यूपी सरकार का बड़ा फैसला : सरकारी कर्मचारियों पर लगाम, बिना अनुमति मीडिया में बयान देना प्रतिबंधित

UPT | सीएम योगी

Jun 21, 2024 07:21

अब सरकारी कर्मचारी बिना पूर्व अनुमति के सोशल मीडिया सहित किसी भी संचार माध्यम पर अपने विचार व्यक्त नहीं कर सकेंगे।

Lucknow News : उत्तर प्रदेश सरकार ने एक महत्वपूर्ण निर्णय लेते हुए राज्य के सरकारी अधिकारियों और कर्मचारियों के लिए मीडिया से संबंधित नए दिशा-निर्देश जारी किए हैं। इन नियमों के अनुसार, अब सरकारी कर्मचारी बिना पूर्व अनुमति के सोशल मीडिया सहित किसी भी संचार माध्यम पर अपने विचार व्यक्त नहीं कर सकेंगे। यह कदम सरकार की छवि और नीतियों को सुरक्षित रखने के उद्देश्य से उठाया गया है।

क्यों लिया गया ये फैसला
गुरुवार को अपर मुख्य सचिव नियुक्ति एवं कार्मिक, देवेश चतुर्वेदी द्वारा जारी किए गए शासनादेश में इन नियमों का विस्तृत विवरण दिया गया है। यह निर्णय इसलिए लिया गया है क्योंकि हाल के दिनों में कुछ सरकारी अधिकारियों और कर्मचारियों द्वारा मीडिया में दिए गए बयानों के कारण सरकार को असहज स्थिति का सामना करना पड़ा था। ये बयान मौजूदा नियमों का उल्लंघन करते हुए दिए गए थे, जिससे सरकार की कार्यप्रणाली और नीतियों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा था।



ये नहीं कर सकते सरकारी कर्मचारी
नए दिशा-निर्देशों के अनुसार, कोई भी सरकारी कर्मचारी अब बिना अनुमति के किसी समाचार पत्र या मीडिया संस्थान का मालिक नहीं बन सकता, न ही उसका संचालन या संपादन कर सकता है। इसके अलावा, वे बिना अनुमति के रेडियो कार्यक्रमों में भाग नहीं ले सकते और न ही समाचार पत्रों या पत्रिकाओं को अपने लेख भेज सकते हैं। यहां तक कि गुमनाम रूप से या किसी अन्य व्यक्ति के नाम से भी वे कोई पत्र या लेख नहीं लिख सकते।

इन लेखों पर लागू नहीं ये नियम
इन प्रतिबंधों का उद्देश्य सरकारी कर्मचारियों द्वारा की जाने वाली आलोचनात्मक टिप्पणियों को रोकना है, जो राज्य सरकार, केंद्र सरकार, स्थानीय प्राधिकरणों या वरिष्ठ अधिकारियों के निर्णयों या नीतियों के विरुद्ध हो सकती हैं। हालांकि, यह ध्यान देने योग्य है कि ये नियम कलात्मक, साहित्यिक और वैज्ञानिक लेखों पर लागू नहीं होंगे। इसका अर्थ है कि सरकारी कर्मचारी अपने व्यक्तिगत रचनात्मक कार्यों को जारी रख सकते हैं, बशर्ते कि वे सरकार की नीतियों या कार्यप्रणाली की आलोचना न करें।

व्यक्तिगत विचारों और सरकारी नीतिया अलग-अलग
इस नियम के पीछे का तर्क यह है कि सरकारी कर्मचारी सरकार का प्रतिनिधित्व करते हैं, और उनके बयान सरकार की आधिकारिक स्थिति के रूप में देखे जा सकते हैं। इसलिए, यह आवश्यक है कि वे अपने व्यक्तिगत विचारों और सरकारी नीतियों के बीच एक स्पष्ट रेखा खींचें। यह नियम सरकारी कर्मचारियों को याद दिलाता है कि उनकी प्राथमिक जिम्मेदारी सरकार की नीतियों को लागू करना और जनता की सेवा करना है, न कि सार्वजनिक रूप से उनकी आलोचना करना।

नियम की हो रही है आलोचना
हालांकि, इस नियम की आलोचना भी हो रही है। कुछ लोगों का मानना है कि यह अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर अंकुश लगाने का प्रयास है। वे तर्क देते हैं कि सरकारी कर्मचारियों को भी अपने विचार व्यक्त करने का अधिकार होना चाहिए, खासकर जब वे सरकारी नीतियों में कमियां देखते हैं। उनका कहना है कि यह नियम भ्रष्टाचार या गलत प्रथाओं को उजागर करने में बाधा बन सकता है।

क्या है सरकार का तर्क
दूसरी ओर, सरकार का तर्क है कि यह नियम पहले से ही मौजूद था और इसे केवल मजबूत किया गया है। वे कहते हैं कि इसका उद्देश्य सरकारी कर्मचारियों को अनुशासित और व्यावसायिक रखना है। सरकार का मानना है कि अगर कोई कर्मचारी किसी नीति या निर्णय से असहमत है, तो उसे आंतरिक चैनलों के माध्यम से अपनी चिंताओं को व्यक्त करना चाहिए, न कि सार्वजनिक रूप से सरकार की आलोचना करनी चाहिए।

सोशल मीडिया की गतिविधियों पर पड़ेगा फर्क
इस नए नियम के लागू होने से सरकारी कर्मचारियों की सोशल मीडिया गतिविधियों पर भी प्रभाव पड़ेगा। अब वे बिना अनुमति के फेसबुक, ट्विटर, इंस्टाग्राम जैसे प्लेटफॉर्म पर सरकार से संबंधित मुद्दों पर अपने विचार नहीं रख सकेंगे। यह कदम इस बात को ध्यान में रखते हुए उठाया गया है कि सोशल मीडिया पर पोस्ट किए गए विचार तेजी से फैल सकते हैं और सरकार की छवि को नुकसान पहुंचा सकते हैं।

उल्लंघन पर होगी कार्रवाई
शासनादेश में यह भी स्पष्ट किया गया है कि इन नियमों का उल्लंघन करने वाले कर्मचारियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाएगी। यह चेतावनी इस बात को सुनिश्चित करने के लिए दी गई है कि सभी सरकारी कर्मचारी इन नियमों का पालन करें और अपने व्यवहार में सावधानी बरतें।

निष्कर्ष के तौर पर कहा जा सकता है कि यह नया शासनादेश उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा अपने कर्मचारियों के व्यवहार को नियंत्रित करने और सरकार की छवि को सुरक्षित रखने का एक प्रयास है। यह नियम सरकारी कर्मचारियों को उनकी जिम्मेदारियों और कर्तव्यों के प्रति जागरूक करता है, साथ ही उन्हें याद दिलाता है कि वे सरकार का प्रतिनिधित्व करते हैं। हालांकि इस नियम के लाभ और हानि दोनों हैं, इसका वास्तविक प्रभाव समय के साथ ही स्पष्ट होगा। यह देखना दिलचस्प होगा कि यह नियम सरकारी कर्मचारियों के काम करने के तरीके और सार्वजनिक संवाद को किस प्रकार प्रभावित करता है।

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