Varanasi News : बीएचयू के डॉक्टरों का शोध, खेसारी दाल से सीधा न्यूरोलॉजिकल बीमारी का कोई संबंध नहीं

UPT | प्रोग्राम में अपना वक्तव्य रखते विद्वान

Sep 26, 2024 20:51

पूर्वांचल सहित बिहार और अन्य कई राज्यों में होने वाले ' खेसारी' दाल पर काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के न्यूरोलॉजी विभाग ने अपने शोध पर आधारित लघु फिल्म खेसारी 'कल आज और कल' का बुधवार को दिल्ली के इंडिया इंटरनेशनल सेंटर में लोकार्पण ...

Varanasi News : पूर्वांचल सहित बिहार और अन्य कई राज्यों में होने वाले खेसारी दाल पर काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के न्यूरोलॉजी विभाग ने अपने शोध पर आधारित लघु फिल्म खेसारी 'कल आज और कल' का बुधवार को दिल्ली के इंडिया इंटरनेशनल सेंटर में लोकार्पण किया। इस दौरान देश के कई जाने-माने न्यूरोलॉजिस्ट मौजूद रहे। इस दौरान सभी न्यूरोलॉजिस्टों ने कहा कि खेसारी से लकवा के होने का कोई सीधा प्रमाण नहीं मिला है। खेसारी दाल को चिकित्सकों ने स्वास्थ्य के लिए लाभप्रद बताया।

खेसारी दाल की खेती करने वाले बलिया और गाजीपुर के किसान भी रहे मौजूद
प्रोग्राम में इस दौरान खेसारी दाल की खेती करने वाले बलिया और गाजीपुर के किसान भी मौजूद रहे। उन्होंने बताया कि खेसारी को गरीबों के थाली का दाल कहा जाता है। किसानों ने बताया कि वैज्ञानिकों ने खेसारी दाल खाने से लकवा की बीमारी होने का दावा किया तो सरकार ने इस दाल के वितरण, भंडारण और इस्तेमाल पर 60 के दशक में रोक लगा दी। लेकिन आज भी खेसारी खाद्य पदार्थों अरहर और चना की तुलना में बहुत सस्ता है। इसलिए खेसारी दाल का उपयोग नियमित रूप से बेसन और अन्य दाल उत्पादों में मिलावट करने के लिए किया जाता है। इसके अतिरिक्त खेसारी दाल अरहर दाल के समान है, इसलिए इसका उपयोग भोजनालयों द्वारा अपने लाभ मार्जिन को बढ़ाने के लिए अधिक महंगी दाल-आधारित खाद्य वस्तुओं में मिलावट करने के लिए किया जाता है।

यूपी में होने वाले लंगड़ेपन पर किये गये शोध का इतिहास बताया
इस दौरान ख्यात न्यूरोलॉजिस्ट प्रो. यू. के. मिश्र ने अपने द्वारा यूपी में होने वाले लंगड़ेपन पर किये गये शोध का इतिहास बताया। उन्होंने भी इस बात पर जोर दिया कि खेसारी खाने से पक्षाघात या यूं कहे कि न्यूरोलॉजिकल बीमारी का कोई सीधा संबंध नहीं पाया गया है। उन्होंने कहा कि इस विषय पर डाक्टर शांतिलाल कोठारी, प्रोफेसर एस एन रॉव जैसे महान चिकित्सा वैज्ञानिकों के शोध निरंतर याद रखे जायेंगे।
लोकार्पित हुई फिल्म वाराणसी के महामना की बगिया काशी हिंदू विश्वविद्यालय के चिकित्सा विज्ञान संस्थान के न्यूरोलॉजी विभाग के प्रोफेसर विजयनाथ मिश्र, प्रोफेसर आरएन चौरसिया, प्रोफेसर अभिषेक पाठक एवं इहबास नई दिल्ली के प्रोफेसर सीबी त्रिपाठी की संयुक्त टीम ने यूपी के गाजीपुर जिले के मोहमदाबाद सहित बिहार और एमपी के उन क्षेत्रों के 9 हजार लोगों पर शोध किया जहां खेसारी के दाल का उत्पादन और इस्तेमाल हो रहा है। 

अकेले फलियों के सेवन से लेथिरिज्म नहीं होता
प्रो. मिश्रा के नेतृत्व में बीएचयू की टीम ने निष्कर्ष निकाला कि अकेले फलियों के सेवन से लेथिरिज्म नहीं होता। खेसारी दाल में 31% प्रोटीन, 41% कार्बोहाइड्रेट, 17% कुल आहार फाइबर, दो प्रतिशत वसा और दो प्रतिशत राख होती है, जो सूखे पदार्थ के आधार पर होती है. "लागत-प्रभावी होने के अलावा, इस दाल को पकाने के लिए कम ईंधन की आवश्यकता होती है। लेकिन सबसे महत्वपूर्ण पहलू यह है कि गैर-न्यूरोटॉक्सिक होने के अलावा, लेथिरस दाल में वास्तव में कुछ कार्डियोप्रोटेक्टिव पोषक तत्व होते हैं, जैसा कि नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ न्यूट्रिशन हैदराबाद के वैज्ञानिकों द्वारा प्रकाशित अध्ययनों के अनुसार है। हमारा अध्ययन यूपी और बिहार के 20 जिलों में किया गया था। 
प्रोफेसर मिश्रा के अनुसार, प्रतिबंध के बावजूद राजस्थान, गुजरात, कर्नाटक और आंध्र प्रदेश के अलावा उत्तर प्रदेश और बिहार में कम मात्रा में इस दाल की खेती की जा रही है, क्योंकि यह उच्च उपज देने वाली और सूखा प्रतिरोधी दाल है. इसके अलावा, यह फसल बाजार में काफी आसानी से पहुंच जाती है।

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