एकेटीयू साइबर क्राइम केस में बड़ा खुलासा : नोएडा विकास प्राधिकरण में 200 करोड़ रुपये की सेंधमारी से जुड़े तार!

UPT | साइबर क्राइम।

Jun 29, 2024 19:19

डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम प्राविधिक विश्वविद्यालय को साइबर क्राइम के जरिए 120 करोड़ रुपये ठगने वालों के तार नोएडा से भी जुड़ रहे हैं। खुलासा हुआ है कि आरोपियों ने नोएडा विकास प्राधिकरण में भी 200 करोड़ रुपये की सेंधमारी की थी। 

Lucknow News : एकेटीयू (डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम प्राविधिक विश्वविद्यालय) को साइबर क्राइम के जरिए 120 करोड़ रुपये ठगने वालों के तार नोएडा से भी जुड़ रहे हैं। लखनऊ में पुलिस रिमांड में पूछताछ के दौरान तीनों आरोपियों राजेश बाबू, शैलेश रघुवंशी और देवेन्द्र जोशी ने चौंकाने वाले खुलासे किए हैं। खुलासा हुआ है कि आरोपियों ने नोएडा विकास प्राधिकरण में भी 200 करोड़ रुपये की सेंधमारी की थी। 

पूछताछ में क्या बोले आरोपी
साइबर क्राइम थाने की पुलिस ने तीनों आरोपियों को लखनऊ जेल से रिमांड पर लिया है। उनसे पूछताछ की जा रही है। इन तीनों से यूनियन बैंक के निलंबित कर्मचारियों और एकेटीयू के अफसर व फाइनेंस कंट्रोलर के बारे में भी जानकारी ली गई। आरोपियों ने भागे हुए आरोपी अनुराग और कपिल के कुछ नए ठिकानों के बारे में जानकारी दी है। पूछताछ में सामने आया कि राजेश बाबू पिछले साल जुलाई में नोएडा विकास प्राधिकरण के खाते से 200 करोड़ रुपये ट्रांसफर करने के मामले में आरोपी बना था। इसमें उसे और अन्य कुछ लोगों को गिरफ्तार किया गया था। वह पिछले साल नोएडा विकास प्राधिकरण में फर्जी बैंक अधिकारी बनकर मिला और 200 करोड़ रुपये दूसरे खाते में ट्रांसफर करा लिए थे। साइबर थाने ने नोएडा पुलिस से भी इस बारे में जानकारी मांगी है। वहीं नोएडा पुलिस ने भी अपने मामले में राजेश बाबू को रिमांड पर लेकर पूछताछ करने की इच्छा जाहिर की है। खास बात यह कि दोनों संस्थानों के पैसे हड़पने को एक मॉडस ऑपरेंडी अपनाई गई।

नोएडा प्राधिकरण को ऐसे ठगा
साल 2023 में नोएडा अथॉरिटी ने बैंक ऑफ इंडिया और एचडीएफसी बैंक में 200-200 करोड़ की एफडी बनवाई थी। इसके बाद, जालसाजों ने एक बैंक से 200 करोड़ रुपये निकालने की कोशिश की, जिसमें से वे चार करोड़ रुपये तक निकाल पाए। निकालने की तैयारी में नौ करोड़ रुपये और थे, लेकिन बैंक ने इस ट्रांजेक्शन को रोक दिया। वास्तव में, बैंक ऑफ इंडिया और एचडीएफसी से बनी हुई एफडी की पेपर्स नोएडा अथॉरिटी के दफ्तर में थीं। अधिकारियों ने बिना जांच पड़ताल के इन एफडी को फाइलों में दर्ज कर दिया और संबंधित लोगों को इसकी जानकारी दी। नियमानुसार, एफडी खोलने वाले बैंक में खाता भी होना चाहिए। इसलिए, नोएडा अथॉरिटी ने दोनों बैंक में खाता खोलने की प्रक्रिया शुरू कर दी। जालसाजों को यह बता था कि खाता खोलने के लिए बैंक में उन्हें आना होगा। इस बारे में जागरूक, उन्होंने दूर से रहने वाले अब्दुल खादर के नाम से फर्जी परिचय पत्र बनवाया, जिसमें उन्हें नोएडा अथॉरिटी का अकाउंटेंट बताया गया। इसके बाद, उनके साथ बैंक जाने की कार्रवाई शुरू हुई। 

बैंक के कर्मचारियों ने अब्दुल के फर्जी परिचय पत्र को देखकर उसे अथॉरिटी का कर्मचारी मान लिया और उसे बैंक खाता खुलवाने में मदद की। इस प्रकार, नोएडा अथॉरिटी के नाम पर बैंक ऑफ इंडिया में एक खाता खुल गया, जिसमें जालसाजों ने अपना मोबाइल नंबर और ईमेल एड्रेस दिया। इस गैंग ने खाता खोलने के लिए फर्जी कागजात दिए, जिनमें वित्त नियंत्रक और मुख्य वित्त अधिकारी के फर्जी साइनेचर थे। अब्दुल ने सबसे पहले बैंक अधिकारियों से कहा कि 200 करोड़ की एफडी में से 3 करोड़ 90 लाख रुपये उनके खाते में ट्रांसफर कर दें। बिना जांच के, बैंक अधिकारियों ने पैसे को ट्रांसफर कर दिया और गैंग के सदस्यों ने उन पैसों को अन्य खातों में तुरंत ही ट्रांसफर कर लिया।

एकेटीयू में ऐसे हुई धोखाधड़ी
एकेटीयू के मामले में हजरतगंज के यूनियन बैंक ऑफ इंडिया के ब्रांच मैनेजर अनुज सक्सेना ने शिकायत दर्ज की है कि तीन जून को डॉक्टर शैलेश कुमार रघुवंशी नामक व्यक्ति ने उनसे संपर्क करके 100 करोड़ रुपये की एफडी खुलवाने का प्रस्ताव रखा था। उसके बाद, जय कुमार यानी एनके सिंह नाम से एक व्यक्ति ने भी उन्हें फोन किया और अपना परिचय एकेटीयू के वित्त अधिकारी के रूप में दिया, दावा किया कि उसके लिए खाता खुलवाने की आवश्यकता है। मैनेजर ने उन्हें बैंक में आने के लिए कहा, लेकिन फिर जून के चौथे दिन जय कुमार नामक व्यक्ति बैंक से आकर एफडी का प्रस्ताव पत्र लेकर चला गया। इसके बाद उसने एक फर्जी मेल आईडी बनाई और इससे एकेटीयू की मेल आईडी पर एफडी का प्रस्ताव भेजा। फिर एक और फर्जी मेल आईडी बनाकर बैंक की आधिकारिक मेल आईडी पर एक और प्रस्ताव लिया गया। उसी दिन, 5 जून को एकेटीयू के बैंक खाते से यूनियन बैंक को 120 करोड़ रुपये का हस्तांतरण किया गया।

इसी दिन, तीसरे व्यक्ति अनुराग श्रीवास्तव नामक व्यक्ति बैंक आया और खुद को मुख्य खाता अधिकारी बताते हुए फर्जी कागजात के आधार पर यूनिवर्सिटी के नाम से एक खाता खोलवाया। इसके बाद, वह चेक बुक भी प्राप्त करके श्री श्रद्धा एजुकेशन एंड चैरिटेबल ट्रस्ट में 120 करोड़ रुपये का भुगतान कर दिया। इसी घटना के बाद, यूबीआई के अधिकारियों ने यूनिवर्सिटी से संपर्क करके जानकारी प्राप्त की और तब पता चला कि यह एक धोखाधड़ी का प्रकरण है। उसके बाद यूनियन बैंक ऑफ इंडिया ने संपूर्ण लेन-देन को रोक लिया। इस मामले में यूबीआई के चीफ मैनेजर अनुज सक्सेना द्वारा एफआईआर दर्ज कराया गया है। जांच के बाद, लखनऊ की साइबर टीम ने गिरीश चंद्रा, शैलेश रघुवंशी, देवेंद्र प्रसाद जोशी, केके त्रिपाठी, दस्तगीर आलम, उदय पटेल और राजेश बाबू को गिरफ्तार किया।

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