'दर्पण' ने खोया अपना आखिरी चेहरा : किरदार को आईने में उतारने का जादू जानते थे राम गोविंद

UPT | Director Ram Govind

Sep 16, 2024 14:20

राम गोविंद दर्पण लखनऊ की शुरुआत के सबसे पहले नाटकों के निर्देशक थे। उनके निर्देशित कई नाटकों खामोश अदालत जारी है, स्टील फ्रेम, रोमांस रोमांच, शाबाश अनारकली, नुक्कड़ में माया वहाल ने अभिनय किया और उनकी उनसे नजदीकियां बढ़ी। बाद में दोनों विवाह सूत्र में बंध गये।

Lucknow News : मशहूर नाट्य संस्था दर्पण ने अपने आखिरी संस्थापक सदस्य राम गोविंद अतहर के निधन पर श्रद्धांजलि दी है। राम गोविंद कुछ समय से बीमार चल रहे थे और शनिवार को उनका निधन हो गया। लखनऊ के रंगकर्मियों ने इसे अपनी व्यक्तिगत क्षति बताया है। लेखक, निर्माता-निर्देशक राम गोविंद ने अपने काम से अलग पहचान बनाई। वहीं लखनऊ में दर्पण संस्था को खड़ा करने से लेकर आगे बढ़ाने में उनकी अहम भूमिका रही।

अभिनेत्री की तलाश में राम गोविंद आए लखनऊ
दर्पण लखनऊ की स्थापना करने वाले सात सदस्यों में से एक राम गोविंद मूल रूप से बिहार के समस्तीपुर के रहने वाले थे। वह अभिनेता और लेखक थे। लखनऊ आने के पहले से ही 15 वर्षों से नाटक कर रहे थे। उन्होंने तब के कलकत्ता और वर्तमान के कोलकाता रहकर बहुत काम किया। बिहार में घूम घूम कर अपने दल के साथ नाटक किये। इसी सिलसिले में उन्हें जब एक अभिनेत्री की जरूरत हुई, तब वह लखनऊ आये और कुंवर कल्याण सिंह के यहां रुके। यहां उन्हें उस समय की चर्चित अभिनेत्री माया के बारे में पता चला। रामगोविंद उन्हें लेने लखनऊ आये।  माया तो नहीं गईं। लेकिन, रामगोविंद ज़रूर लखनऊ में ही रह गए।

ऐसे पड़ी लखनऊ दर्पण की नींव
दर्पण कानपुर के संस्थापक प्रोफेसर सत्यमूर्ति (मास्साब) के सम्पर्क में राम गोविंद अपने नाट्य ग्रुप के एक सदस्य सदस्य कंवलजीत सिंह के माध्यम से आये। कंवलजीत लखनऊ के ही थे। उन्होंने कहा कि कानपुर में प्रोफेसर सत्यमूर्ति हैं, जिनमें थियेटर के लिये जुनून है। इस तरह दोनों की मुलाकात हुई। राम गोविंद ने मास्साब के बारे में कहा था कि ऐसा जुनूनी उन्होंने नहीं देखा। उन्हीं की प्रेरणा और आशीर्वाद से लखनऊ दर्पण की नींव पड़ी जिसमें राम गोविंद की भूमिका महत्वपूर्ण थी।

माया वहाल से हुई पहचान
दर्पण लखनऊ के सचिव राधेश्याम सोनी बताते हैं कि एक मुलाकात में राम गोविंद ने उन्हें बताया था कि मास्साब खामोश अदालत जारी है नाटक करना चाह रहे थे, उन्हें मेरे बारे में बताया गया वह पूर्व परिचित भी थे। राम गोविंद ने उनको आश्वस्त करते हुए कहा कि वो इस नाटक को निर्देशित कर सकते हैं, क्योंकि उनके पास वेणारी बाई का रोल करने के लिये सशक्त अभिनेत्री माया वहाल (माया गोविंद) हैं। उन्होंने कहा कि अगर माया जी नहीं साथ होतीं तो वो ये नाटक नहीं करते। बस इसी के साथ उन्होंने सन 1971 में स्वदेश बंधु, हरेकृष्ण अरोरा, जयदेव शर्मा कमल, विमल बनर्जी, उर्मिल कुमार थपलियाल और माया वहाल को साथ ले मास्साब की प्रेरणा और सहयोग से दर्पण लखनऊ की स्थापना की।

विवाह के बाद मुंबई शिफ्ट हो गए माया-रामगोविंद
राम गोविंद दर्पण लखनऊ की शुरुआत के सबसे पहले नाटकों के निर्देशक थे। उनके निर्देशित कई नाटकों 1971- खामोश अदालत जारी है, स्टील फ्रेम, 1972 - रोमांस रोमांच, शाबाश अनारकली, नुक्कड़ में माया वहाल ने अभिनय किया और उनकी उनसे नजदीकियां बढ़ी। बाद में दोनों विवाह सूत्र में बंध गये। कुछ समय बाद माया वहाल और राम गोविंद मुंबई आ गये। माया गोविंद गीतकार के रूप में स्थापित हो गयीं। उन्होंने 'डोंट वरी' और 'बेकसूर' जैसे फिल्मों के गाने लिखे तो 'अटरिया पे लोटन कबूतर रे' के कारण वह विवादों में भी रहीं। इसके अलावा सुपरहिट धारावाहिकों ‘मायका’ और ‘फुलवा’ के गीत उन्होंने ही लिखे। वहीं राम गोविंद ने फिल्म पटकथा लेखक, संवाद लेखक, कहानीकार के रूप में अपनी पहचान बनाई। राम गोविंद को 'तोहफा मोहब्बत का' फिल्म के लिए खास तौर पर जाना जाता है। उन्होंने कई पौराणिक सीरियल जैसे बी आर चोपड़ा की महाभारत, रामानंद सागर की रामायण में लेखन किया। वहीं निर्देशक के सफल फिल्मों की बात करें तो राम गोविंद को पत्तों की बाजी (1986), बागबान (2003) और तोहफा मोहब्बत का (1988) के जरिए खास पहचान मिली।

दर्पण बन चुका है विशाल वट वृक्ष
राधेश्याम सोनी कहते हैं कि दर्पण को लेकर रामगोविंदजी के योगदान को कभी भी भुलाया नहीं जा सकता हैं। वह आज हमारे बीच नहीं रहे। लेकिन, उनका लगाया पौधा दर्पण लखनऊ 60 वर्ष पूरे कर विशाल वट वृक्ष बन गया है। वर्ष 2023 में जब दर्पण की हीरक जयंती मनायी गई थी तो वो लखनऊ आये थे। उन्हें सम्मानित किया गया था। वह अपने पुराने मित्रों से मिलकर बहुत खुश भी हुए थे। दर्पण परिवार उनके योगदान, परिश्रम, संघर्ष और जिजीविषा को आदरपूर्वक याद करता रहेगा। दर्पण परिवार ने अपने संस्थापक सदस्य रामगोविंद को श्रद्धांजिल अर्पित की है।

इसलिए खास है दर्पण
दर्पण ने अब तक देश के 85 शहरों में 300 से अधिक नाटकों के लगभग 2,300 शो किए हैं। इनमें से कई हिंदी नाटक हैं, जबकि अन्य बंगाली, मराठी, गुजराती, कन्नड़, ओडिया से रूपांतरित किए गए थे दर्पण ने 77 महोत्सवों में भाग लिया है और 12 महोत्सवों का आयोजन किया है। पिछले 62 वर्षों में ऐसा कोई वर्ष नहीं रहा जब संस्था ने कोई नाटक मंचित नहीं किया हो। दर्पण से जुड़े कलाकारों को कालिदास सम्मान, यश भारती सम्मान, संगीत नाटक अकादमी (एसएनए) फेलोशिप और एसएनए पुरस्कार मिल चुके हैं। दर्पण ने भारत में आयोजित 8वें थियेटर ओलंपिक में भी प्रदर्शन किया है और यह उन कुछ संस्थाओं में से एक है जिसके साथ आज कई बेहतरीन कलाकार काम कर रहे हैं। वर्तमान में दर्पण के साथ 600 से अधिक कलाकार जुड़े हुए हैं, जो  लखनऊ, प्रयागराज, सीतापुर, बरेली, गोरखपुर, कानपुर, वाराणसी, भोपाल, दिल्ली और मुंबई में काम कर रहे हैं।

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