केले के रेशे ने जिंदगी में भरे खुशियों के रंग : कई परिवारों ने सीखा आत्मनिर्भरता का पाठ

UPT | कई परिवारों ने सीखा आत्मनिर्भरता का पाठ

Oct 23, 2024 15:17

ओडीओपी योजना के तहत केले को कुशीनगर का ओडीओपी घोषित किया। इस योजना से कुशीनगर के किसानों को काफी फायदा हुआ। हरिहरपुर के रहने वाले रवि प्रसाद ने इस योजना का लाभ उठा कर अपने साथ-साथ करीब पांच दर्जन से अधिक महिलाओं को भी आत्मनिर्भर बना रहे हैं।

Lucknow News : प्रदेश सरकार ने एक जिला, एक उत्पाद (ओडीओपी) योजना के तहत केले को कुशीनगर का ओडीओपी घोषित किया। इस योजना से कुशीनगर के किसानों को काफी फायदा हुआ। हरिहरपुर के रहने वाले रवि प्रसाद ने इस योजना का लाभ उठा कर अपने साथ-साथ करीब पांच दर्जन से अधिक महिलाओं को भी आत्मनिर्भर बना रहे हैं। उनका कहना हैं की केले को कुशीनगर का (ओडीओपी) घोषित कर सरकार ने इसकी खेती और इससे जुड़े बाकी कामों को नवजीवन दे दिया।         

पीएमईजीपी योजना का मिला लाभ 
रवि साल 2015 में इकोनॉमिक्स से एमए कर रहे थे तभी हादसे में उनके पिता को एक पैर गंवाना पड़ा। घर का इकलौता होने के कारण इस हादसे के बाद उनकी पढ़ाई छूट गई। ऐसे में रवि रोजी-रोटी के लिए दिल्ली गए। इसी दौरान प्रगति मैदान की प्रदर्शनी में दक्षिण भारत के एक स्टॉल पर केले के रेशे से बने तमाम उत्पाद देखकर मन में आया कि यह काम तो कुशीनगर में भी संभव है। कुछ बेसिक जानकारी लेकर 2017 के अंत में काम शुरू किया। इस बीच सरकार ने ओडीओपी के नाम से योजना की घोषणा की। योजना के तहत केले को कुशीनगर का ओडीओपी घोषित होने से उनका हौसला बढ़ा। उन्होंने पीएमईजीपी योजना से पांच लाख को लोन लिया और उनकी मेहनत से काम चल निकला।



पांच दर्जन महिलाएं करती हैं काम 
आज केले के रेशे से उनकी ही नहीं, उनसे जुड़ी करीब पांच दर्जन से अधिक महिलाओं की जिंदगी भी रोशन हो रही है। हाल ही वह अपने उत्पादों के साथ ग्रेट नोएडा में सरकार द्वारा आयोजित इंटरनेशनल ट्रेड शो में भी गए थे। उनका सारा सामान बिक गया। आज न केवल वह आत्मनिर्भर हैं, बल्कि उनकी एक सामाजिक पहचान भी है। अभी अगस्त में जिले के डीएम और सीडीओ ने उनकी इकाई का दौरा किया था। उनके मुताबिक केले को कुशीनगर का (ओडीओपी) घोषित सरकार ने इसकी खेती और इससे जुड़े बाकी कामों को नवजीवन दे दिया।

रेशे से बनाते हैं रोजमर्रा की जरूरत की चीजें
फिलहाल वह केले के रेशे से महिलाओं और पुरुषों के लिए बैग, टोपी, गुलदस्ता, पेन स्टैंड, पूजा की आसनी, योगा मैट, दरी, कैरी बैग, मोबाइल पर्स, लैपटॉप बैग, चप्पल आदि बनाते हैं। केले का कुछ रेशा वह गुजरात की कुछ फर्मों को भी निर्यात करते हैं। रवि केले के रेशे से सामान और अन्य उत्पाद बनाने के लिए करीब 600 लोगों को ट्रेनिंग दे चुके है। इसके अलावा अलग-अलग स्वयं सहायता समूह से जुड़ी करीब 60 से 65 महिलाएं भी उनके साथ जुड़ी हैं। 

बिक जाता है केले के तने से निकला जूस
रवि ने बताया की केले से रेशे को अलग करने के दौरान जो पानी निकलता है वह भी 15 से 20 रुपये लीटर की दर से बिक जाता है। इसके ग्राहक मछली उत्पादन करने वाले लोग हैं। इस पानी में कैल्शियम, पोटैशियम, आयरन, मैग्नेशियम और बिटामिन बी-6 मिलता है। इसे जिस तालाब में मछली पाली गई है, उसमें डाल देते हैं। इससे मछलियों की बढ़वार अच्छी होती है। यही नहीं बाकी अपशिष्ट की भी कम्पोस्टिंग करके बेहतरीन जैविक खाद बनाई जा सकती है। रवि पहले बनाते भी थे। एक बार फिरइसकी तैयारी कर रहे है।

ऐसे निकाले जाते है केले के तने से रेशे 
रवि के मुताबिक सबसे पहले तने को बनाना ट्री कटर में डालते हैं। वह तने को कई फाड़ में कर देती है। फिर तने के अलग फाड़ को रेशा बनाने वाली मशीन में डालते हैं। इससे रेशा निकल आता है। इस दौरान जरूरत भर केले के तने से निकले रस में थोड़ा नामक डालकर गर्म कर लेते हैं। इसके बाद इस रेशे को मनचाहे रंग में रंग कर उत्पाद बनाने में प्रयोग करते हैं। रंग बिल्कुल पक्का होता है और रेशे से तैयार उत्पाद जूट के उत्पादों से करीब 30 फीसद मजबूत होते हैं।

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