दिवाली से पहले दुखती रग : प्रदूषण से राहत के लिए दिल्ली-एनसीआर में कृत्रिम बारिश की कवायद, कितना खर्चा, कौन कराएगा, जानें सब कुछ...

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Oct 23, 2024 17:02

दिल्ली में वायु प्रदूषण के स्तर में निरंतर वृद्धि हो रही है, इसका असर एनसीआर में भी देखने को मिल रहा है। लगातार बढ़ रहे प्रदूषण से एयर क्वॉलिटी इंडेक्स (AQI) कई इलाकों में 400 के करीब पहुंच गया है...

New Delhi : दिल्ली में वायु प्रदूषण के स्तर में निरंतर वृद्धि हो रही है, इसका असर एनसीआर में भी देखने को मिल रहा है। लगातार बढ़ रहे प्रदूषण से एयर क्वॉलिटी इंडेक्स (AQI) कई इलाकों में 400 के करीब पहुंच गया है। इस गंभीर स्थिति को देखते हुए, दिल्ली सरकार कृत्रिम बारिश कराने की योजना बना रही है। पर्यावरण मंत्री गोपाल राय ने घोषणा की है कि वे इस संबंध में केंद्र सरकार को एक पत्र लिखेंगे। उनका उद्देश्य दिल्ली की वायु गुणवत्ता में सुधार लाना है। अब आपके मन में सवाल उठ रहे होंगे ये कृत्रिम बारिश क्या होती है? आइये नीचे समझते हैं यह क्या होती है और देश में हुई तो इसे कौन कराएगा।

पर्यावरण मंत्री की केंद्र को पत्र लिखने की तैयारी
दिल्ली में वायु प्रदूषण का स्तर तेजी से बढ़ रहा है और कई इलाकों में एयर क्वॉलिटी इंडेक्स (AQI) 400 के करीब पहुंच गया है। इस स्थिति में दिल्ली सरकार अब कृत्रिम बारिश कराने पर विचार कर रही है। पर्यावरण मंत्री गोपाल राय ने कहा कि वे केंद्र सरकार को एक पत्र लिखकर कृत्रिम बारिश की तैयारी के लिए तत्काल बैठक बुलाने का आग्रह करेंगे। उन्होंने बताया, "एयर क्वॉलिटी में गिरावट, हवा की दिशा में बदलाव, पराली जलाने की घटनाएं और दिवाली के नजदीक होने को देखते हुए मैं तीसरी बार केंद्रीय पर्यावरण मंत्री को पत्र लिख रहा हूं। मैं चाहता हूं कि इस बार कृत्रिम बारिश का एक पायलट प्रोजेक्ट अवश्य किया जाए।" बता दें कि पिछले साल भी दिल्ली सरकार ने कृत्रिम बारिश के बारे में विचार किया था, लेकिन उस समय प्राकृतिक बारिश के कारण योजना को आगे नहीं बढ़ाया जा सका।



दिवाली से पहले हवा और जहरीली
अभी दिवाली शुरू होने में एक हफ्ते से ज्यादा का समय बचा है, सर्दियों की भी शुरुआत नहीं हुई है, लेकिन एनसीआर में हालात अभी से बिगड़ने लगे हैं। नोएडा, गाजियाबाद और दिल्ली समेत पूरे एनसीआर में धुंध ही नजर आ रही है। इसकी सबसे बड़ी वजह पंजाब और हरियाणा में जल रही पराली को माना जा रहा है। दिल्ली एनसीआर के अधिकतर इलाकों में AQI 400 के करीब चला गया है। बढ़ते वायु प्रदूषण की वजह से दिल्ली में ग्रैप-2 की पाबंदियां लागू की जा चुकी हैं।

दिल्ली सरकार राजधानी में आर्टिफिशियल रेन करवाना चाहती है। लेकिन क्या कृत्रिम बारिश करवाना इतना आसान है। क्लाउड सीडिंग से बारिश की संभावना बढ़ाई जा सकती है, यह बारिश की गारंटी नहीं देती। अगर करवाने भी लगे तो कितने दिन प्रदूषण कम रहेगा। इस काम में कितना खर्च आएगा?

क्या होती है कृत्रिम बारिश
विज्ञान के विभिन्न प्रयोगों ने दुनिया में कई महत्वपूर्ण बदलाव लाए हैं, जिनमें आर्टिफिशियल बारिश भी शामिल है। यह तकनीक नई नहीं है, इसके पहले भी विभिन्न स्थानों पर आवश्यकतानुसार बारिश कराने के प्रयास किए जाते रहे हैं। हाल ही में, दुबई में किए गए एक आर्टिफिशियल बारिश के प्रयोग के बाद बाढ़ जैसी स्थिति उत्पन्न हुई, जिसके कारण इस विषय पर फिर से चर्चा शुरू हुई है। कृत्रिम बारिश के लिए वैज्ञानिक आसमान में एक तय ऊंचाई पर सिल्वर आयोडाइड, ड्राई आइस और साधारण नमक को बादलों में छोड़ते हैं। इसे क्लाउड सीडिंग (Cloud Seeding) कहते हैं। जरूरी नहीं कि इसके लिए विमान से बादलों के बीच उड़ान भरी जाए। यह काम बैलून या रॉकेट से भी कर सकते हैं।

देश में हुई तो कौन कराएगा
सवाल यह भी उठता है कि अगर देश में आर्टिफिशियल बारिश हुई तो इसे कौन कराएगा। भारत में क्लाउड सीडिंग के प्रयोग का इतिहास है, लेकिन पहले यह प्रक्रिया विदेशी तकनीकों, उपकरणों और विशेषज्ञों की मदद से ही होती थी। अब, IIT कानपुर ने पहली बार स्वदेशी तरीके से साल्ट यानी कि केमिकल विकसित किया है और उनके द्वारा निर्मित एयरक्राफ्ट और सीडिंग टूल का उपयोग किया जाएगा। यदि दिल्ली में इसे लागू किया जाता है, तो यह पूरी तरह से स्वदेशी तकनीक होगी। इस तकनीक की प्रभावशीलता सीडिंग के सही तरीके पर निर्भर करती है। यदि इसे उचित ढंग से किया गया, तो यह निश्चित रूप से कारगर साबित हो सकता है। एक बड़े क्षेत्र में बारिश होने से प्रदूषण अपने आप कम हो जाता है, जिससे यह न केवल जलवायु के लिए, बल्कि स्वास्थ्य के लिए भी फायदेमंद है। आईआईटी के कृत्रिम वर्षा प्रोजेक्ट पर 2017 में काम शुरू हुआ। यूपी की योगी सरकार ने 2018 में बुंदेलखंड के किसानों की समस्या को ध्यान में रखकर सहयोग का हाथ बढ़ाया। यूपी सरकार के सहयोग से ही प्रयोग की शुरुआत हुई।

क्या खर्चा है
दिल्ली में कृत्रिम बारिश के लिए अनुमानित खर्च 10 से 15 लाख रुपये है। अब तक 53 देशों ने इस तकनीक का इस्तेमाल किया है। कानपुर में भी छोटे विमानों से इस प्रक्रिया के ट्रायल हुए हैं, जिनमें से कुछ में बारिश हुई, जबकि कुछ में केवल बूंदाबांदी देखने को मिली। 2019 में दिल्ली में कृत्रिम बारिश की योजना बनी थी, लेकिन बादलों की कमी और ISRO से अनुमति न मिलने के कारण इसे टालना पड़ा। इस प्रक्रिया के लिए हवा की गति और दिशा का सही होना जरूरी है। साथ ही, आसमान में 40 प्रतिशत बादल होने चाहिए, जिनमें पानी की मौजूदगी हो।

क्या पहले कभी हुई
भारत में कृत्रिम बारिश या क्लाउड सीडिंग का पहला इस्तेमाल 1984 में हुआ, जब तमिलनाडु गंभीर सूखे का सामना कर रहा था। तब की तमिलनाडु सरकार ने 1984-87 और फिर 1993-94 के बीच इस तकनीक का सहारा लिया। बाद में, 2003 और 2004 में कर्नाटक सरकार ने भी क्लाउड सीडिंग का प्रयोग किया और इसी वर्ष महाराष्ट्र सरकार ने भी इस तकनीक का इस्तेमाल किया। यह तकनीक विभिन्न राज्यों में सूखे से निपटने के लिए एक महत्वपूर्ण उपाय बन गई है।

चीन समेत कौन देश कराते हैं
क्लाउड सीडिंग का सबसे बड़ा सिस्टम चीन में स्थित है, जहां इसे विशेष रूप से बीजिंग और अन्य सूखाग्रस्त क्षेत्रों में बारिश बढ़ाने के लिए इस्तेमाल किया जाता है। चीन का मानना है कि इस तकनीक के जरिए वे अपनी जरूरत के अनुसार बारिश को नियंत्रित कर सकते हैं। 2008 के ओलंपिक खेलों से पहले, चीन ने बीजिंग में क्लाउड सीडिंग का प्रयोग किया था। साल 2017 में संयुक्त राष्ट्र के मौसम से जुड़े संगठन ने बताया था कि 50 से अधिक देशों ने क्लाउड सीडिंग की तकनीक का प्रयोग किया है। इनमें ऑस्ट्रेलिया, जापान, इथियोपिया, जिंबाब्वे, चीन, अमेरिका और रूस शामिल हैं। भारत ने भी इस तकनीक का उपयोग किया है, लेकिन चीन इसे सबसे अधिक इस्तेमाल करने वाले देशों में से एक है।

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