One Nation One Election : एक देश एक चुनाव क्या है, कैसे लागू होगा, दस सवालों के जवाब से समझें सब कुछ

UPT | वन नेशन वन इलेक्शन

Dec 12, 2024 20:15

सितंबर माह में, केंद्रीय मंत्रिमंडल ने 'एक देश, एक चुनाव' पर बनी कोविंद समिति की रिपोर्ट को भी मंजूरी दी थी। इस निर्णय के बाद अब इस पर और अधिक प्रगति की उम्मीद जताई जा रही है...

New Delhi News : केंद्रीय मंत्रिमंडल ने गुरुवार को 'एक देश, एक चुनाव' विधेयक को संसद में मंजूरी दे दी है। इसके बाद अब एक व्यापक विधेयक आने की संभावना जताई जा रही है। इससे पहले सितंबर माह में, केंद्रीय मंत्रिमंडल ने 'एक देश, एक चुनाव' पर बनी कोविंद समिति की रिपोर्ट को भी मंजूरी दी थी। इस निर्णय के बाद अब इस पर और अधिक प्रगति की उम्मीद जताई जा रही है। आइए दस सवालों के जवाब से समझते हैं कि एक देश एक चुनाव क्या है और ये कैसे लागू होगा ?

एक देश एक चुनाव (One Nation One Elaction) क्या है?
'एक देश एक चुनाव' प्रस्ताव का उद्देश्य पूरे भारत में लोकसभा और विधानसभा चुनावों को एक ही समय पर कराने का है। वर्तमान में लोकसभा और विधानसभा चुनाव अलग-अलग समय पर होते हैं, जो या तो पांच साल के कार्यकाल के बाद होते हैं या जब किसी कारणवश सरकार को भंग कर दिया जाता है। भारतीय संविधान के अनुसार यह व्यवस्था की गई है। राज्यों की विधानसभाओं के कार्यकाल की समयसीमा अलग-अलग होती है, जिसके आधार पर चुनाव होते हैं। हालांकि, कुछ राज्यों में लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ होते हैं, जैसे अरुणाचल प्रदेश, आंध्र प्रदेश, ओडिशा और सिक्किम। वहीं, राजस्थान, मध्य प्रदेश, तेलंगाना, छत्तीसगढ़ और मिजोरम में विधानसभा चुनाव लोकसभा चुनाव से ठीक पहले होते हैं और कुछ राज्यों में लोकसभा चुनाव समाप्त होने के छह महीने के भीतर विधानसभा चुनाव होते हैं, जैसे हरियाणा, जम्मू कश्मीर, महाराष्ट्र और झारखंड।



भारत में एक देश एक चुनाव का विचार कहां से आया?
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 'एक देश, एक चुनाव' के विचार को सबसे पहले 2019 में 73वें स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर सामने रखा था। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी काफी लंबे समय से एक देश एक चुनाव के समर्थक रहे हैं। उन्होंने तब कहा था कि देश के एकीकरण की प्रक्रिया को निरंतर बनाए रखना बेहद आवश्यक है। 2024 के स्वतंत्रता दिवस पर भी प्रधानमंत्री मोदी ने इस विषय पर विचार प्रस्तुत किए थे, जिससे यह मुद्दा और अधिक सार्वजनिक चर्चा में आया।

दुनिया में क्या पहले से ये कहीं लागू है?
दुनिया के विभिन्न देशों में 'एक देश, एक चुनाव' के मॉडल के विभिन्न रूपों को अपनाया गया है, ताकि चुनावी प्रक्रिया को अधिक प्रभावी और व्यवस्थित बनाया जा सके। इनमें अमेरिका, फ्रांस और स्वीडन जैसे देश शामिल हैं। अमेरिका में राष्ट्रपति, कांग्रेस और सीनेट के चुनाव हर चार साल में एक ही दिन तय तारीख पर होते हैं, जिससे यह सुनिश्चित होता है कि देश के प्रमुख चुनाव एक साथ हो सकें और चुनावी प्रक्रिया सरल और सुसंगत बने। इसी प्रकार, फ्रांस में भी हर पांच साल में राष्ट्रपति और नेशनल असेंबली (संसद का निचला सदन) के चुनाव एक साथ होते हैं। स्वीडन में, संसद (Riksdag) और स्थानीय सरकार के चुनाव हर चार साल में एक साथ होते हैं, और साथ ही नगरपालिका और काउंटी परिषद के चुनाव भी राष्ट्रीय चुनावों के साथ होते हैं, जिससे मतदाता एक ही दिन में विभिन्न चुनावी प्रक्रियाओं का हिस्सा बन सकते हैं।

एक देश एक चुनाव को लेकर बहस क्यों हो रही है?
"एक देश, एक चुनाव" पर बहस की शुरुआत 2018 में विधि आयोग द्वारा एक मसौदा रिपोर्ट पेश किए जाने के बाद हुई। इस रिपोर्ट में आयोग ने आर्थिक कारणों को प्रमुख रूप से सामने रखा। आयोग के अनुसार, 2014 में हुए लोकसभा चुनाव और उसके बाद विभिन्न विधानसभा चुनावों का खर्च लगभग समान था। अगर चुनाव एक साथ होते हैं, तो यह खर्च 50:50 के अनुपात में विभाजित हो जाएगा। अपनी ड्राफ्ट रिपोर्ट में, विधि आयोग ने यह भी कहा कि 1967 के बाद से एक साथ चुनाव कराने की प्रक्रिया में बाधा आई है। रिपोर्ट में यह उल्लेख किया गया कि स्वतंत्रता के बाद के शुरुआती वर्षों में देश में एक पार्टी का शासन था और क्षेत्रीय दल कमजोर थे, लेकिन समय के साथ अन्य दलों की ताकत बढ़ी और वे कई राज्यों में सत्ता में आए। इसके अलावा, संविधान की धारा 356 के लागू होने से भी एक साथ चुनाव कराने की प्रक्रिया प्रभावित हुई। आज के राजनीतिक परिप्रेक्ष्य में कई राज्यों में क्षेत्रीय दलों की संख्या बढ़ी है और कई जगह इन दलों की सरकार भी है।

भारत देश में पहली बार एक साथ चुनाव कब हुए थे?
देश में पहली बार स्वतंत्रता के बाद 1951-52 में चुनाव हुए थे। गणतंत्र बनने के बाद, 1950 में, 1951 से लेकर 1967 तक हर पांच साल में लोकसभा और सभी राज्य विधानसभाओं के चुनाव एक साथ होते रहे। इस दौरान, 1952, 1957, 1962 और 1967 में मतदाताओं ने केंद्र और राज्यों के लिए एक साथ मतदान किया। हालांकि, कुछ पुराने राज्यों का पुनर्गठन और नए राज्यों के गठन के कारण इस प्रक्रिया को 1968-69 में समाप्त कर दिया गया।

सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज जस्टिस एके सीकरी ने कहा कि 'एक राष्ट्र-एक चुनाव' कोई नई अवधारणा नहीं है, क्योंकि स्वतंत्र भारत के पहले चार आम चुनाव इसी प्रक्रिया के तहत हुए थे। इस प्रणाली में बदलाव 1960 के दशक से शुरू हुआ, जब गैर-कांग्रेस पार्टियों ने विभिन्न राज्यों में सरकारें बनानी शुरू की, जिसमें उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, पंजाब और हरियाणा जैसे राज्य शामिल थे। इसके बाद 1969 में कांग्रेस का विभाजन और 1971 के युद्ध के बाद मध्यावधि चुनाव हुए, जिसके कारण विधानसभा चुनावों की तिथियां कभी भी लोकसभा चुनावों से मेल नहीं खाईं और चुनाव अलग-अलग होने लगे।

एक देश एक चुनाव प्रस्ताव कैसे पारित होगा?
राज्यसभा के पूर्व महासचिव देश दीपक शर्मा ने एक साक्षात्कार में बताया कि 'एक राष्ट्र-एक चुनाव' प्रस्ताव को पारित करने के लिए एक विशेष प्रक्रिया अपनानी होगी, जिसमें संविधान में संशोधन और राज्यों का अनुमोदन शामिल है। सबसे पहले, इस विधेयक को संसद में पारित कराना आवश्यक होगा। एक प्रमुख चुनौती यह है कि इस प्रक्रिया को लागू करने से पहले राज्यों की विधानसभाओं को भंग करना होगा। हालांकि, इसका मतलब यह नहीं कि राज्यों के कार्यकाल को छोटा किया जाए। जैसे, राज्यसभा के गठन के समय जब कई सदस्य आए थे, तब यह सवाल उठा था कि उनका कार्यकाल कैसे निर्धारित किया जाए। इसके लिए जरूरी नहीं कि उनके कार्यकाल को घटाया जाए, बल्कि यह भी संभव है कि जिन राज्यों के कार्यकाल में समय पूरा नहीं हुआ, उन्हें अतिरिक्त समय दिया जाए। अब प्रश्न यह उठता है कि राज्यों की विधानसभा को कैसे भंग किया जाएगा? इसके दो समाधान हो सकते हैं- पहला, केंद्र राष्ट्रपति के माध्यम से राज्य में अनुच्छेद 356 लागू कर सकता है, या दूसरा, संबंधित राज्य सरकारें खुद ही इसे लागू करने के लिए कह सकती हैं।

एक देश एक चुनाव को लेकर चुनाव आयोग का क्या कहना है?
चुनाव आयोग ने कई बार यह स्पष्ट किया है कि वह लोकसभा और विधानसभा चुनावों को एक साथ कराने में सक्षम है। मुख्य चुनाव आयुक्त (सीईसी) राजीव कुमार के अनुसार, एक ही समय पर संसदीय और राज्य विधानसभा चुनाव कराना चुनाव आयोग के अधिकार क्षेत्र में नहीं आता। उन्होंने स्वीकार किया कि इस प्रक्रिया में कई लॉजिस्टिक चुनौतियां और व्यवधान हो सकते हैं, लेकिन यह फैसला विधायिकाओं को करना है। उन्होंने यह भी कहा कि अगर एक साथ चुनाव कराने का निर्णय लिया जाता है, तो चुनाव आयोग ने सरकार को सूचित कर दिया है कि प्रशासनिक दृष्टिकोण से इसे संभालने में आयोग सक्षम होगा।

इसे लागू करने के लिए क्या बदलाव करने होंगे?
अधिकारियों के अनुसार, एक साथ चुनाव कराने के लिए संविधान में कम से कम पांच संशोधन करने आवश्यक होंगे। इनमें संसद के दोनों सदनों की कार्यकाल से संबंधित अनुच्छेद 83, लोकसभा को राष्ट्रपति द्वारा भंग करने के विषय में अनुच्छेद 85, राज्य विधानमंडलों की अवधि से जुड़ा अनुच्छेद 172, राज्य विधानमंडलों के विघटन पर आधारित अनुच्छेद 174 और राष्ट्रपति शासन लागू करने के लिए अनुच्छेद 356 शामिल हैं। इसके अलावा, संविधान की संघीय संरचना को ध्यान में रखते हुए सभी राजनीतिक दलों की सहमति प्राप्त करना जरूरी होगा, साथ ही सभी राज्य सरकारों से भी मंजूरी प्राप्त करना अनिवार्य है।

एक देश एक चुनाव पर सरकार और विपक्ष का क्या कहना है?
"एक देश, एक चुनाव" की अवधारणा भाजपा के चुनावी एजेंडे का हिस्सा रही है और भाजपा के नेतृत्व वाला एनडीए केंद्र में अपने वर्तमान कार्यकाल के दौरान इस विधेयक को पेश करने की योजना बना रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने तीसरे कार्यकाल के पहले 100 दिनों के बाद कोविंद कमेटी की रिपोर्ट जारी की थी। इस साल स्वतंत्रता दिवस पर लाल किले से अपने भाषण में प्रधानमंत्री ने सभी राजनीतिक दलों से एक साथ चुनाव कराने के कानून के लिए एकजुट होने की अपील की थी। इससे पहले, केंद्रीय संसदीय कार्य मंत्री प्रह्लाद जोशी ने कहा था कि संसद इस मुद्दे पर परिपक्व है और चर्चा की जाएगी, इसलिए घबराने की कोई जरूरत नहीं है। उन्होंने यह भी कहा कि भारत लोकतंत्र की जननी है और देश में विकास हुआ है। वहीं, विपक्षी कांग्रेस ने 'एक राष्ट्र, एक चुनाव' के प्रस्ताव का कड़ा विरोध किया है। कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने स्पष्ट रूप से कहा कि लोकतंत्र में 'एक राष्ट्र, एक चुनाव' संभव नहीं है और कांग्रेस इसका समर्थन नहीं करती। उनका तर्क था कि अगर हम चाहते हैं कि हमारा लोकतंत्र जीवित रहे, तो हमें हर समय चुनाव कराने की स्वतंत्रता होनी चाहिए, जब भी जरूरत पड़े।

कोविंद समिति की सिफारिशें क्या हैं?
कोविंद समिति ने अपनी रिपोर्ट में एक साथ चुनावों के आयोजन के लिए दो चरणों में सिफारिशें पेश की हैं। पहले चरण में लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक ही समय पर आयोजित किए जाएंगे, जबकि दूसरे चरण में आम चुनावों के 100 दिनों के भीतर स्थानीय निकाय चुनाव, जैसे पंचायत और नगर पालिका, कराए जाएंगे। इस प्रक्रिया के तहत सभी चुनावों के लिए एक समान मतदाता सूची तैयार की जाएगी। इसके लिए पूरे देश में व्यापक चर्चा की जाएगी, और एक कार्यान्वयन समूह का गठन भी किया जाएगा।

एक राष्ट्र, एक चुनाव' विधेयक को मिली मंजूरी
गौरतलब है कि 12 नवंबर को केंद्रीय मंत्रिमंडल ने संसद में 'एक राष्ट्र, एक चुनाव' विधेयक को मंजूरी दी। इसके बाद उम्मीद जताई जा रही है कि एक व्यापक विधेयक सामने आएगा, जो पूरे देश में एक साथ चुनावों के आयोजन की दिशा में काम करेगा। इससे पहले, 18 सितंबर को केंद्रीय मंत्रिमंडल ने कोविंद समिति की रिपोर्ट को भी मंजूरी दी थी, जो 'एक देश, एक चुनाव' से संबंधित थी। यह समिति 2 सितंबर 2023 को पूर्व राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद की अध्यक्षता में गठित की गई थी। समिति ने इस साल की शुरुआत में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को अपनी 18,626 पन्नों वाली रिपोर्ट सौपी।

सरकार के मुताबिक, समिति ने 191 दिनों तक शोध कार्य और विभिन्न हितधारकों, विशेषज्ञों से परामर्श लेने के बाद यह रिपोर्ट तैयार की। पूर्व राष्ट्रपति कोविंद ने कहा कि केंद्र सरकार को 'एक राष्ट्र, एक चुनाव' पहल पर सर्वसम्मति बनानी चाहिए, क्योंकि यह मुद्दा किसी एक पार्टी के हित में नहीं, बल्कि पूरे राष्ट्र के हित में है। उन्होंने यह भी कहा कि इस पहल को लागू करने से देश की जीडीपी में 1-1.5 प्रतिशत तक वृद्धि हो सकती है, जो अर्थशास्त्रियों का भी मानना है।

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