हर चुनाव में सांसद बदलने की बांदा में परंपरा : हैट्रिक लगाने से चूके कांग्रेस और सपा, भाजपा को मिलेगा मौका?

UPT | हर चुनाव में सांसद बदलने की बांदा में परंपरा

May 18, 2024 16:24

बांदा जिले का नाम बामदेव नामक ऋषि के नाम पर पड़ा। इसे पहले बाम्दा कहा जाता था। लेकिन समय के साथ नाम का अपभ्रंश हुआ और यह शहर बांदा कहलाने लगा। इस लोकसभा सीट के अंतर्गत 5 विधानसभा क्षेत्र आते हैं, जिसमें बाबेरू, नारैनी, बांदा, चित्रकूट और माणिकपुर शामिल हैं।

Short Highlights
  • दो जिले की सीटों से बनी लोकसभा
  • दो बार हैट्रिक से चूकी कांग्रेस
  • भाजपा के पास रिकॉर्ड तोड़ने का मौका
Banda News : लोकसभा चुनाव 2024 के लिए 4 चरणों का मतदान पूरा हो चुका है। अब तीन चरणों का मतदान शेष है। देश भर की 49 सीटों पर पांचवें फेज के लिए 20 मई को वोटिंग होनी है। इसमें उत्तर प्रदेश की 14 सीटें मोहनलालगंज, लखनऊ, राय बरेली, अमेठी, जालौन, झांसी, हमीरपुर, बांदा, फतेहपुर, कौशांबी, बाराबंकी, फैजाबाद, कैसरगंज और गोंडा शामिल हैं। इसके पहले के एपिसोड में हम मोहनलालगंज, लखनऊ, अमेठी, जालौन, झांसी और हमीरपुर के बारे में बात कर चुके हैं। आज बात बांदा की...

दो जिले की सीटों से बनी लोकसभा
बांदा जिले का नाम बामदेव नामक ऋषि के नाम पर पड़ा। इसे पहले बाम्दा कहा जाता था। लेकिन समय के साथ नाम का अपभ्रंश हुआ और यह शहर बांदा कहलाने लगा। चित्रकूट पहले बांदा जिले का हिस्सा हुआ करता था, लेकिन 1998 में कारवी और मऊ तहसीलों के साथ चित्रकूट जिले का गठन किया गया। बांदा लोकसभा सीट के अंतर्गत 5 विधानसभा क्षेत्र आते हैं, जिसमें बाबेरू, नारैनी, बांदा, चित्रकूट और माणिकपुर शामिल हैं। इसमें बाबेरू, बांदा और नारैनी, बांदा जिले में आते हैं, जबकि चित्रकूट और माणिकपुर चित्रकूट जिले में आते हैं।  बाबेरू पर समाजवादी पार्टी के विशंभर सिंह यादव और चित्रकूट सीट पर सपा के ही अनिल प्रधान पटेल विधायक हैं। नरैली की आरक्षित सीट भाजपा विधायक ओम मणि वर्मा और चित्रकूट की सीट भाजपा विधायक प्रकाश द्विवेदी के खाते में है। जबकि मणिकपुर की सीट पर अनुप्रिया पटेल के नेतृत्व वाले अपना दल का कब्जा है, जहां अविनाश चंद्र द्विवेदी विधायक हैं।

पहली बार हैट्रिक से चूकी कांग्रेस
बांदा की लोकसभा सीट 1957 में अस्तित्व में आई। अगर आप आकड़ों पर गौर करें, तो बांदा की सीट पर कभी भी कोई प्रत्याशी लगातार दो बार नहीं जीता है। पहले चुनाव में यहां से कांग्रेस के दिनेश सिंह जीतकर संसद पहुंचे। लेकिन अगले चुनाव में कांग्रेस ने उनकी जगह सावित्रि निगम को प्रत्याशी बनाकर उतारा और वह चुनाव जीत गईं। कांग्रेस लगातार दो चुनाव जीत चुकी है। 1967 के चुनाव में उसे हैट्रिक की उम्मीद थी। लेकिन हुआ इसका उल्टा। 1967 में कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया यानी सीपीआई ने उत्तर प्रदेश में कुल 5 सीटें जीती थी, जिसमें से एक बांदा की भी थी। सीपीआई के जगेश्वर यादव सांसद चुने गए। अगला चुनाव आया, तो बांदा की जनता ने फिर से सांसद बदल दिया और भारतीय जनसंघ के राम रतन शर्मा 1971 में चुनाव जीत गए।

हैट्रिक लगाने का दूसरा मौका गंवाया
1977 में इमरजेंसी के बाद चुनाव हुए, तो लोगों ने जनता पार्टी को एकतरफा समर्थन दे दिया। जनता पार्टी के अंबिका प्रसाद पांडेय चुनाव जीतकर सांसद बन गए। लेकिन 1980 में कांग्रेस की फिर से वापसी हुई और रामनाथ दुबे ने चुनाव अपने नाम कर लिया। बांदा के सांसद बदलने की प्रथा का शायद कांग्रेस को पता था, इसलिए अगले चुनाव यानी 1984 में भीष्म देव दुबे को प्रत्याशी बनाया गया और वह चुनाव जीत गए। अब कांग्रेस के पास हैट्रिक लगाने का दूसरा मौका था। लेकिन 1989 में जब चुनाव हुए तो बांदा ने अपना इतिहास दोहरा दिया। कम्युनिस्ट पार्टी की बांदा में वापसी हुई और राम सजीवन चुनाव जीत गए। इसके साथ ही कांग्रेस ने दूसरी बार हैट्रिक लगाने का मौका गंवा दिया था। जब 1991 में चुनाव हुए, तो राम मंदिर आंदोलन के दम पर भारतीय जनता पार्टी ने बांदा की लोकसभा सीट जीत ली और सांसद बने प्रकाश नारायण त्रिपाठी।

बांदा की जनता ने तोड़ दिया पैटर्न
1977 के अपवाद को छोड़कर अब तक के आंकड़े अगर आप देखें, तो बांदा की सीट पर एक पैटर्न नजर आता है। यहां पहले दो बार कांग्रेस चुनाव जीतती है, उसके बाद एक बार कम्युनिस्ट पार्टी। इसके बाद सीट पर भगवा लहरा जाता है। लेकिन 1996 में इस पैटर्न को भी बांदा की जनता ने तोड़ दिया। कभी कम्युनिज्म का झंडा बुंलद कर चलने वाले राम सजीवन बसपा में शामिल हो गए और 1996 में चुनाव भी जीत गए। अगले चुनाव में भाजपा ने फिर वापसी की और 1998 में रमेश चंद्र द्विवेदी चुनाव जीत गए। अगले बरस फिर से लोकसभा के चुनाव हुए। बसपा के टिकट पर राम सजीवन फिर से 1999 में बांदा के सांसद चुने गए। वह बांदा के इतिहास में सबसे ज्यादा बार चुनाव जीतने वाले व्यक्ति बन गए। इसके बाद आया साल 2004 और समाजावादी पार्टी ने पहली बार बांदा की सीट पर खाता खोला। 2004 में सपा के श्याम चरण गु्प्ता और फिर 2009 में समाजवादी पार्टी के ही आरके सिंह पटेल ने चुनाव जीता।

समाजवादी पार्टी का भी सपना टूटा
2004 और 2009 का चुनाव जीतने के बाद 2014 में समाजवादी पार्टी हैट्रिक लगाने के लिए पूरी तरह तैयार थी। आरके सिंह पटेल बसपा में शामिल हो गए थे और उन्हें टिकट भी मिल गया था। समाजवादी पार्टी ने बाल कुमार पटेल को टिकट दिया और भाजपा की तरफ से मैदान में उतरे भैरो प्रसाद मिश्रा। लेकिन बांदा ने अपनी प्रथा जारी रखी और सपा का हैट्रिक लगाने का सपना भी सपना ही रह गया। इस चुनाव में भाजपा प्रत्याशी  ने 1.15 लाख वोटों के अंतर से जीत दर्ज की थी। भाजपा को 3.42 लाख वोट मिले, जबकि बसपा 2.26 लाख वोट के साथ दूसरे और सपा 1.89 लाख वोट के साथ तीसरे स्थान पर रही। जब 2019 का चुनाव हुआ, तो सपा और बसपा के गठबंधन के कारण सीट सपा के खाते में आ गई। तब तक आरके सिंह पटेल भाजपा में आ गए थे। उन्हें पार्टी ने 2019 में टिकट भी दे दिया था। सपा ने अपने पूर्व सांसद श्याम चरण गुप्ता के भरोसे किस्मत आजमाने की सोची और टिकट दे दिया। वहीं कांग्रेस ने पूर्व सपा नेता बाल कुमार पटेल को मैदान में उतारा। मुकाबला काफी टक्कर का रहा। आरके सिंह पटेल मात्र 58 हजार वोटों के अंतर से चुनाव जीत पाए। उन्हें 4.77 लाख वोट मिले, जबकि सपा 4.18 लाख वोट के साथ दूसरे और कांग्रेस 75 हजार वोट के साथ तीसरे नंबर पर रही थी।

2024 के मुकाबले में टूटेंगे रिकॉर्ड?
2024 में भाजपा ने फिर से आरके सिंह पटेल पर भरोसा जताया है। उनके सामने सपा से कृष्णा देवी और बसपा के मयंक द्विवेदी हैं। अगर भाजपा इस बार चुनाव में जीतती है, तो बांदा में एक साथ दो रिकॉर्ड टूटेंगे। पहला रिकॉर्ड हैट्रिक का होगा, जो आज तक कोई नहीं बना पाया है। दूसरा रिकॉर्ड किसी सांसद के लगातार दो बार जीतने का बनेगा। लेकिन बांदा की राजनीति इतनी भी आसान नहीं है। बांदा में सबसे ज्यादा आबादी सवर्ण मतदाताओं की है, जिनकी संख्या करीब 6 लाख है। अनुसूचित जाति-जनजाति के मतदाता करीब 3.5 लाख और मुस्लिम वोटर 1 लाख के करीब हैं। सपा और बसपा इन्हीं समीकरणों की बदौलत दो बार जीत दर्ज की है। इसका तोड़ 2024 में भाजपा ने विपक्ष के दर्जनभर नेताओं को शामिल कर निकालने की कोशिश की है। अगर भाजपा का ये प्रयोग सफल रहता है, तो 2024 का नतीजा चौंकाने वाला हो सकता है। 4 जून को नतीजे घोषित होने के बाद स्थिति वैसे भी स्पष्ट हो जाएगी।

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