मंदिरों के वकील रिसीवर पर SC ने जताई चिंता : मथुरा के जज से मांगी रिपोर्ट, 19 दिसंबर तक सौंपने का आदेश

UPT | Supreme Court

Dec 11, 2024 12:51

सुप्रीम कोर्ट ने मथुरा के कई प्रमुख मंदिरों के प्रबंधन को वकीलों को बतौर कोर्ट रिसीवर सौंपे जाने के मामले में गंभीर संज्ञान लिया है। कई बार इस प्रकार के आरोप सामने आए हैं...

New Delhi News : सुप्रीम कोर्ट ने मथुरा के कई प्रमुख मंदिरों के प्रबंधन को वकीलों को बतौर कोर्ट रिसीवर सौंपे जाने के मामले में गंभीर संज्ञान लिया है। कई बार इस प्रकार के आरोप सामने आए हैं कि वकील इन मंदिरों के प्रबंधन पर नियंत्रण बनाए रखने के लिए संबंधित मुकदमों को जानबूझकर लंबा खींचते हैं। इससे मंदिरों के प्रबंधन में पारदर्शिता और निष्पक्षता की कमी हो सकती है। यह आरोप भी लगता रहा है कि रिसीवर के रूप में नियुक्त किए गए वकील व्यक्तिगत लाभ के लिए मुकदमों को लटकाते रहते हैं।

सुप्रीम कोर्ट ने मांगी रिपोर्ट
मथुरा, वृंदावन, गोवर्धन और बरसाना जैसे प्रमुख धार्मिक स्थल इस व्यवस्था से प्रभावित हो रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट ने मथुरा के जिला न्यायाधीश को आदेश दिया है कि वह 19 दिसंबर तक एक रिपोर्ट प्रस्तुत करें। इस रिपोर्ट में उन मंदिरों की सूची दी जाए, जिनके मुकदमे लंबित हैं और जहां वकील रिसीवर के रूप में नियुक्त किए गए हैं। इसके अलावा, कोर्ट ने यह भी पूछा है कि ये मुकदमे कब से लंबित हैं और वर्तमान स्थिति क्या है। रिपोर्ट में यह भी बताया जाए कि वकील के रूप में नियुक्त किए गए रिसीवर कौन हैं और उन्हें पारिश्रमिक के रूप में क्या राशि दी जा रही है।



वकील को मुकदमे को लंबा खींचने की अनुमति नहीं
सुप्रीम कोर्ट ने इस विषय पर विचार करते हुए कहा कि अदालतों को केवल न्याय का मंदिर माना जाना चाहिए और इसका दुरुपयोग किसी भी व्यक्ति के स्वार्थ के लिए नहीं किया जा सकता। कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि किसी भी वकील को मुकदमे लंबा खींचने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए, क्योंकि इससे न केवल न्याय की प्रक्रिया प्रभावित होती है, बल्कि मंदिरों के प्रशासन पर भी गलत प्रभाव पड़ सकता है। अगर कोई वकील व्यक्तिगत लाभ के लिए मंदिर के मामलों को लटकाता है, तो यह पूरी न्यायिक प्रक्रिया को कमजोर कर सकता है।

हाईकोर्ट के आदेश को चुनौती
इस मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई है। 27 अगस्त को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने आदेश दिया था कि मथुरा के प्रसिद्ध मंदिरों में वकील रिसीवर के रूप में नियुक्त किए जाएं। ईश्वर चंद शर्मा ने इस आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने कई प्रतिवादियों को नोटिस जारी किए हैं और मामले की अगली सुनवाई 19 दिसंबर को निर्धारित की है।

हाईकोर्ट ने क्या कहा
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने इस बारे में यह भी कहा था कि वकील इन मंदिरों के प्रबंधन को पर्याप्त समय नहीं दे सकते, क्योंकि मंदिर प्रशासन के लिए समर्पण और अनुभव की आवश्यकता होती है। विशेष रूप से वृंदावन और गोवर्धन जैसे प्रमुख धार्मिक स्थलों में, वकील को इस प्रकार का प्रशासन सही ढंग से नहीं संभाल सकते। हाईकोर्ट ने यह भी बताया कि मंदिरों के प्रबंधन में निष्ठा और कौशल का महत्व है, लेकिन मथुरा में इसे एक प्रतिष्ठा का प्रतीक बना दिया गया है, जिससे वकील इसे निजी लाभ के रूप में देखने लगे हैं।

कई मुकदमे 100 साल से ज्यादा पुराने
इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश में यह भी कहा गया था कि मथुरा जिले में मंदिरों के ट्रस्टों के प्रशासन की स्थिति बहुत भयावह हो गई है। विशेष रूप से वृंदावन, गोवर्धन, बलदेव, गोकुल और बरसाना जैसे मंदिरों में दीवानी मुकदमे लंबित हैं। इन मुकदमों में से कई तो 1923 से 2024 तक यानी करीब 100 साल से भी पुराने हैं। ऐसे मामलों में वकील रिसीवर के रूप में नियुक्त किए गए हैं, जो मुकदमे को लंबा खींचने में व्यक्तिगत रूप से हितपूर्ण होते हैं, क्योंकि इससे उनका नियंत्रण मंदिरों के प्रशासन पर बना रहता है।

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