्जा मंत्री का दावा : बिजली कर्मियों के रहमोकरम से ही हो रही चोरी
दरअसल ऊर्जा मंत्री एके शर्मा ने बुधवार को विधान परिषद में राज्य में बिजली विभाग के निजीकरण को लेकर समाजवादी पार्टी (सपा) के उठाए गए सवालों के जवाब में कहा कि राज्य में बिजली चोरी की समस्या बढ़ रही है, और इसके लिए बिजली विभाग के कर्मी जिम्मेदार हैं। विभाग के जूनियर इंजीनियर (जेई) और सहायक इंजीनियर (एई) जानते हुए भी चुप रहते हैं, क्योंकि वे बिजली चोरी में शामिल या इस पर चुप्पी साधे रहते हैं। उन्होंने कहा कि कई मोहल्लों में बिजली चोरी हो रही है, जहां विभाग की टीम जाने से घबराती है। उन्होंने बताया कि ऐसे में निजीकरण के कदम उठाना मजबूरी बन गया है, क्योंकि सरकार का लक्ष्य 2027 तक सभी घरों को 24 घंटे बिजली देने का है।

तीन-चार सालों में 90,000 करोड़ रुपये तक पहुंच सकती है सब्सिडी
ऊर्जा मंत्री ने उदाहरण देते हुए कहा कि संभल जिले में हाल ही में 112 लोगों के खिलाफ बिजली चोरी के आरोप में एफआईआर दर्ज की गई है। उन्होंने बताया कि मस्जिदों और मदरसों में भी बड़े पैमाने पर बिजली चोरी पकड़ी गई, जिनमें चार किलोवाट से लेकर 11 किलोवाट तक की चोरी की जानकारी मिली। मंत्री ने कहा कि इस बिजली चोरी और लाइन हानियों के कारण प्रदेश सरकार को 47,000 करोड़ रुपये की सब्सिडी देनी पड़ रही है। अगर यही स्थिति रही तो अगले तीन-चार सालों में यह सब्सिडी बढ़कर 90,000 करोड़ रुपये तक पहुंच सकती है।

ऊर्जा मंत्री ने ऐसे किया निजीकरण का समर्थन
मंत्री ने बताया कि 1993 में नोएडा में बिजली वितरण के निजीकरण की शुरुआत की गई थी, जब केंद्र में कांग्रेस की सरकार थी और प्रदेश में राष्ट्रपति शासन लागू था। उस समय तत्कालीन प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव और वित्त मंत्री मनमोहन सिंह ने बिजली वितरण के निजीकरण को बढ़ावा दिया था। नोएडा पावर कंपनी अपने उपभोक्ताओं को 10 प्रतिशत सस्ती बिजली दे रही है, जो इस मॉडल की सफलता का स्पष्ट उदाहरण है। इसके अलावा, बसपा सरकार के दौरान 2010 में आगरा में टोरेंट पावर कंपनी को कार्य सौंपा गया था और अब आगरा के आसपास के जिलों के लोग भी इस व्यवस्था में शामिल होने की मांग कर रहे हैं। उन्होंने यह भी कहा कि टेलीकॉम सेक्टर में निजी कंपनियों के आने से उपभोक्ताओं को लाभ हुआ, और एयरपोर्ट जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्रों में भी निजी निवेश ने व्यवस्था को बेहतर किया है।

प्रदेश सरकार की बिजली व्यवस्था में सुधार का दावा
ऊर्जा मंत्री ने प्रदेश सरकार के किए सुधारों का हवाला देते हुए कहा कि वर्ष 2017 तक उत्तर प्रदेश में बिजली की मांग केवल 17,000 मेगावाट थी, जो अब बढ़कर 30,600 मेगावाट हो गई है। उन्होंने बताया कि 2017 तक प्रदेश में डेढ़ करोड़ बिजली उपभोक्ता थे, जबकि अब यह संख्या तीन करोड़ तक पहुंच चुकी है। इसके साथ ही, प्रदेश के 1.21 लाख मजरों में बिजली पहुंचाई गई, और अभी 12 हजार मजरों में बिजली पहुंचाने का काम जारी है।

आरक्षित अभियंता और ऊर्जा संगठन इन बिदुओं पर पीपीपी मॉडल का कर रहे विरोध
  • ऊर्जा मंत्री के दावे और निजीकरण के समर्थन पर बिजली विभाग के अभियंता और कर्मचारी ही उठा रहे सवाल।
  • ऊर्जा संगठनों का दावा है कि निजीकरण सिर्फ प्राइवेट कंपनियों के लिए फायदेमंद साबित होगा। आम उपभोक्ता पर आखिरकार महंगी बिजली की मार पड़ेगी।
  • सरकार अगर निजी घरानों को 9061 करोड़ की भारी भरकम सब्सिडी जारी रख रही है, तो ऐसे में निजीकरण का क्या लाभ है?
  • पांचों निजी कंपनियों के यूपीपीसीएल से सबसे सस्ती दर पर बिजली खरीदने पर भी सवाल उठ रहे हैं।
  • निजी कंपनियों को 51 प्रतिशत शेयर की हकदार होने के कारण भविष्य में अपने स्तर पर कर्मचारियों को रखने और हटाने का अधिकार होगा, इस पर अभी तक स्पष्ट रूप से सरकार ने कोई जवाब नहीं दिया है।
  • संविदा कर्मियों के हितों का क्या होगा, उनकी चिंताएं दूर करने का प्रयास नहीं किया गया है।
  • आरक्षित अभियंता पहले ही प्रमोशन में रिजर्वेशन खत्म करने से नाराज हैं, अब पीपीपी मॉडल उनके लिए और खतरे की घंटी साबित होगा।
  • आरक्षित अभियंता आरक्षण के मुद्दे पर लगातार सवाल उठा रहे हैं। लेकिन, यूपीपीसीएल प्रबंधन अभी तक खामोश है।
  • आरक्षित अभियंताओं के बड़े पैमाने पर पूर्वांचल और दक्षिणांचल विद्युत वितरण निगम में छह महीने के भीतर सबसे ज्यादा तबादले का आरोप है। इसके बाद उनकी नाराजगी और बढ़ गई है।
  • ऊर्जा संगठनों की ये भी दलील है कि अगर सरकार की ये बात सही है कि किसी भी कर्मचारी, अभियंता का अहित नहीं होगा और उन्हें नौकरी से नहीं हटाया जाएगा। साथ ही संविदा कर्मियों के हितों भी पूरा ध्यान रखा जाएगा, तो इससे साफ है कि कमी अभियंताओं-कर्मचारियों के स्तर पर नहीं है। ऐसे में मैनेजमेंट में बदलाव करना सही होगा न कि ऊर्जा निगमों को निजी हाथों में सौंपने का फैसला करना चाहिए।

Also Read