बच्चों में टीबी की पहचान बेहद कठिन : दूसरी सामान्य बीमारियों से मिलते हैं लक्षण, बाल रोग विशेषज्ञों को दी गई विशेष ट्रेनिंग

UPT | Tuberculosis Workshop

Oct 17, 2024 18:25

टीबी रोगियों की संख्या में भारत विश्व में सबसे आगे है, और उत्तर प्रदेश इसका एक बड़ा हिस्सा है।दवा-प्रतिरोधी टीबी (डीआर-टीबी) की बढ़ती समस्या को एक चुनौती है, जिसका प्रभावी प्रबंधन करने के लिए प्रशिक्षित डॉक्टरों की अहम भूमिका है।

Lucknow News : टीबी की जल्द पहचान, उचित प्रबंधन और समुदाय में व्यापक जागरूकता के प्रसार से ही इस रोग का उन्मूलन संभव है। बच्चों में टीबी के लक्षण अन्य सामान्य बीमारियों से मिलते हैं, जिससे इसकी पहचान करना कठिन होता है। ये बात प्रमुख सचिव (चिकित्सा एवं स्वास्थ्य) पार्थ सारथी सेन शर्मा ने गुरुवार को एक कार्यशाला में कही। बाल क्षय रोग पर 'ट्रेनिंग ऑफ ट्रेनर्स' (टीओटी) पर राज्य स्तरीय इस कार्यशाला का आयोजन आयोजन राष्ट्रीय क्षय रोग उन्मूलन कार्यक्रम (एनटीईपी) के तहत उत्तर प्रदेश के राज्य टीबी प्रकोष्ठ द्वारा वर्ल्ड हेल्थ पार्टनर्स और साथी संस्था के सहयोग से किया गया। 

26 जनपदों के विशेषज्ञों को किया गया प्रशिक्षित
कार्यशाला के पहले चरण में 26 जनपदों के जिला क्षय रोग अधिकारी, जिला चिकित्सालय के बाल रोग विशेषज्ञ और मेडिकल कॉलेजों के बाल रोग विशेषज्ञों को प्रशिक्षित किया गया। इस कार्यशाला का उद्देश्य बाल क्षय रोग की शीघ्र पहचान और प्रभावी उपचार के लिए विशेषज्ञ चिकित्सकों को प्रशिक्षित करना है, ताकि प्रदेश में टीबी के मामलों में कमी लाई जा सके।



राज्य भर में प्रशिक्षित डॉक्टर करेंगे टीबी का प्रबंधन
राज्य कार्यक्रम निदेशक डॉ. आर. पी. सुमन ने बताया कि प्रशिक्षण के बाद ये प्रशिक्षक अपने-अपने जिलों में चिकित्सकों को प्रशिक्षित करेंगे। यह प्रयास टीबी प्रबंधन को जमीनी स्तर पर कुशल बनाने के साथ-साथ बाल टीबी की पहचान और रोकथाम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा। इस कार्यशाला में टीबी उन्मूलन के प्रति सामूहिक प्रयासों और बाल क्षय रोग पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता को भी रेखांकित किया गया।

चुनौतियां और टीबी के प्रकार: दवा-प्रतिरोधी टीबी पर चर्चा
राज्य क्षय रोग अधिकारी डॉ. शैलेन्द्र भटनागर ने बताया कि टीबी रोगियों की संख्या में भारत विश्व में सबसे आगे है, और उत्तर प्रदेश इसका एक बड़ा हिस्सा है। डॉ. भटनागर ने दवा-प्रतिरोधी टीबी (डीआर-टीबी) की बढ़ती समस्या को एक चुनौती बताते हुए कहा कि इसका प्रभावी प्रबंधन करने के लिए प्रशिक्षित डॉक्टरों की अहम भूमिका है। बच्चों में सीएनएस, लिंफ नोड्स और एब्डॉमिनल टीबी जैसे जटिल मामलों की जांच और उपचार को विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है।

बाल क्षय रोग की जांच के आधुनिक प्रोटोकॉल
इस कार्यशाला में विशेषज्ञों द्वारा टीबी की जटिलताओं जैसे दवा-प्रतिरोधी टीबी और एचआईवी-टीबी के प्रबंधन पर भी चर्चा की गई। गैस्ट्रिक एस्पिरेट और इनड्यूस्ड स्प्यूटम जैसे आधुनिक जांच के तरीकों की उपलब्धता और सही प्रयोग पर विस्तार से जानकारी दी गई। साथ ही, बच्चों में टीबी के प्रभाव को कम करने के लिए समुदाय और महिला एवं बाल स्वास्थ्य की भूमिका पर जोर दिया गया।

विशेषज्ञों ने किया मार्गदर्शन
इस कार्यशाला में विभिन्न मेडिकल कॉलेजों और संस्थानों के प्रमुख विशेषज्ञों ने भाग लिया, जिनमें ग्रांट मेडिकल कॉलेज, मुंबई से डॉ. सुशांत माने, एसएन मेडिकल कॉलेज, आगरा से डॉ. राजेश्वर दयाल, एम्स गोरखपुर से डॉ. महिमा मित्तल, केजीएमयू लखनऊ से डॉ. सारिका गुप्ता और अन्य प्रमुख विशेषज्ञ शामिल थे। इन विशेषज्ञों ने टीबी उन्मूलन के लिए चल रहे प्रयासों पर मार्गदर्शन किया और बाल क्षय रोग के मामलों में सुधार लाने पर अपने विचार साझा किए।
 

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