अतुल सुभाष केस के बीच सुप्रीम कोर्ट का फैसला : गुजारा भत्ता के लिए जारी की गाइडलाइंस, रखना होगा इन बातों का ध्यान...

UPT | अतुल सुभाष केस के बीच सुप्रीम कोर्ट सख्त

Dec 12, 2024 13:51

सुप्रीम कोर्ट में एक तलाक मामले में बहस के दौरान गुजारा भत्ता की राशि निर्धारित करने के लिए कुछ पहलुओं पर ध्यान देने की सलाह दी गई। इस मामले में 8 कारकों का एक फॉर्मूला तय किया गया है..

New Delhi : सॉफ्टवेयर इंजीनियर अतुल सुभाष की आत्महत्या मामले में चर्चाएं जारी हैं। इस बीच, मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट ने गुजारा भत्ता से जुड़े एक मामले में अहम टिप्पणी की। अदालत ने 8 महत्वपूर्ण कारकों या फैक्टर्स का उल्लेख किया, जिनके आधार पर पत्नी को दिए जाने वाले गुजारा भत्ते की राशि तय की जा सकती है। हालांकि, यह निर्णय एक तलाक से जुड़े एक अलग मामले में दिया गया है।

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अतुल ने ज्यूडिशियल सिस्टम पर उठाए थे सवाल
सुप्रीम कोर्ट ने गुजारा भत्ता (Alimony) को लेकर एक अहम फैसला सुनाया है। जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस प्रसन्ना बी वरसाले की बेंच ने गुजारा भत्ता की राशि तय करने के लिए 8 प्रमुख फैक्टर्स निर्धारित किए हैं, जिन्हें ध्यान में रखते हुए यह रकम निर्धारित की जाएगी। इन कारकों का पालन करते हुए ही एलिमनी की राशि तय की जाएगी।

जानिए क्या हैं आठ महत्वपूर्ण कारक...

1.  पति और पत्नी की सामाजिक और आर्थिक स्थिति।

2. पत्नी और आश्रित बच्चों की जरूरतें।

3. पत्नी और आश्रित बच्चों की योग्यताएं और रोजगार की स्थिति।

4. आवेदक की कमाई और संपत्ति।

5. ससुराल में पत्नी का जीवन स्तर क्या है।

6. पारिवारिक जिम्मेदारी के लिए क्या नौकरी भी छोड़ी गई थी।

7. किसी तरह का कोई रोजगार नहीं करने वाली पत्नी का मुकदमेबाजी में होने वाला खर्च।

8. पति की आर्थिक क्षमता, उसकी कमाई और गुजारा भत्ता की जिम्मेदारी।

कोर्ट ने गाइडलाइंस जारी की?
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में स्पष्ट किया कि ये 8 फैक्टर्स कोई फॉर्मूला नहीं, बल्कि 'गाइडलाइंस' हैं, जिन्हें तलाक के मामलों में गुजारा भत्ता तय करते समय ध्यान में रखना आवश्यक है। कोर्ट ने किरण ज्योत बनाम अनीश प्रमोद पटेल मामले का हवाला देते हुए कहा कि उस फैसले में अदालत ने यह भी निर्देश दिया था कि गुजारा भत्ता की राशि इतनी न हो कि पति को सजा जैसा महसूस हो, लेकिन इसे इस हद तक होना चाहिए कि तलाकशुदा पत्नी एक बेहतर और सम्मानजनक जिंदगी जी सके।

पुरुष को क्यों देना पड़ता है गुजारा भत्ता
महिलाओं, बच्चों और माता-पिता को मिलने वाले गुजारा भत्ता का प्रावधान भारतीय कानून में है। इसे पहले सीआरपीसी की धारा 125 में लागू किया गया था और अब यह प्रावधान नए कानून, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS) की धारा 144 में शामिल है। इस धारा के तहत यह कहा गया है कि कोई भी पुरुष अपनी पत्नी, बच्चों या माता-पिता को अलग होने की स्थिति में गुजारा भत्ता देने से इनकार नहीं कर सकता। इसमें नाजायज लेकिन वैध बच्चों को भी शामिल किया गया है। धारा 144 स्पष्ट करती है कि अगर पत्नी, बच्चे या माता-पिता अपनी जरूरतों को पूरा करने में सक्षम नहीं हैं, तो पुरुष को उन्हें हर महीने गुजारा भत्ता देना होगा।

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इन मामलों में नहीं मिलेगा गुजारा भत्ता
इस धारा में यह प्रावधान किया गया है कि केवल वही पत्नी हर महीने गुजारा भत्ता पाने की हकदार होगी, जिसे उसके पति ने तलाक दे दिया हो और जिसने तलाक के बाद दूसरी शादी न की हो। इसके अलावा, अगर पति किसी दूसरी महिला के साथ रह रहा है या उससे शादी करने का वादा करता है, तो पत्नी को तलाक लेने का अधिकार होगा, और इस स्थिति में भी पति को अपनी पत्नी को गुजारा भत्ता देना होगा। वहीं, अगर कोई पत्नी बिना किसी उचित कारण के पति से अलग रहती है, किसी अन्य पुरुष के साथ रहती है, या आपसी सहमति से अलग होती है, तो वह गुजारा भत्ता पाने की हकदार नहीं होगी।

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