संभल में आसान नहीं भाजपा की लड़ाई : 2019 में ज्यादा वोट पाकर भी हारे, मुस्लिम मतदाता तय करते हैं जनादेश

UPT | संभल में आसान नहीं भाजपा की लड़ाई

May 05, 2024 19:17

लोकसभा के तीसरे चरण के चुनाव में उत्तर प्रदेश की जिन 10 सीटों पर मतदान होना है, उसमें संभल की लोकसभा सीट भी शामिल है। इस सीट पर 2024 का चुनाव भाजपा के लिए आसान नहीं होने वाला है।

Short Highlights
  • समाजवादी पार्टी का गढ़ है संभल
  • त्रिकोणीय होगा 2024 का मुकाबला
  • निर्णायक भूमिका में मुस्लिम मतदाता
Sambhal News : लोकसभा के तीसरे चरण के चुनाव में उत्तर प्रदेश की जिन 10 सीटों पर मतदान होना है, उसमें संभल की लोकसभा सीट भी शामिल है। इस सीट पर 2024 का चुनाव भाजपा के लिए आसान नहीं होने वाला है। संभल से समाजवादी पार्टी के शफीकुर्रहमान बर्क सांसद थे, लेकिन 94 वर्ष की उम्र में उनका निधन हो गया। अब सपा ने यहां से बर्क के पोते जिया उर-रहमन को प्रत्याशी बनाया है। वहीं भाजपा की तरफ से परमेश्वर लाल सैनी और बसपा से शौलत अली मैदान में हैं।

निर्णायक भूमिका में मुस्लिम मतदाता
संभल की लोकसभा सीट के अंतर्गत 5 विधानसभा क्षेत्र आते हैं। इसमें कुंडारकी, बिलारी, चन्दौसी, असमोली और संभल शामिल हैं। इसमें से केवल चन्दौसी की सीट भाजपा के पास है, जबकि अन्य चारों पर समाजवादी पार्टी का कब्जा है। संभल लोकसभा में करीब 19 लाख मतदाता है, जिसमें से लगभग 35 फीसदी मुस्लिम हैं। वहीं इलाके में दलित और यादव वोटर भी अच्छी तादाद में हैं। यही वजह है कि भाजपा को इस सीट पर काफी मशक्कत करनी पड़ सकती है।

केवल एक बार जीती है भाजपा
आजादी के बाद से संभल में अब तक कुल 12 चुनाव हुए हैं, लेकिन इसमें से केवल 1 बार ही 2014 में भाजपा जीत दर्ज कर पाई है। हालांकि 2014 की मोदी लहर के बावजूद भाजपा प्रत्याशी की जीत का अंतर मात्र 5 हजार वोटों का था। अगर विधानसभा क्षेत्रों की बात करें तो बिलारी और असमोली में भाजपा एक बार भी नहीं जीती है। कुंडारकी और संभल में पार्टी मात्र 1 बार 1993 के चुनाव में जीती है। चंदौसी एकमात्र ऐसी सीट है, जहां भाजपा 6 बार चुनाव जीती है।

समाजवादी पार्टी का गढ़ है संभल
संभल को समाजवादी पार्टी की पारंपरिक सीट माना जाता है। मुलायम सिंह यादव ने 1998 और 1999 से यहां से जीत दर्ज की थी। इसके बाद उनके भाई रामगोपाल यादव 2004 में इस सीट से जीतकर संसद पहुंचे। 2014 में भाजपा के सत्यपाल सिंह जीते जरूर, लेकिन 2019 में फिर से समाजवादी पार्टी ने इस सीट पर कब्जा कर लिया। मुस्लिम मतदाताओं के निर्णायक भूमिका में होने के कारण सपा का यह गढ़ माना जाता है।

भाजपा के लिए क्या उम्मीदें?
भारतीय जनता पार्टी के लिए संभल में चुनौती काफी बड़ी होने वाली है। इसकी सबसे बड़ी वजह है विपक्ष का इंडी गठबंधन। लेकिन अगर एक बार आंकड़ों पर नजर डालें, तो एक उम्मीद की किरण जरूर दिखाई देती है। 2009 में शफीकुर्रहमान बर्क बसपा के टिकट पर जीते थे। समाजवादी पार्टी ने तब इकबाल महमूद को प्रत्याशी बनाया था। इस चुनाव में भाजपा 18 फीसद वोट के साथ चौथे नंबर पर रही थी। लेकिन 2014 में मोदी लहर चली और भाजपा चौथे स्थान से सीधा पहले पर आ गई और 34 फीसदी वोट पाकर सत्यपाल सिंह सैनी ने जीत दर्ज कर ली। इस चुनाव में शफीकुर्रहमान बर्क ने सपा के टिकट पर चुनाव लड़ा था औऱ 33 फीसदी वोटों के साथ दूसरे नंबर पर रहे थे। लेकिन 2019 में भाजपा के परमेश्वर लाल सैनी को 40 फीसदी वोट मिले, बावजूद इसके वह दूसरे स्थान पर रहे। इसकी सबसे बड़ी वजह सपा और बसपा का गठबंधन था। बसपा का वोट बर्क को ट्रांसफर हुआ और वह 1,74,826 वोटों के अंतर से जीत दर्ज करने में सफल रहे।

त्रिकोणीय होगा संभल का मुकाबला
संभल की जंग 2014 के बाद से ही भाजपा, सपा और बसपा के बीच रही है। इस सीट पर कांग्रेस का अस्तित्व लगातार खत्म होता जा रहा है। 2014 में कांग्रेस को संभल में मात्र 16 हजार वोट मिले थे। वहीं 2019 में यह आंकड़ा 12 हजार पर सिमट गया। अब 2024 में सपा और कांग्रेस गठबंधन में हैं, ऐसे में संभल की सीट पर मुकाबला त्रिकोणीय हो गया है। 2014 में बसपा को यहां 2.5 लाख वोट मिले थे, जबकि सपा उम्मीदवार को 3.5 लाख वोट मिले। 2019 सपा और बसपा का गठंबधन होने के कारण शफीकुर्रहमान बर्क को 6.5 लाख वोट मिले। इस चुनाव में भाजपा ने 2014 के मुकाबले 1.2 लाख वोट अधिक पाए और 4.8 लाख वोटों के साथ तीसरे नंबर पर रही। सबसे बड़ा खेल यहीं पर हुआ। आंकड़े बता रहे हैं कि संभल में भाजपा का वोट प्रतिशत लगातार बढ़ रहा है। बसपा के अलग चुनाव लड़ने की वजह से समाजवादी पार्टी का वोट कटने की पूरी संभावना है। अगर ऐसा होता है, तो इसका सीधा फायदा भाजपा को मिलेगा।

हिंदू वोटों पर सवार भाजपा
संभल में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कल्कि धाम मंदिर की आधारशिला रखी थी। इसका निर्माण कांग्रेस से निष्कासित आचार्य प्रमोद कृष्णम करवा रहे हैं। भाजपा का मानना है कि इसका फायदा उसे हिंदू वोटों की एकजुटता के रूप में मिलेगा। आचार्य प्रमोद कहते हैं कि काशी, अयोध्या और मथुरा के बाद कल्कि पीठ भी एक प्रमुख धार्मिक केंद्र है। क्षेत्र में बंटे हुए हिंदू वोट मंदिर के शिलान्यास के बाद एकजुट होंगे। उनका मानना है कि शिलान्यास कार्यक्रम में मुस्लिम भी बड़ी संख्या में आए थे। ऐसे में एक विशेष मुस्लिम वर्ग का वोट भी भाजपा को जाने की उम्मीद है। खैर, संभल का सियासी समीकरण किसके पक्ष में जाएगा, ये तो 4 जून को स्पष्ट हो ही जाएगा।

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