Gorakhpur News : राष्ट्र, धर्म और लोक कल्याण को समर्पित रहा महंत दिग्विजयनाथ का जीवन

UPT | महंत दिग्विजय नाथ

Sep 19, 2024 14:23

1935 से 1969 तक नाथपंथ के विश्व विख्यात गोरक्षपीठ के पीठाधीश्वर रहे ब्रह्मलीन महंत दिग्विजयनाथ की 55वीं पुण्यतिथि के उपलक्ष्य में गोरखनाथ मंदिर में साप्ताहिक श्रद्धांजलि समारोह जारी है। साप्ताहिक कार्यक्रम में 20 सितंबर...

Gorakhpur News : गोरखनाथ मंदिर में चल रहे साप्ताहिक श्रद्धांजलि समारोह ने एक बार फिर महंत दिग्विजयनाथ जी के असाधारण जीवन और उनके अमूल्य योगदान पर प्रकाश डाला है। नाथपंथ के विश्व प्रसिद्ध गोरक्षपीठ के पीठाधीश्वर के रूप में 1935 से 1969 तक सेवा देने वाले महंत जी की 55वीं पुण्यतिथि के अवसर पर आयोजित इस कार्यक्रम में उनके जीवन के विभिन्न पहलुओं पर गहन चिंतन हो रहा है।

महंत दिग्विजयनाथ का जन्म राजस्थान के चित्तौड़ में हुआ 
महंत दिग्विजयनाथ जी का जन्म 1894 में राजस्थान के चित्तौड़ में हुआ था। बचपन में उनका नाम नान्हू सिंह था। महज पांच वर्ष की आयु में वे गोरखपुर आ गए, जहां उनकी शिक्षा-दीक्षा हुई और धीरे-धीरे उन्होंने अपने जीवन को धर्म, अध्यात्म और राष्ट्रसेवा के लिए समर्पित कर दिया। 15 अगस्त 1935 को वे गोरक्षपीठ के पीठाधीश्वर बने, जिसके बाद उन्होंने अपने जीवन के हर क्षण को समाज और राष्ट्र के उत्थान में लगा दिया।


1932 में महाराणा प्रताप शिक्षा परिषद की स्थापना की
महंत जी की दूरदर्शिता और समाज के प्रति उनकी प्रतिबद्धता का सबसे बड़ा उदाहरण है उनका शैक्षिक क्षेत्र में किया गया कार्य। उन्होंने 1932 में महाराणा प्रताप शिक्षा परिषद की स्थापना की, जो आज पूर्वांचल में शिक्षा का एक महत्वपूर्ण केंद्र बन चुका है। एक छोटे से किराए के मकान से शुरू हुआ यह संस्थान आज लगभग चार दर्जन शैक्षणिक संस्थाओं का संचालन कर रहा है, जिसमें प्राथमिक स्तर से लेकर विश्वविद्यालय स्तर तक की शिक्षा शामिल है। 

गोरखपुर विश्वविद्यालय की स्थापना में योगदान
महंत जी की दूरदर्शिता का एक और उदाहरण है उनका गोरखपुर विश्वविद्यालय की स्थापना में योगदान। 1958 में उन्होंने अपनी संस्था महाराणा प्रताप डिग्री कॉलेज को विश्वविद्यालय की स्थापना के लिए दान कर दिया। यह उनकी निःस्वार्थ सेवा भावना और शिक्षा के प्रति समर्पण का एक ज्वलंत उदाहरण है।

धार्मिक नेता, सच्चे देशभक्त और स्वतंत्रता सेनानी
महंत दिग्विजयनाथ जी केवल एक धार्मिक नेता ही नहीं थे, बल्कि वे एक सच्चे देशभक्त और स्वतंत्रता सेनानी भी थे। युवावस्था से ही उन्होंने भारत की स्वतंत्रता के लिए संघर्ष किया। 1920 में महात्मा गांधी के असहयोग आंदोलन के समर्थन में उन्होंने अपनी पढ़ाई छोड़ दी। उनकी राष्ट्रभक्ति और क्रांतिकारी विचारधारा के कारण अंग्रेज सरकार उन पर लगातार नजर रखती थी।

1967 में गोरखपुर लोकसभा क्षेत्र से सांसद चुने गए
स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद भी महंत जी ने राष्ट्र निर्माण में अपना योगदान जारी रखा। वे 1937 में हिंदू महासभा में शामिल हुए और 1961 में इसके राष्ट्रीय अध्यक्ष बने। उन्होंने राजनीति को लोक कल्याण का माध्यम माना और इसी भावना से काम किया। 1967 में वे गोरखपुर लोकसभा क्षेत्र से सांसद चुने गए।

अयोध्या में  राम मंदिर आंदोलन से भी नाम जुड़ा
महंत दिग्विजयनाथ जी का नाम अयोध्या में राम मंदिर आंदोलन से भी जुड़ा हुआ है। वे इस आंदोलन के प्रमुख प्रेरणास्रोत थे। 1934 से 1949 तक उन्होंने लगातार इस मुद्दे को जीवंत रखा और 1949 में श्रीराम जन्मभूमि मुक्ति आंदोलन का नेतृत्व किया। 22-23 दिसंबर 1949 को जब अयोध्या में रामलला की मूर्ति प्रकट हुई, तब वे स्वयं वहां मौजूद थे।

अखिल भारतीय अवधूत भेष बारहपंथ योगी महासभा की स्थापना की
समाज में एकता और सद्भाव स्थापित करने के लिए महंत जी ने कई महत्वपूर्ण कदम उठाए। 1939 में उन्होंने अखिल भारतीय अवधूत भेष बारहपंथ योगी महासभा की स्थापना की, जिसका उद्देश्य देश भर के संतों को राष्ट्रहित और लोक कल्याण के लिए एकजुट करना था। उन्होंने विभिन्न धार्मिक और सामाजिक सम्मेलनों का आयोजन किया, जिनमें 1960 में हरिद्वार में अखिल भारतीय षडदर्शन सभा सम्मेलन, 1961 में दिल्ली में अखिल भारतीय हिंदू सम्मेलन और 1965 में दिल्ली में अखिल विश्व हिंदू सम्मेलन शामिल हैं।

समर्पित धर्मगुरु, प्रखर राष्ट्रवादी और समाज सुधारक थे
महंत दिग्विजयनाथ जी का व्यक्तित्व बहुआयामी था। वे एक समर्पित धर्मगुरु, प्रखर राष्ट्रवादी, दूरदर्शी शिक्षाविद् और समाज सुधारक थे। उनका जीवन सेवा, त्याग और राष्ट्रप्रेम का एक अनुपम उदाहरण है। 1969 में उनके ब्रह्मलीन होने के बाद भी उनके विचार और आदर्श आज भी प्रासंगिक हैं और समाज को प्रेरित करते हैं।

आज जब हम महंत दिग्विजयनाथ जी की 55वीं पुण्यतिथि मना रहे हैं, तब यह याद रखना महत्वपूर्ण है कि उनका संपूर्ण जीवन राष्ट्र, धर्म, शिक्षा और समाज सेवा को समर्पित था। उनके द्वारा स्थापित शैक्षणिक संस्थान आज हजारों छात्रों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान कर रहे हैं। उनके द्वारा जलाई गई ज्ञान की ज्योति आज भी पूर्वांचल को प्रकाशित कर रही है।

20 सितंबर को होगी श्रद्धांजलि सभा 
महंत दिग्विजयनाथ जी की विरासत आज भी जीवंत है। गोरक्षपीठ के वर्तमान पीठाधीश्वर और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जी उनके आदर्शों और सिद्धांतों को आगे बढ़ा रहे हैं। 20 सितंबर (अश्विन कृष्ण पक्ष की तृतीया तिथि), शुक्रवार को को होने वाली श्रद्धांजलि सभा में देश भर के प्रमुख संत और गणमान्य व्यक्ति शामिल होंगे, जो इस महान व्यक्तित्व को अपनी श्रद्धांजलि अर्पित करेंगे। श्रद्धांजलि सभा गोरक्षपीठाधीश्वर एवं मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की अध्यक्षता में होगी

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