Shravasti
ऑथर Jyoti Karki

श्रावस्‍ती का रोचक इतिहास : आज के सहेत-महेत और प्राचीन श्रावस्‍ती का है सदियों पुराना दिलचस्‍प इतिहास

District Shravasti | District Shravasti Golden Budhha

Nov 18, 2023 13:44

श्रावस्‍ती जिले का इतिहास अपने आप में सांस्‍कृतिक, पौराणिक और प्राचीन गाथाएं समेटे हुए है। श्रावस्ती जिला प्राचीन भारत के कौशल राज्य की दूसरी राजधानी हुआ करता था। यहां महात्मा बुद्ध ने कई वर्ष तक वास किया था। वहीं भगवान राम के पुत्र लव से भी इसका नाता रहा है।

Short Highlights
  • आज का सहेत-महेत
  • बौद्ध और जैन धर्म का इतिहास
  • चीनी यात्रियों ने भी यहां की यात्रा की
  • कौशल जनपद का प्रमुख नगर था श्रावस्‍ती
Shravasti : देवीपाटन मंडल के श्रावस्‍ती जिले का इतिहास अपने आप में सांस्‍कृतिक, पौराणिक और प्राचीन गाथाएं समेटे हुए है। श्रावस्ती जिला प्राचीन भारत के कौशल राज्य की दूसरी राजधानी हुआ करता था। यहां महात्मा बुद्ध ने कई वर्ष तक वास किया था। वहीं भगवान राम के पुत्र लव से भी इसका नाता रहा है। यह जिला आधुनिक उत्तर प्रदेश राज्य में राप्ती नदी के किनारे स्थि‍त है, और नेपाल की सीमा के एकदम समीप है। यह बौद्ध धर्म के सबसे पवित्र तीर्थस्थलों में से एक माना जाता है। आइये जानते हैं इस जिले से जुड़े इतिहास को।

आज का सहेत-महेत
श्रावस्‍ती जिले को लेकर कई किंवदंतियां और कहानियां हैं। इस जिले का इतिहास भी अपने आप में गौरवशाली रहा है। गोंडा-बलरामपुर से 12 मील पश्चिम में आज का "श्रावस्ती" ही "सहेत-महेत" गांव है। सहेत-महेत ग्राम एक दूसरे से लगभग डेढ़ फर्लांग के अंतर पर स्थित हैं। प्राचीन काल में श्रावस्‍ती कौशल देश की दूसरी राजधानी थी। भगवान राम के पुत्र लव ने इसे अपनी राजधानी बनाया था। यहां अवधी भाषा बोली जाती है। श्रावस्ती बौद्ध व जैन दोनों का तीर्थ स्थान है। तथागत दीर्घ काल तक श्रावस्ती में रहे थे। यहां के श्रेष्ठी अनाथपिण्डिक ने असंख्य स्वर्ण मुद्राएं खर्च करके भगवान बुद्ध के लिए जेतवन बिहार बनवाया था। अब यहां बौद्ध धर्मशाला, मठ और मन्दिर हैं। यह बुद्धकालीन नगर था, जिसके भग्नावशेष (खंडहर) राप्ती नदी के दक्षिणी किनारे तक फैले हैं।

बौद्ध और जैन धर्म का इतिहास
यहां मिले ऐतिहासिक भग्नावशेषों की जांच सन्‌ 1862-63 में जनरल कनिंघम ने की और सन्‌ 1884-85 में इसकी पूर्ण खुदाई डॉ॰ डब्लू॰ हुई (Dr. W. Hoey) ने की थी। इन प्रचाीन अवशेषों में दो स्तूप हैं, जिनमें से बड़ा महेत तथा छोटा सहेत नाम से विख्यात है। इन स्तूपों के अतिरिक्त अनेक मंदिरों और भवनों के भग्नावशेष भी मिले हैं। खुदाई के दौरान अनेक उत्कीर्ण मूर्त्तियां और पक्की मिट्टी की मूर्त्तियां प्राप्त हुई हैं, जो नमूने के रूप में यूपी के संग्रहालय (लखनऊ) में रखी गई हैं। यहां संवत्‌ 1176 या 1276 (1119 या 1219 ई॰ पूर्व) का शिलालेख मिला है, जिससे पता चलता है कि बौद्ध धर्म इस काल में प्रचलित था। बौद्ध काल के साहित्य में श्रावस्‍ती का वर्णन अनेकानेक बार आया है और भगवान बुद्ध ने यहां के जेतवन में अनेक चातुर्मास व्यतीत किये थे। जैन धर्म के प्रवर्तक महावीर ने भी श्रावस्‍ती में विहार किया था।

चीनी यात्रियों ने भी यहां की यात्रा की
बताया जाता है कि चीनी यात्री फाहियान 5वीं सदी ई॰ में भारत आया था। उस समय श्रावस्‍ती में लगभग 200 परिवार रहते थे और 7वीं सदी में जब ह्वैन सांग भारत आया तो उस समय तक यह नगर लगभग नष्‍ट हो चुका था। सहेत-महेत पर अंकित लेख से यह निष्कर्ष निकाला गया कि 'बल' नामक भिक्षु ने इस मूर्त्ति को श्रावस्‍ती के विहार में स्थापित किया था। इस मूर्त्ति के लेख के आधार पर सहेत को जेतवन माना गया। कनिंघम का अनुमान था कि जिस स्थान से उपर्युक्त मूर्त्ति प्राप्त हुई वहां 'कोसंबकुटी विहार' था। इस कुटी के उत्तर में मिली कुटी को कनिंघम ने 'गंधकुटी' माना, जिसमें भगवान्‌ बुद्ध वर्षा के दौरान वास करते थे। महेत की अनेक बार खुदाई की गई और वहां से महत्त्वपूर्ण सामग्री प्राप्त हुई, जो उसे श्रावस्‍ती नगर सिद्ध करती है। श्रावस्‍ती नामांकित कई लेख सहेत-महेत के भग्नावशेषों से मिले हैं।

कौशल जनपद का प्रमुख नगर था श्रावस्‍ती
ऐतिहासिक जानकारी के अनुसार श्रावस्‍ती कौशल जनपद का एक प्रमुख नगर था। यहां का दूसरा प्रसिद्ध नगर अयोध्या था। श्रावस्ती नगर अचिरावती नदी के तट पर बसा था, जिसकी पहचान आधुनिक राप्ती नदी से की जाती है। इस सरिता के तट पर स्थित आज का सहेत-महेत प्राचीन श्रावस्‍ती प्राचीन का प्रतिनिधित्‍व करते हैं। इस नगर का यह नाम क्यों पड़ा, इस सम्बन्ध में कई तरह के वर्णन मिलते हैं। बौद्ध धर्म-ग्रन्थों के अनुसार इस समृद्ध नगर में दैनिक जीवन में काम आने वाली सभी छोटी-बड़ी चीज़ें बहुतायत में सुविधा से मिल जाती थीं। यहां मनुष्यों के उपभोग-परिभोग की सभी वस्तुएं सुलभ और आसान थीं। अत: इसे सावत्थी (सब्ब अत्थि) कहा जाता था, जो बाद में श्रावस्‍ती से जुड़ गया। 

सहेत-महेत में मिले अवशेष
इतिहास समेटे प्राचीन श्रावस्ती के अवशेष आधुनिक ‘सहेत’-‘महेत’ नामक स्थानों पर प्राप्त हुए हैं। यह श्रावस्‍ती नगर 27°51’ उत्तरी अक्षांश और 82°05’ पूर्वी देशांतर पर स्थिर था। ‘सहेत’ का समीकरण ‘जेतवन’ से तथा ‘महेत’ का प्राचीन 'श्रावस्ती नगर' से किया गया है। प्राचीन टीला एवं भग्नावशेष गोंडा एवं बहराइच ज़िलों की सीमा पर बिखरे पड़े हैं। जहां बलरामपुर स्टेशन से पहुंचा जा सकता है। बहराइच एवं बलरामपुर से इसकी दूरी क्रमश: 26 एवं 10 मील है। आजकल ‘सहेत’ का भाग बहराइच ज़िले में और ‘महेत’ गोंडा ज़िले में पड़ता है। बलरामपुर - बहराइच मार्ग पर सड़क से 800 फुट की दूरी पर ‘सहेत’ स्थित है, जबकि ‘महेत’ 1/3 मील की दूरी पर स्थित है। 

राप्‍ती के तट पर था श्रावस्‍ती
विंसेंट स्मिथ ने सर्वप्रथम श्रावस्ती का समीकरण चरदा से किया था, जो ‘सहेत-महेत’ से 40 मील उत्तर-पश्चिम में स्थित है। लेकिन जेतवन के उत्खनन से गोविंद चंद गहड़वाल के 1128 ई. के एक अभिलेख की प्राप्ति से इसका समीकरण ‘सहेत-महेत’ से निश्चित हो गया। प्राचीन श्रावस्ती नगर अचिरावती नदी (जिसका आधुनिक नाम राप्ती है) के तट पर स्थित था। यह नदी नगर के समीप ही बहती थी। बौद्ध युग में यह नदी नगर को घेर कर बहती थी। बौद्ध साहित्य में श्रावस्ती का वर्णन कौशल जनपद की राजधानी और राजगृह से दक्षिण-पश्चिम में कालक और अस्सक तक जाने वाले राजमार्ग पर सावत्थी नामक दो महत्त्वपूर्ण पड़ावों के रूप में मिलता है।
 

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