Mathura
ऑथर Asmita Patel

रंगनाथ भगवान ने दिए दर्शन : जीवात्मा को कैसे जाना है बैकुंठ धाम, इसका रास्ता बताते है भगवान 

Uttar Pradesh Times | रंगनाथ भगवान ने दिए दर्शन

Dec 23, 2023 13:22

उत्तर भारत के वृंदावन को “मंदिरों का शहर” कहा जाता है। यहां पर आपको कदम-कदम पर मंदिर और आश्रम मिलेंगे। यह भगवान की भूमि कही जाती है। यहां पर दो मंदिर बहुत ही प्रसिद्ध हैं, जिसमें पहला बांके बिहारी मंदिर और दूसरा श्री रंगनाथ मंदिर हैं। इस विशालतम दक्षिण शैली के सबसे बड़े रंगनाथ मन्दिर में शनिवार को बैकुंठ एकादशी के अवसर पर बैकुंठ द्वार को खोला गया हैं। बता दे यह मंदिर साल में सिर्फ एक बार ही खुलता हैं।

Mathura News: उत्तर भारत के वृंदावन को “मंदिरों का शहर” कहा जाता है। यहां पर आपको कदम-कदम पर मंदिर और आश्रम मिलेंगे। यह भगवान की भूमि कही जाती है। यहां पर दो मंदिर बहुत ही प्रसिद्ध हैं, जिसमें पहला बांके बिहारी मंदिर और दूसरा श्री रंगनाथ मंदिर हैं। इस विशालतम दक्षिण शैली के सबसे बड़े रंगनाथ मन्दिर में शनिवार को बैकुंठ एकादशी के अवसर पर बैकुंठ द्वार को खोला गया हैं। बता दे यह मंदिर साल में सिर्फ एक बार ही खुलता हैं। बैकुंठ द्वार पर विराजमान हो कर भगवान ने अपने भक्तों को दर्शन दिए हैं। मान्यता यह भी है कि बैकुंठ द्वार से जो भी भक्त निकलता है उसे बैकुंठ लोक की प्राप्ति होती है।

पुरे साल में एक बार होने वाले इस बैकुंठ उत्सव की शुरुआत देर रात भगवान रंगनाथ की मंगला आरती के साथ हुई है। इसके बाद सुबह ब्रह्म मुहूर्त में भगवान रंगनाथ माता गोदा जी के साथ वाद्य यंत्रों की ध्वनि के मध्य निज मन्दिर से पालकी में विराजमान हो कर बैकुंठ द्वार पहुंचे। यहां भगवान रंगनाथ की पालकी करीब आधा घंटे तक द्वार पर खड़ी रही। 

पौंडानाथ मन्दिर में विराजमान हुए भगवान रंगनाथ
भगवान रंगनाथ की सवारी जैसे ही बैकुंठ द्वार पर पहुंची तो मंदिर के महंत गोवर्धन रंगाचार्य के नेतृत्व में सेवायत पुजारियों ने पाठ किया। करीब आधा घण्टे तक हुए पाठ और अर्चना के बाद भगवान रँगनाथ, शठ कोप स्वामी, नाथ मुनि स्वामी और आलवर संतों की कुंभ आरती की गई। वैदिक मंत्रोचार के मध्य हुए पूजा पाठ के बाद भगवान रंगनाथ की सवारी मन्दिर प्रांगड़ में भृमण करने के बाद पौंडानाथ मन्दिर में विराजमान हुई। दरअसल ऐसा कहा जाता है कि भगवान का निज धाम बैकुंठ लोक ही है।

मन्दिर के पुजारी स्वामी राजू ने बताया कि इस 21 दिवसीय बैकुंठ उत्सव के 11 वें दिन बैकुंठ एकादशी पर्व पर बैकुंठ द्वार खोला जाता है। यह एकादशी वर्ष की सर्वश्रेष्ठ एकादशियों में से एक मानी जाती है। मन्दिर की मुख्य कार्यकारी अधिकारी अनघा श्री निवासन ने बताया कि अलवार आचार्य बैकुंठ उत्सव के दौरान अपनी रचित गाथाएं भगवान को सुनाते हैं। बैकुंठ एकादशी के दिन दक्षिण के सभी वैष्णव मन्दिरों में बैकुंठ द्वार ब्रह्म मुहूर्त में खुलता है। इसी परम्परा का निर्वाहन वृन्दावन स्थित रँगनाथ मन्दिर में किया जाता है। 

बेहद ही आकर्षक सजाया गया बैकुंठ द्वार
बता दे साल में एक बार खुलने वाले बैकुंठ द्वार पर बेहद ही आकर्षक सजावट की गई है। द्वार को सजाने के लिए करीब एक हजार किलो से ज्यादा फूल वृंदावन, दिल्ली और बैंगलुरू से मंगाए गए। इसके साथ ही बैकुंठ लोक में की गई लाइटिंग अहसास करा रही थी कि जैसे भगवान बैकुंठ धाम में विराजमान हों। बैकुंठ एकादशी के अवसर पर भगवान रंगनाथ के दर्शन कर भक्त आनंदित हो उठे। बैकुंठ एकादशी पर बैकुंठ द्वार खुलने के पीछे मान्यता है कि दक्षिण भारत के अलवार संतों ने भगवान नारायण से जीवात्मा ने उनके निज बैकुंठ जाने के रास्ता के बारे में पूछा। जिस पर भगवान ने बैकुंठ एकादशी के दिन बैकुंठ द्वार से निकलने की लीला दिखाई। यह परंपरा आज भी श्री रंगनाथ मंदिर में पारंपरिक नियमानुसार मनाई जा रही है।

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