काशी का प्राचीन आवाहन अखाड़ा : आदि शंकराचार्य ने छठी शताब्दी में की स्थापना,यहां महिला साध्वियों को नहीं दी जाती दीक्षा

UPT | श्री पंचदशनाम आवाहन अखाड़ा

Jan 13, 2025 19:31

श्री पंचदशनाम आवाहन अखाड़ा वाराणसी के प्रसिद्ध दशाश्वमेध घाट पर स्थित है और यह शैव संप्रदाय का हिस्सा है। यह अखाड़ा हमेशा कुंभ मेले में भाग लेकर अपनी परंपराओं का निर्वहन करता है...

Prayagraj News : प्रयागराज में 13 जनवरी से महाकुंभ का आयोजन शुरू हो गया है, जो दुनिया का सबसे बड़ा धार्मिक और आध्यात्मिक उत्सव माना जाता है। इस महाकुंभ में भारत के प्रमुख 13 अखाड़ों के साधु संत भी भाग ले रहे हैं। महाकुंभ के दौरान ये साधु संत सभी 6 अमृत स्नान करेंगे। इन अखाड़ों में से एक प्रमुख अखाड़ा श्री पंचदशनाम आवाहन अखाड़ा है, जो खास अपनी परंपराओं और इतिहास के लिए जाना जाता है। इस अखाड़े में महिलाओं को दीक्षा देने की कोई परंपरा नहीं है, जबकि अन्य अखाड़ों में यह प्रथा मौजूद है। 

वाराणसी के प्रसिद्ध दशाश्वमेध घाट पर है स्थित
भारत में कुल 13 प्रमुख अखाड़े हैं, जो शैव, वैष्णव और उदासीन पंथ के सन्यासियों द्वारा संचालित होते हैं। इन अखाड़ों का विशेष महत्व कुंभ, सिंहस्थ या अर्धकुंभ मेले में होता है। ये सभी अखाड़े महाकुंभ में अपनी धार्मिक परंपराओं और प्रतिभा का प्रदर्शन करते हैं। श्री पंचदशनाम आवाहन अखाड़ा वाराणसी के प्रसिद्ध दशाश्वमेध घाट पर स्थित है और यह शैव संप्रदाय का हिस्सा है। यह अखाड़ा हमेशा कुंभ मेले में भाग लेकर अपनी परंपराओं का निर्वहन करता है और इसके महंत प्रेमपुरी महाराज हैं।



कब हुई आवाहन अखाड़े की स्थापना
श्री पंचदशनाम आवाहन अखाड़े की स्थापना छठी शताब्दी में आदि शंकराचार्य ने की थी। यह अखाड़ा शैव संप्रदाय के संन्यासियों से संबंधित है और इसका इष्टदेव भगवान गणेश और दत्तात्रेय हैं। इस अखाड़े का मुख्य उद्देश्य सनातन धर्म की रक्षा करना और लोगों को धार्मिक मार्ग पर चलने की प्रेरणा देना है। पहले इसे ‘आवाहन सरकार’ के नाम से भी जाना जाता था। समय के साथ इस अखाड़े का यह उद्देश्य आज भी जारी है, जहां नागा साधु धर्म की रक्षा के लिए तत्पर रहते हैं और समाज में विधर्म के खिलाफ खड़े होते हैं।

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समय के साथ अखाड़े में हुए बदलाव
समय के साथ अखाड़े में कुछ बदलाव किए गए हैं, जो प्राचीन समय की जरूरतों से मेल खाते थे। हालांकि, नागा साधुओं की परंपरा में कोई बड़ा बदलाव नहीं आया है। आज भी ये साधु आधुनिक साधनों का उपयोग नहीं करते और अपने परंपरागत रास्ते पर चलते हैं। उनका मानना है कि आधुनिकता साधु के लिए कोई मायने नहीं रखती। साधु का जीवन यांत्रिकता से दूर और सादगी से भरा होता है। इसलिए आज भी श्री पंचदशनाम आवाहन अखाड़े की परंपरा और उद्देश्य में कोई अंतर नहीं आया है।

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अखाड़े में होते हैं कई पद
अखाड़े में विभिन्न पद होते हैं, जिनमें से हर एक पद का अपना विशेष कार्य होता है। सबसे पहले महंत होते हैं, फिर अष्ट कौशल महंत, और थानापति होते हैं, जो अखाड़े के संचालन की देखरेख करते हैं। इसके अलावा, प्रत्येक अखाड़े में दो पंच होते हैं - एक रमता पंच और दूसरा शंभू पंच। अखाड़े में पांच सरदारों की नियुक्ति भी की जाती है, जो विभिन्न धार्मिक कार्यों और व्यवस्थाओं का ध्यान रखते हैं। ये पदाधिकारी अखाड़े की पूजा, अर्चना और अन्य आवश्यक कार्यों को व्यवस्थित रूप से संचालित करते हैं।

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अखाड़े में शामिल होने के नियम
अखाड़े में शामिल होने के लिए व्यक्ति को शुद्ध मन से गुरु की सेवा में लीन होना पड़ता है। उसे समाज की सभी बुराइयों को त्याग कर केवल ईश्वर की भक्ति में समर्पित होना होता है। यह एक कठिन मार्ग होता है, क्योंकि इसमें संसारिक सुखों का त्याग करना पड़ता है। नागा साधु बनने के लिए व्यक्ति को कठोर साधना और शिक्षा प्राप्त करनी होती है। इस मार्ग में बहुत से लोग बीच रास्ते में ही छोड़ देते हैं, लेकिन जो अंत तक अपने उद्देश्य पर दृढ़ रहते हैं, वही नागा साधु बनता है।

कभी नहीं मांगते भिक्षा
नागा साधु कभी भिक्षा नहीं मांगते हैं, बल्कि जो श्रद्धालु अपनी इच्छा से दान देते हैं, वे उसे स्वीकार करते हैं। इस अखाड़े का हिस्सा बनने के लिए व्यक्ति को न केवल अपने जीवन को शुद्ध करना पड़ता है, बल्कि उसे गुरु की सेवा में पूर्ण रूप से समर्पित होना होता है। यह एक लंबी प्रक्रिया है, जिसमें व्यक्ति को सांसारिक सुखों को छोड़कर केवल भगवान की भक्ति में लीन होना पड़ता है।

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