गौतमबुद्ध नगर पुलिस पर हाईकोर्ट सख्त : छह साल से अंडर ट्रायल केस की चार्जशीट खारिज की, अदालत ने पूछा- किसने दिया यह अधिकार, अफसरों की पेशी होगी

UPT | गौतमबुद्ध नगर पुलिस पर हाईकोर्ट सख्त।

Jun 19, 2024 12:24

एक हाईप्रोफाइल केस में ऊपर से लेकर नीचे तक पुलिस अफसर इस सवाल के घेरे में हैं। दरअसल, नोएडा पुलिस ने अपने अधिकार क्षेत्र से बाहर जाकर छह साल से अंडर ट्रायल केस में आरोपियों की शिकायत पर नए सिरे जांच की। केस की चार्जशीट कैंसिल करके तीनों आरोपियों को क्लीनचिट दे दी।

Short Highlights
  • एक हाईप्रोफाइल केस में ऊपर से लेकर नीचे तक पुलिस अफसर हैं सवालों के घेरे में 
  • हाईकोर्ट ने सेंट्रल नोएडा की पुलिस उपायुक्त और क्राइम ब्रांच के इंस्पेक्टर को जवाब देने के लिए किया तलब
Prayagraj/Noida : उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने लोकसभा चुनाव के तुरंत बाद कानून-व्यवस्था को लेकर बड़े-बड़े पुलिस अफसरों के साथ बैठक की। उन्होंने साफ कहा, "अगर कहीं भी भ्रष्टाचार पकड़ा गया तो कड़ी कार्रवाई के लिए तैयार रहें।" जिस दिन सीएम ने यह बात कही उसी दिन प्रयागराज हाईकोर्ट ने गौतमबुद्ध नगर पुलिस पर बड़ा सवाल खड़ा कर दिया। एक हाईप्रोफाइल केस में ऊपर से लेकर नीचे तक पुलिस अफसर इस सवाल के घेरे में हैं। दरअसल, नोएडा पुलिस ने अपने अधिकार क्षेत्र से बाहर जाकर छह साल से अंडर ट्रायल केस में आरोपियों की शिकायत पर नए सिरे जांच की। केस की चार्जशीट कैंसिल करके तीनों आरोपियों को क्लीनचिट दे दी। अब हाईकोर्ट ने सेंट्रल नोएडा की पुलिस उपायुक्त और क्राइम ब्रांच के इंस्पेक्टर को जवाब देने के लिए तलब कर लिया है। 'उत्तर प्रदेश टाइम्स' ने इस पूरे केस की पड़ताल की है। यह बेहद चौंकाने वाला मामला है। हम आपको सिलसिलेवार जानकारी यहां दे रहे हैं।

हाईकोर्ट ने आखिर क्या कहा
सबसे पहले यह जानना जरूरी है कि प्रयागराज हाईकोर्ट ने क्या कहा है। नोएडा के रहने वाले नवनीत ने हाईकोर्ट में एक याचिका दायर की। उन्होंने अदालत को बताया कि वर्ष 2018 में मुकदमा अपराध संख्या 408 आईपीसी की धारा 420, 406, 467, 468, 120बी थाना फेस-3 में दर्ज किया गया था। पुलिस ने जांच के बाद 10 जुलाई 2018 को न्यायालय में आरोप पत्र दाखिल किया। मजिस्ट्रेट ने 18 जुलाई 2018 को आरोप पत्र संज्ञान लिया। इस आरोप पत्र को आरोपी ऋषि अग्रवाल और उसके साथियों ने हाईकोर्ट में चुनौती दी और आरोप पत्र ख़ारिज करने की याचना की। उच्च न्यायालय ने सुनवाई की और 7 मार्च 2024 को निर्णय दिया। अदालत ने आरोप पत्र और गौतमबुद्ध नगर के मजिस्ट्रेट के संज्ञान आदेश को बरकरार रखते हुए ऋषि अग्रवाल की याचिका खारिज कर दी थी।

जो राहत हाईकोर्ट ने नहीं दी, वह पुलिस से मिली 
अदालत से यह आदेश पारित होने के पश्चात पुलिस उपायुक्त नोएडा सेंट्रल ने 4 अप्रैल 2024 को एक आदेश पारित किया। 4 अप्रैल 2024 को उस आदेश में डीसीपी सेन्ट्रल ने लिखा, "कृपया गौतमबुद्ध नगर पुलिस आयुक्त के स्टाफ ऑफिसर के पत्र दिनांक 3 अप्रैल 2024 के माध्यम से थाना फेज-3 पर पंजीकृत मुकदमा अपराध संख्या 408/2018 धारा 420, 467, 468, 120बी के संबंध में अवगत कराया गया है कि श्री ऋषि अग्रवाल ने पुलिस आयुक्त प्रार्थना पत्र प्रस्तुत किया है। अपर पुलिस उपायुक्त से जांच कराने के उपरांत नए तथ्य प्रकाश में आए हैं। पुलिस आयुक्त ने इस मुकदमे में अग्रिम विवेचना अपराध शाखा से कराए जाने के लिए निर्देश दिया है। विवेचना में नए तथ्यों के प्रकाश में आने के फलस्वरूप थाना फेज-3 पर पंजीकृत मुकदमा अपराध संख्या 408/2018 में दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 173(8) के अंतर्गत आगे विवेचना किया जाना समीचीन होगा।

इस मुकदमे की अग्रिम विवेचना किए जाने के आदेश पारित किए जाते हैं। प्रभारी निरीक्षक थाना फेज-3 को निर्देशित किया जाता है कि माननीय न्यायालय को सूचित करते हुए अभियोग से संबंधित समस्त अभिलेख और प्रपत्र अविलंब अपराध शाखा को उपलब्ध कराना सुनिश्चित करें।" कुल मिलाकर आरोपियों को उनकी शिकायत पर बड़ी राहत दे दी गई। यहां उल्लेखनीय है, सामान्य रूप से पुलिस आरोपियों की शिकायत पर इस तरह का फैसला नहीं लेती है। यह गौतमबुद्ध नगर पुलिस कमिश्नरेट का 'एक्स्ट्रा ऑर्डनरी एक्ट' है। पीड़ित की शिकायत पर ऐसे आदेश होना सामान्य है।
सीआरपीसी की धारा 173(8) क्या है

धारा 173 को किया परिभाषित
हाईकोर्ट ने अपने आदेश में सीआरपीसी की धारा 173 को परिभाषित किया है। इस धारा की कोई बात किसी अपराध के संबंध में उपधारा (2) के अधीन रिपोर्ट मजिस्ट्रेट को भेजे जाने के पश्चात आगे अन्वेषण को रोकने वाली नहीं समझी जाएगी और जहां ऐसे अन्वेषण पर पुलिस थाने का भारसाधक अधिकारी मौखिक या दस्तावेजी अतिरिक्त साक्ष्य प्राप्त करता है, वहां वह ऐसे साक्ष्य के संबंध में विहित प्ररूप में अतिरिक्त रिपोर्ट या रिपोर्टें मजिस्ट्रेट को भेजेगा; और उपधारा (2) से (6) के उपबंध ऐसी रिपोर्ट या रिपोर्टों के संबंध में यथाशक्य उसी प्रकार लागू होंगे जैसे वे उपधारा (2) के अधीन भेजी गई रिपोर्ट के संबंध में लागू होते हैं।

सरकार को भी आगे जांच करने का अधिकार नहीं : हाईकोर्ट
इसके आगे अदालत ने कहा है कि एक बार जब पुलिस ने आरोप पत्र दाखिल कर दिया है तो उन्हें अपराध की आगे की जांच करने से रोका नहीं जाता है, लेकिन निर्धारित प्रारूप में ऐसे साक्ष्य के बारे में आगे की रिपोर्ट प्रस्तुत करने के उनके अधिकार सीमित हैं। इसलिए, न्यायालय द्वारा अपराध का संज्ञान लेने के बाद पुलिस मामले की आगे की जांच कर सकती है, लेकिन वह संहिता की धारा 173 की उप-धारा (8) के मद्देनजर मजिस्ट्रेट की अनुमति से ऐसा करेगी। वे मजिस्ट्रेट की अनुमति के बिना अपराध की आगे की जांच नहीं कर सकते हैं। किसी भी स्थिति में पुलिस को अपराध की फिर से जांच करने या नए सिरे से जांच करने और अंतिम रिपोर्ट देने का अधिकार नहीं है। फिर से जांच करने की शक्ति पुलिस के पास उपलब्ध नहीं है, जिसमें जांच अधिकारी से लेकर पुलिस महानिदेशक तक सभी रैंक के अधिकारी शामिल हैं, साथ ही राज्य सरकार भी शामिल है। फिर से जांच करने का निर्देश देने की शक्ति केवल इस न्यायालय या सर्वोच्च न्यायालय में संहिता की धारा 482 या संविधान की धारा 226 के तहत निहित है। अदालत ने 'पीतांबरन बनाम केरल राज्य और अन्य; 2023 (124) एसीसी 325' का उद्धरण अपने आदेश में दिया है।

अदालत ने कहा कि प्रथम दृष्टया पुलिस उपायुक्त सेंट्रल नोएडा को आगे की जांच का निर्देश देने वाला आदेश पारित करने का अधिकार था, लेकिन उस शक्ति का प्रयोग केवल मजिस्ट्रेट की अनुमति से ही किया जा सकता था। पुलिस द्वारा एकतरफा नहीं किया जा सकता है। न्यायालय को सूचित किया जाता है कि दिनांक 4 अप्रैल 2024 के आदेश के अनुपालन में जांच का कार्य एक नामित पुलिस निरीक्षक राधा रमन सिंह करेंगे। वह अपराध शाखा के प्रभारी हैं। उन्होंने मामले की वस्तुतः नए सिरे से जांच की और 6 मई 2024 को सभी आरोपियों को दोषमुक्त करते हुए अंतिम रिपोर्ट प्रस्तुत कर दी। यह सामान्य प्रक्रिया नहीं है।

गौतमबुद्ध नगर पुलिस पर गंभीर आरोप
याचिकाकर्ता के वकील आलोक यादव ने गौतमबुद्ध नगर पुलिस पर हाईकोर्ट में सुनवाई के दौरान कई गंभीर आरोप लगाए हैं।
1. पुलिस को मामले की नए सिरे से जांच करने का कोई अधिकार नहीं है। वह आगे की जांच करने की आड़ में आरोपियों को दोषमुक्त करते हुए अंतिम रिपोर्ट पेश करना चाहते थे। पिछली रिपोर्ट को पलट दिया गया है, जिसमें उन पर आरोप पत्र दायर किया गया है।
2. वकील ने अदालत को यह बताया कि याचिकाकर्ता को अब राधा रमन सिंह परेशान कर रहे हैं। उसे पुलिस स्टेशन में आने और सबूत पेश करने के लिए कह रहे हैं। पुलिस उपायुक्त सेंट्रल नोएडा, अपराध शाखा के निरीक्षक राधा रमन सिंह और गौतमबुद्ध नगर आयुक्तालय की यह कार्रवाई प्रथम दृष्टया स्पष्ट रूप से अवैध है। न्यायलय की इजाजत के बिना की जा रही है।
3. पुलिस अपने अधिकार क्षेत्र से बाहर जाकर काम कर रही है। यह और भी अधिक गंभीर है क्योंकि इस न्यायालय ने पुलिस के पहले आरोप पत्र को मंजूरी दी थी। उसके बाद पुलिस आगे की जांच करने की आड़ में पुनः जांच या नए सिरे से जांच करके अंतिम रिपोर्ट पेश की। यह पुलिस नहीं कर सकती थी।
4. इसके अलावा, प्रथम दृष्टया न्यायालय द्वारा अपराध का संज्ञान लेने के बाद प्रस्तुत अंतिम रिपोर्ट का कोई महत्व नहीं है। यह ऐसी रिपोर्ट नहीं है, जिसे मजिस्ट्रेट द्वारा स्वीकार किया जा सके। जिसके आधार पर आपराधिक मामले की कार्यवाही को रोका जा सके। मजिस्ट्रेट के समक्ष मामले का अंत किया जा सके। यह मुकदमा पुलिस की ओर से दाखिल किए गए आरोप पत्र के आधार पर आगे बढ़ना चाहिए। राधा रमन सिंह द्वारा प्रस्तुत अंतिम रिपोर्ट अवास्तविक है। उसने अधिकार क्षेत्र के बिना काम किया है।
5. क्राइम ब्रांच के इंस्पेक्टर के साथ आयुक्त, उपायुक्त और अतिरिक्त उपायुक्त स्तर के वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों ने कानून का दुरुपयोग किया है। जिससे पता लगता है कि सारे अफसरों ने हमराय होकर मुकदमे को खत्म करना चाहा है।

कोर्ट ने पुलिस अफसरों और सरकार से जवाब मांगें
नवनीत की याचिका पर जस्टिस जेजे मुनीर और जस्टिस अरुण कुमार सिंह देशवाल ने सुनवाई की। खंडपीठ ने याचिका स्वीकार कर ली है। क्राइम ब्रांच के इंस्पेक्टर, नोएडा सेंट्रल डीसीपी, पुलिस कमिश्नर और गृह विभाग के प्रमुख सचिव को नोटिस जारी किए हैं। इन सभी को जवाब देने के लिए तीन सप्ताह का समय दिया है। अन्य प्रतिवादी जवाबी हलफनामे दाखिल करेंगे। पुलिस उपायुक्त नोएडा सेन्ट्रल (जिन्होंने 04.04.2024 को आदेश पारित किया था) और निरीक्षक राधा रमन सिंह मामले में अपना-अपना रुख स्पष्ट करते हुए व्यक्तिगत हलफनामे प्रस्तुत करेंगे।

इंस्पेक्टर और डीसीपी इन सवालों के जवाब देंगे
1. पुलिस उपायुक्त बताएंगे कि उन्होंने क्यों सोचा कि वह संहिता की धारा 173(8) के तहत विद्वान मजिस्ट्रेट की अनुमति प्राप्त किए बिना आगे की जांच का निर्देश दे सकते हैं?
2. राधा रमण सिंह बताएंगे कि आगे की जांच की आड़ में वह फिर से कैसे कार्रवाई कर सकते हैं? नए सिरे से जांच के नाम पर मामले में एक अंतिम रिपोर्ट कैसे पेश की?
3. जहां पुलिस ने पहले एक आरोप पत्र दायर किया था, जिसे इस अदालत ने अनुमोदित भी किया था। अदालत ने कहा, "9 जुलाई, 2024 को आदेशों के लिए इस मामले को सुनवाई में रखा जाए।" उस दिन सारे प्रतिवादियों के जवाब खंडपीठ के सामने रखे जाएंगे।

याचिकाकर्ता को कोई परेशान नहीं करेगा
इस न्यायालय के अगले आदेश तक क्राइम ब्रांच के इंस्पेक्टर राधा रमन सिंह की और से याचिकाकर्ता को सीआरपीसी की धारा 91/160 के अंतर्गत जारी नोटिस का क्रियान्वयन स्थगित रहेगा। यह निरीक्षक या पुलिस बल को कोई अन्य सदस्य याचिकाकर्ता को तलब नहीं करेगा। इस बीच मजिस्ट्रेट पुलिस की पहले आरोप पत्र के आधार पर कार्यवाही करेंगे। यह आदेश हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार (अनुपालन) गौतमबुद्ध नगर के मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट के माध्यम से पुलिस उपायुक्त सेंट्रल नोएडा और इंस्पेक्टर राधा रमन सिंह को 9 जून, 2024 तक देंगे। अदालत ने यह आदेश 7 जून को पारित किया।

ऋषि अग्रवाल के खिलाफ करोड़ों की धोखाधड़ी का मुकदमा
वरुण मेहता नाम के कंपनी प्रबंधक वरुण मेहता ने 14 मार्च 2018 को थाना फेज-3 में एफआईआर दर्ज करवाई थी। उसने बताया कि उनकी कंपनी ब्रायस इंटरनेशनल प्राइवेट लिमिटेड आवासीय संपत्तियां, वाणिज्य धवन, फ़्लैट, अपार्टमेंट फ़ार्म हाउस, बहु-आयामी इमारत और कारख़ाने के शेड का निर्माण करती है। पूरे देश भर में यह कंपनी काम कर रही है। एक अन्य कंपनी डिग्निफाई बिल्डटेक प्राइवेट लिमिटेड है। ऋषि अग्रवाल, शेरोन अग्रवाल और राजेंद्र अग्रवाल इस कंपनी के निदेशक हैं। यही लोग इस कंपनी का दैनिक और नियमित काम काज करते हैं। क्योंकि दोनों कंपनियों का काम लगभग एक जैसा है, लिहाजा ऋषि अग्रवाल मई 2014 में संपर्क में आए थे। ऋषि अग्रवाल को पता चला कि हम लोग आवासीय परियोजना लॉन्च करना चाहते हैं और उसके लिए जमीन की तलाश कर रहे हैं।

ऋषि अग्रवाल ने बताया कि वह नोएडा में एक्सप्रेसवे के किनारे पर जमीन दिलवा देगा। हम लोगों को जमीन और उसके दस्तावेज दिखाए गए। हमारी कंपनी ने ऋषि अग्रवाल और राजेंद्र अग्रवाल की कंपनी को 8.80 करोड़ रुपये दे दिए। तय किया गया कि वर्ष 2014 तक यह जमीन ऋषि अग्रवाल अधिग्रहित करके हमारी कंपनी को देगा। लेकिन अब तक यह जमीन अधिग्रहित नहीं की गई है। दूसरी तरफ ऋषि अग्रवाल और उसके सहयोगी निदेशकों ने यह पूरा पैसा बेईमानी और धोखाधड़ी करने के इरादे से नोएडा में सेक्टर-38 के में बन रहे ग्रेट इंडिया कमर्शियल कॉम्प्लेक्स में लगा दिया। यह जानकारी मिली तो ऋषि अग्रवाल, शेरोन अग्रवाल और राजेंद्र अग्रवाल से पैसा वापस मांगा गया। इन लोगों ने कोई ध्यान नहीं दिया। इसके बाद तीनों लोगों को क़ानूनी नोटिस भेजा गया। नोटिस पर भी कोई जवाब नहीं दिया। इन लोगों ने पूछताछ में बताया कि हमारे कहने पर यह सारा पैसा शुभकामना नाम की एक कंपनी में ट्रांसफर कर दिया है। इस कंपनी का कार्यालय भी नोएडा में हैं। इस बारे में शुभकामना के निदेशक पीयूष तिवारी से पूछताछ की गई तो पीयूष तिवारी ने शपथ पत्र देकर बताया कि उनकी कम्पनी में कोई पैसा ऋषि अग्रवाल या उसके साथियों ने ट्रांसफर नहीं किया है। यह पूरी तरह झूठ है। इस तरह ऋषि अग्रवाल, उसकी पत्नी शेरोन अग्रवाल और सहयोगी राजेंद्र अग्रवाल ने धोखाधड़ी की है।

छह साल बाद अंडर ट्रायल केस की चार्जशीट खारिज की
इस शिकायत के आधार पर गौतमबुद्ध नगर के तत्कालीन वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक वैभव कृष्ण ने जांच का आदेश दिया था। जांच में सारे तथ्य सही पाए गए। जिसके बाद मुकदमा दर्ज किया गया था। थाना फ़ेज-3 पुलिस ने जांच की और तीनों अभियुक्तों के ख़िलाफ गौतमबुद्ध नगर जिला न्यायालय में चार्जशीट दाख़िल की थी। चार्जशीट को तीनों आरोपियों ने हाईकोर्ट में चुनौती दी। हाईकोर्ट ने पुलिस की चार्जशीट को सही मानते हुए ऋषि अग्रवाल की याचिका को खारिज कर दिया था। अब 6 साल बाद गौतमबुद्ध नगर पुलिस ने जांच के नाम पर अंडर ट्रायल केस की चार्जशीट को रद्द करके तीनों अभियुक्तों को क्लीनचिट दी है। इसी पर हाईकोर्ट ने सख्त रुख अपनाया है।

सबसे बड़ा सवाल
इस पूरे मामले में एक और सवाल है, जो सबसे बड़ा है। जब ऋषि अग्रवाल की शिकायत पर पुलिस कमिशनर ने एडिशनल डीसीपी से जांच करवाई तो नए तथ्य प्रकाश में आए। जिनके आधार पर अग्रिम विवेचना करने का आदेश पहले कमिश्नर के स्टाफ ऑफिसर ने जारी किया। पुलिस कमिश्नर का स्टाफ ऑफिसर भी डीसीपी रैंक का है। इसके बाद नोएडा सेंट्रल डीसीपी ने अग्रिम विवेचना का आदेश पारित किया। जब एडिशनल डीसीपी की जांच में नए तथ्य प्रकाश में आ गए थे तो नवनीत और मुक़दमा दर्ज करवाने वाले लोगों को नोटिस भेजकर क्राइम ब्रांच बुलाने की आवश्यकता क्यों पड़ी? पीड़ितों का कहना है कि जब पुलिस ने चार्जशीट को ख़ारिज करके फाइनल रिपोर्ट लगा दी तो उसके बाद हमें परेशान करने की आवश्यकता क्या थी? दरअसल, पुलिस नोटिस भेज कर दबाव बनाने की कोशिश कर रही थी। ताकि हम मामले को लेकर हाईकोर्ट या शासन नहीं जाएं। 

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