टालमटोल की आदत से 21 दिन में छुटकारा संभव : सीबीटी से बदल सकती है प्रवृत्ति, शोध में सामने आया परिणाम

UPT | प्रतीकात्मक तस्वीर

Dec 19, 2024 13:20

मनोविज्ञान विभाग की विभागाध्यक्ष और शोध निर्देशक डॉ. अर्चना शुक्ला ने बताया कि टालमटोल की आदत न केवल कार्यक्षमता को प्रभावित करती है, बल्कि मानसिक स्वास्थ्य पर भी नकारात्मक प्रभाव डालती है।

Lucknow News : क्या आपके बच्चे भी टालमटोल की आदत से जूझ रहे हैं? यह समस्या अब संज्ञानात्मक व्यवहार थेरेपी (CBT) से मात्र 21 दिनों में सुधारी जा सकती है। लखनऊ विश्वविद्यालय (लविवि) के मनोविज्ञान विभाग की शोधार्थी जया मिश्रा के किए गए एक अध्ययन में यह खुलासा हुआ है। शोध के अनुसार, इस थेरेपी के माध्यम से टालमटोल और तर्कहीन विश्वासों को सकारात्मक व्यवहार में बदला जा सकता है।

शोध में शामिल किए गए 200 छात्र
शोध के दौरान कुल 200 छात्रों को शामिल किया गया। इनमें से 23 ऐसे छात्र थे, जो टालमटोल की आदत से अधिक प्रभावित थे। इन छात्रों पर सीबीटी के 21 दिनों के सत्र लागू किए गए। सत्र के परिणामस्वरूप उनके व्यवहार में सकारात्मक बदलाव देखा गया। इस बदलाव की पुष्टि उनके अभिभावकों और मित्रों ने भी की।



टालमटोल आदत का मानसिक स्वास्थ्य पर असर
मनोविज्ञान विभाग की विभागाध्यक्ष और शोध निर्देशक डॉ. अर्चना शुक्ला ने बताया कि टालमटोल की आदत न केवल कार्यक्षमता को प्रभावित करती है, बल्कि मानसिक स्वास्थ्य पर भी नकारात्मक प्रभाव डालती है। यह आदत सभी आयु वर्गों में पाई जाती है, लेकिन इसका सबसे ज्यादा प्रभाव युवाओं पर पड़ता है।

टालमटोल क्यों बढ़ रही है?
वैश्विक अध्ययन के अनुसार, मोबाइल फोन की लत, शारीरिक निष्क्रियता, और कोविड-19 के बाद के हालात टालमटोल की आदत को बढ़ाने वाले प्रमुख कारक हैं। अल्बर्सन एट अल के 2022 के सर्वेक्षण और डुरु और बाल्किस के 2017 के शोध ने इस बात की पुष्टि की कि 92 प्रतिशत भारतीय छात्र किसी न किसी हद तक टालमटोल करते हैं, जिनमें से 62 प्रतिशत इसकी वजह से मानसिक दबाव झेलते हैं।

सीबीटी इस तरह करती है मदद
सीबीटी सत्र के दौरान छात्रों को टालमटोल और तर्कहीन विश्वासों को दूर करने के लिए सकारात्मक सोच सिखाई गई। प्रोफेसर अर्चना के मुताबिक, छात्रों को खुद को पुरस्कार देने, कार्यों को प्राथमिकता के आधार पर बांटने, और प्राइम टाइम व लोकेशन का उपयोग करने जैसे टिप्स दिए गए। रोजाना 50 मिनट के सत्र में इन तकनीकों को अभ्यास में लाया गया, जिससे छात्रों ने अपनी आदतों में सुधार किया।

सकारात्मक सोच ने बदली धारणा
सीबीटी सत्र के दौरान छात्रों को यह सिखाया गया कि वे नकारात्मक विचारों को सकारात्मक दृष्टिकोण में बदलें। उन्हें कार्य की प्राथमिकता तय करना, समय प्रबंधन करना और खुद को प्रेरित रखने के उपाय दिए गए। परिणामस्वरूप, छात्रों ने न केवल अपनी टालमटोल की आदत को बदला, बल्कि जीवन में एक नई ऊर्जा का अनुभव भी किया।

टालमटोल के लक्षण दिखें तो लें मदद
यदि किसी में टालमटोल की आदत के लक्षण दिखाई दें, तो मनोवैज्ञानिक की सलाह लेना अनिवार्य है। समय पर परामर्श लेने से इस समस्या का समाधान सरलता से हो सकता है। सही तरीके और मार्गदर्शन से इस आदत को नियंत्रित किया जा सकता है।

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