आज से शुरू हुए पितृ पक्ष : सोरोंजी शूकर क्षेत्र में तर्पण करने से पितरों को मिलेगी मुक्ति, जानें श्राद्ध कर्म करने की विधि

UPT | सोरों जी में तर्पण करने से पितृों को मिलती है मुक्ति

Sep 18, 2024 13:54

पितृ पक्ष शुरू हो गए हैं। सोरोंस जी में तर्पण करने से पितृों (पूर्वजों) को मुक्ति मिलती है। यह हिंदू धर्म में एक महत्वपूर्ण अनुष्ठान है, जिसमें लोग अपने पूर्वजों को तर्पण करते हैं और उन्हें श्रद्धांजलि देते हैं।

Kasganj News : पितृ पक्ष बुधवार को पूर्णिमा के साथ शुरू हो गया। भाद्रपद मास की पूर्णिमा से लेकर आश्वनी मास की अमावस्या तक 16 दिवसीय पितृ पक्ष मनाया जाता है। इन दिनों में हिंदू अनुयायी अपने पूर्वजों को श्रद्धापूर्वक याद करते हैं और उनकी आत्मा की शांति व मोक्ष के लिए तीर्थ स्थानों पर पितृ तर्पण, श्राद्ध कर्म व पिंडदान करने जाते हैं। पितृ पक्ष के दौरान भारत के 10 राज्यों से लाखों श्रद्धालु अपने पूर्वजों की आत्मा की शांति व मोक्ष के लिए कर्मकांड कराने सोरोंजी आते हैं। आदितीर्थ सोरोंजी शूकर क्षेत्र में हरिपदी आदिगंगा साक्षात रूप में विद्यमान हैं, जिसका सीधा संबंध वैकुंठ लोक से है। यह वही स्थान है जहां भगवान विष्णु के तीसरे अवतार भगवान वराह का प्राकट्य हुआ था। कालांतर में यह तीर्थ शूकर क्षेत्र के नाम से प्रसिद्ध हुआ।

सोरों जी शूकर क्षेत्र में पितृ तर्पण श्राद्ध कर्म करने का महत्व
वराह पुराण के अनुसार जो मानव कल्पपर्यन्त से नरक में पड़े हैं, उनके पुत्र, पौत्र और वंशज यदि तर्पण श्राद्ध कर्म करते हैं, तो इसके प्रभाव से उन आत्माओं को मोक्ष और मुक्ति मिलती है। भगवान विष्णु के तीसरे अवतार भगवान वराह ने धरती माता से किए संवाद में सोरों जी शूकर क्षेत्र में किए जाने वाले पितृ तर्पण श्राद्ध कर्म के महत्व का वर्णन किया है।

पुराणों में यह संदर्भित है कि- 
गयायां च जले मुक्तिर्वाराणस्यां जले स्थले। 
जले स्थले चान्तरिक्षे त्रिधा मुक्तिस्तु सूकरे।। 


जिसका अर्थ है- गया में जल में मरने से मुक्ति मिल जाती है, वाराणसी में जल या थल में मरने से मुक्ति मिल जाती है और सूकरक्षेत्र (सोरों जी) में तर्पण करने से जल, स्थल और अंतरिक्ष इन तीनों में कहीं भी मरने वाले को मुक्ति मिल जाती है।  


सोरोंस जी में तर्पण करने से विशेष रूप से उन पितृों को मुक्ति मिलती है जो:
1. अपने जीवन में किसी भी प्रकार के ऋण या कर्ज में थे।
2. अकाल मृत्यु का शिकार हुए थे।
3. अपने जीवन में किसी भी प्रकार के पाप या अपराध में लिप्त थे।
 
वराह पुराण के अनुसार पितृ तर्पण श्राद्ध कर्म करने की विधि 
प्रातःकाल सूर्योदय के पश्चात श्राद्धकर्ता को विधिपूर्वक बाल कटवाने चाहिए, तेल आदि लगाना चाहिए तथा स्नान करना चाहिए। तत्पश्चात भूमि को स्वच्छ करके वहां वेदी बनानी चाहिए। इसके लिए उपयुक्त स्थान किसी तीर्थ स्थान का नदी तट अथवा निश्चित भूमि है। सभी पितृ भाग दक्षिण तथा पूर्व की ओर मुख करके सम्पन्न किए जाते हैं। यह कार्य किसी नदी अथवा पवित्र जलाशय के तट पर पीपल, गूलर आदि वृक्षों की छाया में करने का विधान है। स्थान को शुद्ध करने के पश्चात पितरों का नाम तथा गोत्र, संकल्प तथा मंत्रोच्चार के साथ आह्वान करना चाहिए तथा उन्हें पिण्ड देना चाहिए। तत्पश्चात ऐसा ब्राह्मण श्राद्ध के लिए उचित माना जाता है जो वेद-पुराणों का ज्ञाता हो, तथा स्वच्छ तथा मीठा भोजन करने का स्वभाव रखता हो, पितृ यज्ञ से संबंधित श्राद्ध में ऐसे ब्राह्मण को भोजन कराना उत्तम माना जाता है।

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