Lok Sabha Election 2024 : पहले चरण में पश्चिम उत्तरप्रदेश की इन आठ सीटों पर सपा, बसपा के सामने प्रदर्शन दोहराने की चुनौती

UPT | लोकसभा चुनाव के पहले चरण के लिए आज से नामांकन प्रक्रिया शुरू।

Mar 20, 2024 18:58

जिन आठ सीटों पर पहले चरण में चुनाव होना है उनमें से भाजपा ने सहारनपुर, मुरादाबाद और पीलीभीत में प्रत्याशी की घोषणा नहीं की है। पश्चिमी यूपी की राजनीतिक कसौटी पर पहले चरण का चुनाव होना है। पिछले दो लोकसभा चुनाव के नतीजे ...

Short Highlights
  • 2019 में पहले चरण में भाजपा आठ में से तीन सीटें जीती थी
  • 2019 में सपा बसपा गठबंधन ने पहुंचाया था भाजपा को नुकसान
  • इस बार भाजपा को रालोद का साथ तो सपा को कांग्रेस का हाथ
Lok Sabha Election : लोकसभा चुनाव 2024 के पहले चरण में पश्चिम उत्तर प्रदेश की आठ सीटों पर आज बुधवार से नामांकन शुरू हो गया। नामांकन 27 मार्च तक चलेगा। हालांकि पश्चिम यूपी के जिन आठ सीटों पर पहले चरण में चुनाव होना है उनमें से भाजपा ने सहारनपुर, मुरादाबाद और पीलीभीत में प्रत्याशी की घोषणा नहीं की है। पश्चिमी यूपी की राजनीतिक कसौटी पर पहले चरण का चुनाव होना है। पिछले दो लोकसभा चुनाव के नतीजे बताते हैं कि पश्चिम यूपी से उठा चुनावी माहौल पूर्वांचल तक असर करता है। ये लहर ही राजनीतिक दलों के लिए मतदाताओं के बीच माहौल बनाने का काम करती है। इसी कारण से भाजपा से लेकर कांग्रेस, बसपा और सपा की कोशिश पहले चरण की चुनावी लड़ाई हर हालत में जीतना ही होगी। इस जीत के लिए सभी दलों ने मजबूती से शतरंज की बिसात बिछाई है। जिसमें विपक्षी दल को उलझाने के लिए माहौल बनाने का काम किया जा रहा है। 

पहले चरण में इन आठ सीटों पर होना है लोकसभा चुनाव 
पहले चरण में पश्चिम उत्तर प्रदेश की आठ लोकसभा सीटों पर चुनाव होना है। इनमें सहारनपुर, कैराना, मुजफ्फरनगर, बिजनौर, नगीना, मुरादाबाद, रामपुर और पीलीभीत सीट शामिल हैं। इसके अलावा रुहेलखंड की तीन लोकसभा सीटें हैं। इनमें से पांच सीट तो ठेठ पश्चिमी यूपी इलाके में हैं। लोकसभा चुनाव 2019 में भाजपा को इस इलाके में कड़ी चुनौती का सामना करना पड़ा था। भाजपा को इन आठ सीटों में से मात्र तीन सीटें मिली थी। जबकि सपा-बसपा गठबंधन पांच सीटों पर जीत हासिल की थी। गठबंधन में सपा ने दो और बसपा ने तीन सीटें जीती थी। हालांकि, इसके बाद रामपुर सीट उपचुनाव में भाजपा जीतने में सफल हो गई थी। 

लोकसभा 2019 चुनाव के सियासी नुकसान की भरपाई को 
लोकसभा चुनाव 2019 में सियासी नुकसान की भरपाई के लिए भाजपा ने इस बार राष्ट्रीय लोकदल को साथ मिलाया है। अब भाजपा के साथ ही पहले चरण के चुनाव में रालोद प्रमुख जयंत चौधरी की राजनीतिक अग्निपरीक्षा होनी है। क्योंकि सीट बंटवारे में मिली दो सीटों में से एक पर पहले चरण में चुनाव है। भाजपा की कोशिश 2014 की तरह क्लीन स्वीप करने की है। जबकि सपा और बसपा इस बार अकेले ही चुनावी मैदान में हैं। हालांकि इस बार सपा का गठबंधन कांग्रेस के साथ है। वहीं बसपा अकेले मैदान में है। ऐसे में सपा और बसपा दोनों के सामने 2019 में जीती सीटों को बचाए रखना भी चुनौती होगी। 

पहले चरण की आठ सीट पर उम्मीदवार
भाजपा गठबंधन ने पहले चरण की आठ में से चार सीट पर उम्मीदवारों के नाम घोषित किए हैं। इनमें भाजपा ने कैराना से प्रदीप चौधरी, मुजफ्फरनगर से संजीव बालियान, रामपुर से घनश्याम लोधी और नगीना सीट से ओम कुमार को चुनावी मैदान में उतार दिया है। भाजपा की सहयोगी रालोद ने बिजनौर सीट पर चंदन चौहान को उम्मीदवार बनाया है। भाजपा ने हालांकि अभी सहारनपुर, मुरादाबाद और पीलीभीत सीट पर प्रत्याशी नहीं उतारे हैं।

वहीं समाजवादी पार्टी भी पहले चरण के चुनाव के लिए 8 में सात सीट पर प्रत्याशी घोषित कर चुकी है। जबकि एक सीट पर कांग्रेस उम्मीदवार को समर्थन दे रही है। सपा ने मुजफ्फरनगर से हरेंद्र मलिक, नगीना से मनोज कुमार, कैराना से इकरा हसन और बिजनौर से यशवीर सिंह को प्रत्याशी बनाया है। सपा ने पीलीभीत, रामपुर और मुरादाबाद सीट पर सपा ने कैंडिडेट नहीं उतारे हैं। कांग्रेस पहले चरण में सिर्फ सहारनपुर सीट पर चुनाव लड़ रही है। जहां से इमरान मसूद के चुनाव लड़ने की संभावना है।

बसपा ने भी पहले चरण के लिए खोल दिए पत्ते
बसपा ने पहले चरण के चुनाव के लिए मुरादाबाद से इरफान सैफी, पीलीभीत से अनीस अहमद खान उर्फ फूल बाबू, सहारनपुर से माजिद अली, मुजफ्फरनगर से दयाराम प्रजापति और बिजनौर से विजेंद्र चौधरी को टिकट दिया है। जबकि कैराना, नगीना और रामपुर लोकसभा सीट पर बसपा ने प्रत्याशी नहीं उतारा है। बसपा ने पिछले चुनाव में बिजनौर, नगीना और सहारनपुर सीट पर जीत हासिल की थी। लेकिन इस बार उसने अपने तीनों मौजूदा सांसदों के स्थान पर नए चेहरे उतारे हैं।

भाजपा के लिए चुनौती
पश्चिम यूपी के पहले चरण में जिन आठ सीटों पर चुनाव हैं इनमें 2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने सभी सीट पर जीत हासिल की थी। जबकि 2019 लोकसभा चुनाव में भाजपा को पांच सीटों का नुकसान उठाना पड़ा था। इसकी मुख्य वजह बसपा, सपा और रालोद का एक साथ होना था। इस बार भी लोकसभा चुनाव पश्चिमी यूपी के इसी इलाके से शुरू हो रहे हैं। 2014 लोकसभा चुनाव की तरह इस बार भी विपक्ष बिखरा है। भाजपा ने रालोद के साथ गठबंधन कर जाट मतदाताओं को अपने पक्ष में करने की कोशिश की है। लेकिन जिस तरह से मुस्लिम बहुल सीटों पर बसपा और सपा ने हिंदू उम्मीदवार उतारे हैं। उसके चलते भाजपा के लिए सभी आठों सीट पर जीत दर्ज करना बड़ा मुश्किल लग रहा है। 

जयंत चौधरी का राजनैतिक टेस्ट 2024 लोकसभा चुनाव
पश्चिमी उत्तर प्रदेश का अधिकांश इलाका किसान और जाट प्रभाव वाला है। रालोद का सियासी आधार जाट और किसानों ही हैं। जाट और किसानों के वोटों की बदौलत चौधरी अजित सिंह कई बार किंगमेकर की भूमिका में रहे। इस बार चौधरी अजित सिंह की राजनैतिक विरासत उनके पुत्र चौधरी जयंत संभाल रहे हैं। जयंत ने सपा का साथ छोड़कर भाजपा से हाथ मिलाया है। भाजपा ने ने रालोद को दो लोकसभा सीटें दी हैं। इनमें एक बागपत और दूसरी बिजनौर है। बिजनौर लोकसभा सीट पर पहले चरण में और बागपत लोकसभा पर दूसरे चरण में मतदान होना है।

मुजफ्फरनगर, कैराना, बिजनौर, नगीना में जाट मतदाता अधिक
जयंत चौधरी का एक तरह से पहले चरण में राजनैतिक टेस्ट हो जाएगा। पहले चरण की अधिकांश सीटों पर किसान और जाट मतदाता अहम हैं। खासकर मुजफ्फरनगर, कैराना, बिजनौर, नगीना में जाट मतदाता अधिक हैं। जबकि मुरादाबाद, रामपुर और पीलीभीत में किसान और जाट मतदाता हैं। भाजपा ने इसीलिए रालोद को अपने गठबंधन में रखा है जिससे जाट वोटों में बिखराव न हो सके। जयंत को बिजनौर में बसपा के जाट कैंडिडेट से सेंधमारी रोकनी होगी तो मुजफ्फनगर में सपा के हरेंद्र मलिक उनके लिए चुनौती बन सकते हैं। अगर दोनों जगहा जयंत चौधरी भाजपा की उम्मीदों पर खरे उतरते हैं तो उनका कद एनडीए में बढ़ जाएगा। 

चुनाव का पहले दरवाजे पर ही सपा की अग्निपरीक्षा
सपा कांग्रेस के साथ मिलकर चुनाव लड़ रही है। जिसमें पहले चरण की आठ में सात सीट पर चुनाव के पहले दरवाजे पर सपा की अग्निपरीक्षा है। जबकि सहारनपुर सीट पर कांग्रेस के लिए खाता खोलने की चुनौती है। सपा ने पहले चरण में शातिर रणनीति के तहत उम्मीदवार उतारे हैं। मुस्लिम बहुल बिजनौर और मुजफ्फरनगर सीट पर हिंदू प्रत्याशी मैदान में  हैं। जिसमें एक जाट और एक दलित समुदाय से है। इसके पीछे वजह है कि सपा का कोर वोट बैंक यादव पश्चिमी यूपी में नहीं है। जिसके कारण सपा की पश्चिम जीत का पूरा दारोमदार मुस्लिम मतदाताओं पर टिका हुआ है।

मुस्लिम वोटों के सहारे चुनाव नहीं जीत सकते
सपा इस बात को अच्छे से समझती जानती है कि मुस्लिम वोटों के सहारे चुनाव नहीं जीत सकते हैं। इसके चलते गैर-मुस्लिम पर दांव खेलना जरूरी है। सपा के लिए पश्चिमी यूपी हर चुनाव में चुनौती पूर्ण रहा है। 2019 में बसपा के सहारे सपा जीतने में सफल रही तो इस बार उसको कांग्रेस के हाथ का सहारा है। सपा के लिए अपनी सीटें बचाए रखना कम आसान नहीं है। सपा के कद्दावर मुस्लिम नेता आजम खान इस समय जेल में हैं। ऐसे में सपा के लिए मुस्लिम बहुल सीओं को साधने के लिए कोई मुस्लिम नेता नहीं है। ऐसे में सपा के लिए पहले चरण का चुनाव आसान नहीं दिख रहा है?

बसपा के लिए 2019 के नतीजे दोहराना आसान नहीं 
पश्चिमी यूपी बसपा का मजबूत रहा है। लोकसभा चुनाव के पहले चरण के चुनाव में पश्चिमी यूपी के राजनीतिक समीकरण बदले हुए हैं। इस बार बदले हुए सियासी हालात में बसपा के लिए 2019 का प्रदर्शन दोहराना आसान नहीं होगा। बसपा ने 2019 में सपा के साथ मिलकर चुनाव लड़ा और दलित-मुस्लिम समीकरण के सहारे तीन सीट नगीना, सहारनपुर और बिजनौर जीतने में सफल रही। मायावती इस बार अकेले चुनाव मैदान में है। जिसके चलते चुनौती अधिक है। सपा लगातार बसपा को भाजपा की बी-टीम बताने में जुटी है। जिससे कि मुस्लिम मतदाता बसपा से न जुड़ सके। ऐसे में मायावती अपने पुराने फॉर्मूले सोशल इंजीनियरिंग से भाजपा गठबंधन और सपा-कांग्रेस के गठबंधन से मुकाबला करने की तैयारी में हैं। 

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