शास्त्र और शस्त्र का संगम : जानें पंचायती महानिर्वाणी अखाड़े का गौरवशाली इतिहास, जिन्हें मिली महाकालेश्वर की पूजा की जिम्मेदारी

UPT | पंचायती महानिर्वाणी अखाड़ा

Jan 13, 2025 18:52

देश में कुल 13 प्रमुख अखाड़े हैं और इनमें से एक प्रमुख अखाड़ा है पंचायती महानिर्वाणी अखाड़ा (प्रयागराज)। यह अखाड़ा एक शैव शस्त्रधारी अखाड़ा है और इसके पास महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग की पूजा की जिम्मेदारी भी है...

Prayagraj News : प्रयागराज में इस समय महाकुंभ का धार्मिक उत्सव अपने चरम पर पहुंचने वाला है। यह उत्सव 13 जनवरी से लेकर 26 फरवरी तक चलेगा और इसमें देशभर के विभिन्न अखाड़ों का हिस्सा बनना तय है। महाकुंभ में इन अखाड़ों की भूमिका महत्वपूर्ण होती है, क्योंकि यह धार्मिक परंपराओं को निभाने और सनातन धर्म के प्रचार के लिए जिम्मेदार होते हैं। इन अखाड़ों की स्थापना का उद्देश्य सनातन धर्म की रक्षा और उसके सिद्धांतों को फैलाना है। 

कई शताब्दियों से अस्तित्व मे ये अखाड़ा
देश में कुल 13 प्रमुख अखाड़े हैं और इनमें से एक प्रमुख अखाड़ा है पंचायती महानिर्वाणी अखाड़ा (प्रयागराज)। यह अखाड़ा एक शैव शस्त्रधारी अखाड़ा है और इसके पास महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग की पूजा की जिम्मेदारी भी है, जो कि एक पुरानी परंपरा के रूप में जारी है। इस अखाड़े का अस्तित्व कई शताब्दियों से है और यह अपनी धार्मिक जिम्मेदारियों को निभाता आ रहा है। 



अखाड़ों का उद्देश्य- धर्म की रक्षा और प्रचार
सनातन धर्म की रक्षा और उसके प्रचार-प्रसार के लिए सदियों पहले अखाड़ों का गठन किया गया था। इन अखाड़ों में शामिल होने वाले साधु-संतों को शास्त्रों के साथ शस्त्र की शिक्षा भी दी जाती थी, ताकि वे धर्म की रक्षा में सक्षम हों। समय के साथ 13 अखाड़े स्थापित हो गए और वे सभी सनातन धर्म की रक्षा में जुटे हुए हैं। इन अखाड़ों का उद्देश्य आज भी वही है, जो पहले था—धर्म की रक्षा और उसका प्रसार। 

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कब हुई महानिर्वाणी अखाड़े की स्थापना
महानिर्वाणी अखाड़े की स्थापना विक्रम संवत 805 में हुई थी, जो कि आवाहन और अटल अखाड़ों से जुड़ा हुआ था। इस अखाड़े की स्थापना आठ संतों ने मिलकर की थी। यह अखाड़ा विशेष रूप से शैव परंपरा से जुड़ा हुआ है और इसके इष्ट देव कपिल देव माने गए हैं। महानिर्वाणी अखाड़ा बिहार के हजारीबाग जिले में स्थापित हुआ था और समय के साथ प्रयागराज में इसका विस्तार हुआ। इसके बाद इस अखाड़े का नाम 'श्री पंचायती महानिर्वाणी अखाड़ा' रखा गया। 

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अखाड़े को दिए गए दो भाले
महानिर्वाणी अखाड़ा लगभग 1200 साल पुराना है और इसकी स्थापना के समय इस अखाड़े को दो शक्ति स्वरूप भाले भी दिए गए थे। इन भालों का नाम सूर्य प्रकाश और भैरव प्रकाश रखा गया है। इन दोनों भालों को अखाड़े के मंदिर में इष्ट देव के पास रखा जाता है और इनकी पूजा भी की जाती है। महाकुंभ के शाही स्नान के समय, इन भालों को सबसे पहले स्नान कराया जाता है और इसके बाद ही अखाड़े के साधु-संत स्नान करते हैं। भाले सूर्य प्रकाश और भैरव प्रकाश को शक्ति के प्रतीक के रूप में पूजा जाता है और यह अखाड़े के धार्मिक कर्तव्यों का हिस्सा हैं। इन भालों की पूजा एक महत्वपूर्ण परंपरा का हिस्सा है और जब साधु-संत महाकुंभ के शाही स्नान में जाते हैं, तो वे इन भालों के साथ सबसे आगे चलते हैं। स्नान के बाद इन भालों को शुद्ध किया जाता है और फिर अखाड़े के साधु-संत स्नान करते हैं। 

पारंपरिक विधियों का करते हैं पालन
अखाड़े में आज भी पारंपरिक विधियों का पालन किया जाता है। पंचायती महानिर्वाणी अखाड़े में भोजन तैयार करने के लिए प्राकृतिक संसाधनों का इस्तेमाल किया जाता है। चूल्हों में गोबर के कंडे और लकड़ी से खाना पकाया जाता है और इस भोजन को साधु-संतों के लिए तैयार किया जाता है। इसके साथ ही, अखाड़े में औषधीय पौधे और फल देने वाले पेड़ भी लगाए गए हैं, जिनकी देखभाल साधु-संत करते हैं। 

राजाओं ने भी ली थी अखाड़ों से मदद
महानिर्वाणी अखाड़े के सचिव महन्त यमुना पूरी के अनुसार, जब अखाड़े की स्थापना हुई थी, तब सनातन धर्म पर हमले हो रहे थे। उन कठिन परिस्थितियों में अखाड़ों ने धर्म की रक्षा के लिए कई युद्ध लड़े और जीते। इन अखाड़ों के योगदान के कारण ही सनातन धर्म आज भी सुरक्षित है। इसके अलावा, विभिन्न राजाओं ने भी अखाड़ों से मदद ली है और उनके साथ मिलकर कई युद्धों में विजय प्राप्त की है। 

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अखाड़े का सदस्य बनने के विशेष नियम
अखाड़े में सदस्य बनने के लिए विशेष नियम और प्रक्रियाएं हैं। पंचायती महानिर्वाणी अखाड़े में किसी भी व्यक्ति को सदस्य बनाने से पहले उसकी पूरी जांच-पड़ताल की जाती है। इसके बाद ही उसे अखाड़े का सदस्य बनाया जाता है। अखाड़े में पद की जिम्मेदारी निभाने के लिए भी लोकतांत्रिक तरीके से चयन प्रक्रिया अपनाई जाती है, ताकि योग्य व्यक्तियों को ही जिम्मेदारी मिल सके। 

शस्त्र के साथ शास्त्रों का इस्तेमाल
शास्त्रों के साथ शस्त्रों का भी उपयोग अखाड़े ने धर्म की रक्षा के लिए किया है। समय के साथ, अखाड़े शास्त्रों की शिक्षा देकर सनातन धर्म का प्रचार-प्रसार कर रहे हैं। वे आज भी वेद और शास्त्रों की शिक्षा देकर समाज को धर्म से जोड़ने का कार्य कर रहे हैं। अखाड़े का यह कार्य धर्म की रक्षा में निरंतर जारी है।

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