Allahabad High Court : इलाहाबाद हाईकोर्ट का बड़ा ऐलान, बिना आदेश जारी किए नहीं रोका जा सकता कर्मचारी का वेतन

UPT | Allahabad High Court

Jun 20, 2024 14:21

उत्तर प्रदेश के मान्यता प्राप्त बेसिक स्कूल नियमावली 1978 के तहत जब तक किसी कर्मचारी के खिलाफ कोई प्रतिकूल कार्रवाई या सेवा समाप्ति का आदेश जारी नहीं होता, तब तक वह कर्मचारी सेवा में माना जाएगा और वेतन...

Short Highlights
  • उच्च न्यायालय ने कहा  बिना अनुशासनात्मक कार्यवाही के वेतन नहीं काटा जा सकता
  • 21 अगस्त 2003 को  याचिकाकर्ताओं को सहायक अध्यापक के पद पर चयन के लिए स्वीकृति प्रदान की गई
  • जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी ने याचियों को नियुक्ति देने के आदेश को भी वापस नहीं लिया

 

 

Prayagraj News : एक मामले की सुनवाई के दौरान इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने कहा कि कर्मचारी के खिलाफ बिना अनुशासनात्मक कार्यवाही के वेतन नहीं काटा जा सकता है। हाई कोर्ट के अनुसार, उत्तर प्रदेश के मान्यता प्राप्त बेसिक स्कूल नियमावली 1978 के तहत जब तक किसी कर्मचारी के खिलाफ कोई प्रतिकूल कार्रवाई या सेवा समाप्ति का आदेश जारी नहीं होता, तब तक वह कर्मचारी सेवा में माना जाएगा और वेतन पाने का भी हकदार होगा। कोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ताओं का वेतन तब तक नहीं रोका जा सकता जब तक कि उन्हें सेवा से निलंबित या बर्खास्त न कर दिया गया हो। यह आदेश न्यायमूर्ति पीयूष अग्रवाल की कोर्ट ने जौनपुर के शिक्षक संजय सिंह व तीन अन्य लोगों की याचिका को स्वीकार करते हुए सुनाया है।

क्या है पूरा मामला?
दरअसल, जौनपुर के केशवनाथ सीनियर बेसिक स्कूल, होरैया, राम नगर विधमौवा में संजय सिंह व अन्य सहायक अध्यापक पद के लिए चयनित हुए थे। 21 अगस्त 2003 को जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी ने याचिकाकर्ताओं को सहायक अध्यापक के पद पर चयन के लिए स्वीकृति प्रदान की थी। इस दौरान, याचिकाकर्ताओं ने पदभार ग्रहण कर लिया और उन्हें नियमित आधार पर वेतन दिया जाने लगा। इसी बीच 2008 में एक शिकायत पर जांच की गई। इस जांच में याचियों और अधिकारियों की मिलीभगत से नियुक्ति पाने का आरोप लगाते हुए सभी का वेतन रोक दिया गया। साथ ही उन्हें पदों पर काम करने से भी रोक दिया गया। जिसके बाद जांच रिपोर्ट के आधार पर याचियों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की गई और बाद में आरोप पत्र जारी किए गए। इस कार्रवाई के खिलाफ याचिकाकर्ताओं ने हाईकोर्ट में आवेदन दाखिल किया। जिसमें एक अंतरिम आदेश पारित किया गया था। याचियों ने वेतन की कटौती को लेकर उच्च न्यायालय की शरण ली।

प्रतिवादियों के वकील ने दी दलील
उच्च न्यायालय में याची अधिवक्ता ने दलील देते हुए कहा कि इन नियुक्तियों को जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी, जौनपुर ने अनुमोदित किया था और प्रतिवादी नियुक्ति में अनियमितता साबित नहीं कर पाए हैं। दूसरी तरफ, प्रतिवादियों के अधिवक्ता ने दलील दी कि याचियों को उनके पदों पर नियुक्त करते समय उत्तर प्रदेश मान्यता प्राप्त बेसिक स्कूल (जूनियर हाईस्कूल) (शिक्षकों की भर्ती और सेवा की शर्तें ) नियम 1978 के विशिष्ट प्रावधानों का पालन नहीं गया। इस कारण याचियों की नियुक्ति अवैध थी, जिस वजह से उनका वेतन रोकना सही है।

इस मामले में कोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ताओं पर राज्य प्राधिकारियों के साथ मिलीभगत करने का केवल आरोप लगा है। लेकिन इसका कोई सबूत नहीं पेश किया गया था। जिसपर कोर्ट ने कहा कि याचियों की नियुक्त को अवैध नहीं कहा जा सकता। ऐसा इसलिए क्योंकि, चयन साक्षात्कार जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी के नामित व्यक्ति की उपस्थिति में किए गए थे और जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी की संतुष्टि के बाद ही याचिकाकर्ताओं को 21 अगस्त 2003 को  सहायक अध्यापक पद पर चयन के लिए स्वीकृति प्रदान की गई थी।

याचियों को बकाया वेतन देने का आदेश
इस मामले पर कोर्ट ने कहा कि प्रतिवादियों ने आज तक कोई ऐसा सबूत पेश नहीं किया है जिससे ये पता चल सके कि 24 मार्च 2008 की रिपोर्ट के मुताबिक याचिकाकर्ताओं के खिलाफ किसी तरह की प्रतिकूल कार्रवाई की गई थी या नहीं। इसके अलावा जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी ने याचियों को नियुक्ति देने के आदेश को भी वापस नहीं लिया। कोर्ट ने कहा कि इस तरह की स्थिति में अनुशासनात्मक जांच के बिना याचियों की सेवा समाप्त नहीं की जा सकती है। कोर्ट ने प्रतिवादियों को निर्देश दिया कि वे याचिकाकर्ताओं को वेतन का बकाया व सभी परिणामी लाभ प्रदान करें जिसके वो हकदार हैं। 

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