उपचुनाव होंगे आकाश आनंद की पहली परीक्षा: करियर को परवान चढ़ाने का मौका, बोले- जी जान लगा देंगे

UPT | akash anand

Jun 24, 2024 11:55

बसपा को अब आगे बढ़ाने का बड़ा दारोमदार आकाश आनंद के कंधे पर आ गया है। उनकी पहली परीक्षा उत्तराखंड विधानसभा उपचुनाव है, जिसमें उन्हें स्टार प्रचारक बनाया गया है। इसके अलावा उत्तर प्रदेश में 10 विधानसभा सीटों पर होने वाले उपचुनाव को लेकर भी उन्हें अपने रणनीतिक कौशल की परीक्षा देनी होगी।

Short Highlights
  • मायावती के दोबारा जिम्मेदारी सौंपने के बाद जनता का जीतना होगा भरोसा
  • युवाओं को पार्टी से जोड़ने की जिम्मेदारी, सही रणनीति का चुनाव जरूरी
Lucknow News: लोकसभा चुनाव में करारी शिकस्त के बाद बसपा नए सिरे से तैयारियों में जुट गई है। पार्टी न सिर्फ यूपी विधानसभा चुनाव 2027 बल्कि उससे पहले उपचुनाव को लेकर भी रणनीति को धार देगी। बसपा आमतौर पर उपचुनाव से परहेज करती है। लेकिन, बदली हुई राजनीतिक परिस्थितियों में उसे अपना अस्तित्व बचाए रखने के लिए मैदान में उतरना पड़ रहा है। इस बार मायावती के साथ उनके भतीजे आकाश आनंद अहम जिम्मेदारी निभाएंगे। बसपा सुप्रीमो ने अपने भतीजे आकाश आनंद पर दोबारा विश्वास जताते हुए उन्हें पार्टी कोऑर्डिनेटर और अपना एकमात्र उत्तराधिकारी घोषित कर दिया है। ऐसे में अब पार्टी को आगे बढ़ाने का बड़ा दारोमदार आकाश आनंद के कंधे पर आ गया है। उनकी पहली परीक्षा उत्तराखंड विधानसभा उपचुनाव है, जिसमें उन्हें स्टार प्रचारक बनाया गया है। इसके अलावा उत्तर प्रदेश में 10 विधानसभा सीटों पर होने वाले उपचुनाव को लेकर भी उन्हें अपने रणनीतिक कौशल की परीक्षा देनी होगी।

आकाश आनंद बोले- मिली अहम जिम्मेदारी
आकाश आनंद ने जिम्मेदारी मिलने पर सोमवार को कहा कि बहुजन समाज के उत्थान के लिए सर्वस्व त्याग करने वाली, बाबा साहेब के मिशन के लिए समर्पित, करोड़ों दलित बच्चों के सपनों को साकार करने वाली, बहुजन समाज की प्रेरणा स्त्रोत आदरणीय बहन जी का आशीर्वाद प्राप्त हुआ। आदरणीय बहन जी ने एक अहम जिम्मेदारी दी है, उसे पूरे जी जान से निभाना है।

आकाश को बचाने के लिए मायावती ने लिया था फैसला
सीतापुर में विवादित बयान के बाद मायावती ने लिया एक्शन आकाश आनंद को लोकसभा चुनाव के दौरान मायावती ने अपरिपक्व बताते हुए नेशनल कोऑर्डिनेटर और अपने उत्तराधिकारी की जिम्मेदारी से मुक्त कर दिया था। लेकिन, महज 47 दिनों में उन्होंने स्वयं आकाश को परिपक्तवता के साथ काम करने के लिए दोनों जिम्मेदारी फिर सौंप दी है। दरअसल, आकाश आनंद ने भाजपा को आतंकियों की पार्टी कहने सहित कई विवादित टिप्पणियां अपनी सीतापुर में 28 अप्रैल की रैली में की थी। इसके बाद भाजपा कार्यकर्ताओं ने उन पर एफआईआर दर्ज कराई थी। इसके बाद मायावती ने आकाश आनंद का राजनीति कैरियर बचाने के मकसद से उनसे जिम्मेदारी वापस ले ली। इसके बाद पूरे चुनाव में आकाश सामने नजर नहीं आए। दरअसल मायावती सामान्य तौर पर विवादित बयानों से बचती हैं। ऐसे में आकाश के इस तरह के बयानों से उन पर एफआईआर होती देख वह नहीं चाहती थीं कि आकाश का सियासी करियर परवान चढ़ने से पहले ही कानूनी दांवपेंच में उलझकर खत्म हो जाए। इसलिए उन्होंने आकाश को हिदायत देते हुए कुछ समय के लिए अहम जिम्मेदारियों से दूर कर दिया। वहीं सियासी विष्लेषकों का ये भी कहना है कि मायावती ने चुनाव में जनता का मिजाज भांप लिया था। ऐसे में वह नहीं चाहती थीं कि बसपा के खराब प्रदर्शन का ठीकरा आकाश के सिर पर फूटे, इसलिए उन्होंने ये कदम उठाया। 

बदली परिस्थितियों में सौंपी जिम्मेदारी
लोकसभा चुनाव के बाद जब नतीजे आए तो पार्टी पदाधिकारियों से लेकर प्रत्याशियों ने भी अपने फीडबैक में आकाश आनंद को दोबारा जिम्मेदारी सौंपने की बात कही। यहां तक चुनावी महासमर के दौरान आकाश को हटाए जाने से नुकसान होने का भी हवाला दिया। इसके साथ ही युवाओं को टारेगट करने के लिए पार्टी में आकाश आनंद को अहम चेहरा बनाने की भी राय दी गई। बसपा के जिम्मेदारों ने नगीना में चंद्रशेखर आजाद की जीत का भी हवाला दिया और कहा कि चंद्रशेखर की लोकप्रियता में काफी इजाफा हुआ है। ऐसे में अगर आकाश आनंद को जल्द अहम जिम्मेदारी नहीं सौंपी गई तो चंद्रशेखर दलित समाज के युवाओं के साथ अन्य तबके में अपनी पैठ बनाने में सफल हो सकते हैं। चंद्रशेखर आजाद के उपचुनाव में अपने प्रत्याशी उतारने का भी हवाला दिया गया। इन तमाम पहलुओं को ध्यान में रखते हुए मायावती ने आकाश आनंद की फिर से अपने उत्तराधिकारी के तौर पर ताजपोशी का मन बनाया। इसके साथ ही पार्टी नेताओं, कार्यकर्ताओं से उपचुनाव की तैयारियों के लिए जुटने को कहा।

उपचुनाव में उम्मीदवार नहीं उतारने से दूसरे दलों को मिलता है लाभ
उत्तर प्रदेश सहित देश में कई हिस्सों में उपचुनाव होने हैं। इसके अलावा हरियाणा, महाराष्ट्र में विधानसभा चुनाव का समय भी नजदीक आता जा रहा है। ऐसे में मायावती नहीं चाहती कि बसपा को आगे कोई नुकसान किसी भी स्तर पर उठाना पड़े। इसलिए उन्होंने सभी जगह पार्टी के जिम्मेदारों को तैयारी करने के निर्देश दिए हैं। उपचुनाव में उम्मीदवार खड़े करके बसपा दलित मतदाताओं को ये भी संदेश देना चाहती है कि उन्हें भ्रमित होने की जरूरत नहीं है। इसके साथ ही अगर मुसलमानों सहित अन्य वर्गों के वोट उसके उम्मीदवारों को मिलते हैं, तो भविष्य में उन्हें टिकट देने के लिए पार्टी रणनीति भी बना सकती है। बसपा नेताओं के मुताबिक उपचुनाव में मैदान में उतरने के साथ मतदाताओं के बीच सीधा संदेश जाएगा कि उनकी अपनी पार्टी मैदान में है, इसलिए उन्हें किसी अन्य दलों के प्रत्याशियों की ओर देखने की जरूरत नहीं है। अगर बसपा अपने प्रत्याशी मैदान में नहीं उतारती है तो इसका फायदा दूसरे दल उठा लेते हैं।

खिसकता जनाधार बचाने को नई रणनीति जरूरी
मायावती के लिए नए सिरे से रणनीति बनाना इसलिए भी जरूरी है कि जनता के बीच उसका प्रभाव लगातार सिमटता जा रहा है। इस बार लोकसभा चुनाव में सपा ने उत्तर प्रदेश की 80 लोकसभा सीटों में से सबसे ज्यादा 37 और कांग्रेस ने 6 सीटों पर जीत दर्ज की। बसपा का सूपड़ा साफ हो गया और वोट प्रतिशत भी खिसकर 9.39 पर सरक गया। वहीं देश में बसपा का वोट प्रतिशत महज 2.04 रह गया है।

जनता का विश्वास दोबारा हासिल करना बड़ी चुनौती है
लोकसभा चुनाव में बसपा के प्रदर्शन की बात करें तो 1989 में उसे 2 सीटें और 9.90 प्रतिशत वोट मिले। 1991 में 1 सीट और 8.70 प्रतिशत वोट, 1996 में 6 सीटें और 20 प्रतिशत मत, 1998 में 4 सीटें और 20.90 प्रतिशत वोट, 1999 में 14 सीटें और 22.80 प्रतिशत वोट, 2004 में 10 सीटें और 22.17 प्रतिशत वोट, 2009 में 20 सीटें और 27.42 प्रतिशत मत मिले। इसके बाद 2014 में बसपा अपना खाता खोलने में असफल रही और उसके 19.77 फीसदी वोट मिले। 2019 में सपा से गठबंधन होने के कारण बसपा को लाभ मिला और उसके 10 प्रत्याशी जीतने में सफल रहे। इस लोकसभा चुनाव में पार्टी को 19.43 प्रतिशत वोट मिले। उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव की परिणाम की बात करें तो 2022 में बसपा सिर्फ एक सीट पर सिमट गई। इससे पहले 2017 में उसे 19 सीटें और 22.23 प्रतिशत वोट मिले। विधानसभा चुनाव 2012 में पार्टी को 80 सीटें और 25.91 प्रतिशत मतदाताओं ने अपना मत दिया। ऐसे में मतदाताओं का विश्वास दोबारा हासिल करना बसपा के लिए बड़ी चुनौती बनी हुई है।
 

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