सीबीआई के मुताबिक वर्ष 2002 और 2003 के दौरान, आरोपी तत्कालीन शाखा प्रबंधक ने कुछ अज्ञात व्यक्तियों के साथ फर्जी तरीके से केवाईसी कर काल्पनिक दस्तावेजों के आधार पर केवीआईसी की मार्जिन मनी योजना-केवीआईबी के तहत 18 उधारकर्ताओं को ऋण स्वीकृत व वितरित किए।