सनातनियों की आस्था के ज्योति पुंज हैं ब्रह्मलीन महंत अवैद्यनाथ : पुण्य स्मृति में श्रद्धांजलि सभा कल, सीएम योगी करेंगे अध्यक्षता

फ़ाइल फोटो | ब्रह्मलीन गोरक्षपीठाधीश्वर महंत अवेद्यनाथ

Sep 20, 2024 12:11

सामाजिक समरसता को ही आजीवन ध्येय मानने वाले श्रीराम मंदिर आंदोलन के नायक ब्रह्मलीन गोरक्षपीठाधीश्वर महंत अवैद्यनाथ का अहर्निश स्मरण एक ऐसे संत के रूप में होता है जिनमें समूचे राष्ट्र के सनातनियों की आस्था है।

Gorakhpur News : गोरक्षपीठाधीश्वर महंत अवैद्यनाथ का स्मरण एक ऐसे संत के रूप में किया जाता है, जिन्होंने सामाजिक समरसता को अपने जीवन का ध्येय बनाया। श्रीराम मंदिर आंदोलन के नायक रहे महंत जी ने नाथपंथ की लोक कल्याण परंपरा को धर्म और राजनीति से जोड़ा। उन्होंने पांच बार मानीराम विधानसभा और चार बार गोरखपुर लोकसभा क्षेत्र का प्रतिनिधित्व किया। श्रीराम जन्मभूमि पर मंदिर निर्माण के लिए हुए आंदोलन को निर्णायक मोड़ देने के लिए महंत जी का योगदान हमेशा याद रखा जाएगा।

महंत दिग्विजयनाथ स्मृति सभागार में श्रद्धांजलि सभा
इस पुण्य स्मृति में 21 सितंबर, शनिवार को गोरखनाथ मंदिर के महंत दिग्विजयनाथ स्मृति सभागार में श्रद्धांजलि सभा का आयोजन होगा। इस सभा की अध्यक्षता वर्तमान गोरक्षपीठाधीश्वर और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ करेंगे। इस अवसर पर देशभर के प्रतिष्ठित साधु-संत और धर्माचार्य भी भाग लेंगे।

महंत अवेद्यनाथ का प्रारंभिक जीवन
महंत अवैद्यनाथ का जन्म 18 मई 1919 को उत्तराखंड के ग्राम कांडी में हुआ। उनके जीवन का प्रारंभिक दौर धर्म और अध्यात्म की ओर एक गहरा झुकाव लेकर आया। गोरक्षपीठ में महंत दिग्विजयनाथ के सानिध्य में उनकी दीक्षा 8 फरवरी 1942 को हुई। 1969 में महंत दिग्विजयनाथ के चिर समाधि के बाद, 29 सितंबर को वह गोरखनाथ मंदिर के महंत बने। योग और दर्शन के मर्मज्ञ के रूप में, उन्होंने अपने गुरुदेव के लोक कल्याणकारी आदर्शों का पालन किया। उनका यह प्रयास 2014 तक निरंतर जारी रहा।

श्रीराम मंदिर आंदोलन का नेतृत्व
महंत अवैद्यनाथ ने अयोध्या में प्रभु श्रीराम की जन्मभूमि पर मंदिर निर्माण को अपने जीवन का मिशन बना लिया। महंत दिग्विजयनाथ के नेतृत्व में गोरक्षपीठ की तीन पीढ़ियों का इस आंदोलन में योगदान स्वर्णाक्षरों में अंकित है। 1990 के दशक में महंत अवैद्यनाथ ने इस आंदोलन को व्यापक और निर्णायक मोड़ दिया। उन्होंने धर्माचार्यों के बीच आपसी मतभेदों को समाप्त कर सभी को एक मंच पर लाया। 21 जुलाई 1984 को अयोध्या के वाल्मीकि भवन में श्रीराम जन्मभूमि मुक्ति यज्ञ समिति का गठन हुआ, जिसमें महंत अवैद्यनाथ को सर्वसम्मति से अध्यक्ष चुना गया।

उनके नेतृत्व में भारत में एक जनांदोलन का उदय हुआ, जिसने सामाजिक और राजनीतिक क्रांति का सूत्रपात किया। महंत जी ने आंदोलन के दौरान संतों, राजनीतिज्ञों और आम लोगों को एकत्रित किया, जिससे यह आंदोलन शक्तिशाली बन सका। 

सामाजिक समरसता के प्रति प्रतिबद्धता
महंत अवैद्यनाथ एक वास्तविक धर्माचार्य थे। उन्होंने अपने जीवन का उद्देश्य सामाजिक समरसता को बनाया। उन्होंने हिन्दू समाज में छुआछूत और ऊंच-नीच के भेदभाव को समाप्त करने के लिए एक बड़ा अभियान चलाया। अखिल भारतीय अवधूत भेष बरहपंथ योगी महासभा के अध्यक्ष के रूप में, महंत जी ने देशभर के संतों को इस अभियान में शामिल किया।

महंत जी दक्षिण भारत में दलित समाज के सामूहिक धर्मांतरण की घटना से अत्यंत दुखी हुए। उन्होंने राजनीति की राह चुनी ताकि हिन्दू समाज की कुरीतियों को समाप्त कर समाज को एकजुट किया जा सके। इसके लिए उन्होंने दलित बस्तियों में सहभोज का आयोजन किया, जहां सभी जातियों के लोग एक साथ बैठकर भोजन करते थे।

उद्धरणों के माध्यम से सामाजिक एकता का संदेश
महंत अवैद्यनाथ ने सामाजिक समरसता को मजबूत करने के लिए प्रभु श्रीराम और देवी दुर्गा के उद्धरणों का प्रयोग किया। उन्होंने अपने अनुयायियों को समझाया कि कैसे प्रभु श्रीराम ने शबरी के जूठे बेर खाए और वनवासियों से मित्रता की। उन्होंने कहा कि देवी दुर्गा की आठ भुजाएं चारों वर्णों का प्रतीक हैं, जो जब एकजुट होते हैं, तो अत्यंत शक्तिशाली बन जाते हैं।

शिक्षा के क्षेत्र में योगदान
महंत अवैद्यनाथ ने शिक्षा के क्षेत्र में भी उल्लेखनीय कार्य किए। उन्होंने अपने गुरु महंत दिग्विजयनाथ के सपनों को साकार करते हुए महाराणा प्रताप शिक्षा परिषद की स्थापना की। आज इस परिषद के अंतर्गत कई शिक्षण-प्रशिक्षण संस्थान संचालित हो रहे हैं, जहां हजारों विद्यार्थी भारतीयता और सांस्कृतिक राष्ट्रवाद का पाठ पढ़ते हैं।

राजनीतिक क्षेत्र में अभूतपूर्व योगदान
महंत अवैद्यनाथ ने राजनीति में भी अपनी छाप छोड़ी। उन्होंने पांच बार मानीराम विधानसभा सीट और चार बार गोरखपुर सदर संसदीय सीट का प्रतिनिधित्व किया। इसके अलावा, वह अखिल भारतीय हिन्दू महासभा के उपाध्यक्ष और महासचिव भी रहे। उन्होंने सदैव राष्ट्रीय एकता और अखंडता, सांस्कृतिक राष्ट्रवाद, और भारतीय संस्कृति की पुनर्प्रतिष्ठा के लिए कार्य किया। महंत अवैद्यनाथ का योगदान न केवल धार्मिक बल्कि सामाजिक और राजनीतिक क्षेत्र में भी अमूल्य है। उनकी शिक्षाएं और कार्य हमारे समाज को एकजुट करने का प्रयास करते रहेंगे। 

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