Shravasti
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श्रावस्‍ती का महापुराणों में है जिक्र : श्रावस्‍ती का महापुराणों में है जिक्र, वेद विद्या का भी रहा है महत्‍वपूर्ण केंद्र

District Shravasti | Sita Dwar Mandir Shravasti

Nov 18, 2023 14:05

जैन साहित्य में इसके लिए 'चंद्रपुरी' तथा 'चंद्रिकापुरी' नाम भी मिलते हैं। महाकाव्यों एवं पुराणों में श्रावस्ती को राम के पुत्र लव की राजधानी बताया गया है।

Short Highlights
  • श्रावस्‍ती का महापुराणों में है जिक्र, वेद विद्या का भी रहा है महत्‍वपूर्ण केंद्र
  • कालिदास अनुसार श्रावस्‍ती
  • महाकाव्‍यों में श्रावस्‍ती का वर्णन
Shravasti : इस जिले को लेकर कई किंवदंतियां हैं। मानते हैं कि पहले यह केवल एक धार्मिक स्थान था, किन्तु कालान्तर में इस नगर का समुत्कर्ष हुआ। जैन साहित्य में इसके लिए 'चंद्रपुरी' तथा 'चंद्रिकापुरी' नाम भी मिलते हैं। महाकाव्यों एवं पुराणों में श्रावस्ती को राम के पुत्र लव की राजधानी बताया गया है। वहीं श्रावस्‍ती से जुड़े ऐेसे ही इतिहास पर डालते हैं एक नजर। 

कालिदास अनुसार श्रावस्‍ती
कालिदास ने श्रावस्‍ती को ‘शरावती’ नाम से अभिहित किया है। उच्चारण सम्बन्धी समानता के आधार पर ‘श्रावस्ती’ और ‘शरावती’ दोनों एक ही प्रतीत होते हैं और एक निश्चित स्थान की तरफ इंगित भी करते हैं। जहां श्रावस्ती न केवल बौद्ध और जैन धर्मों का एक महत्त्वपूर्ण केन्द्र था, अपितु यह ब्राह्मण धर्म एवं वेद विद्या का भी एक महत्त्वपूर्ण केन्द्र रहा। यहां वैदिक शिक्षा केन्द्र के कुलपति के रूप में 'जानुस्सोणि' का नामोल्लेख मिलता है। कालान्तर में बुद्ध के जीवन-काल से सम्बन्धित तथा प्रमुख व्यापारिक मार्गों से जुड़े होने के कारण श्रावस्ती की भौतिक समृद्धि में वृद्धि हुई।

जेतवन स्तूप के अवशेष
प्राचीन ग्रन्थों के अनुसार कौशल का यह प्रधान नगर सर्वदा रमणीक, दर्शनीय, मनोरम और धनधान्य से सम्पन्न था। इसमें सभी तरह के उपकरण मौजूद थे। इसको देखने से लगता था, मानो देवपुरी अलकनन्दा ही साक्षात् धरातल पर उतर आई हों। नगर की सड़कें चौड़ी थीं और इन पर बड़ी सवारियां भली भांति आ सकती थीं। यहां रहने वाले नागरिक श्रृंगार-प्रेमी थे। वे हाथी, घोड़े और पालकी पर सवार होकर राजमार्गों पर निकला करते थे। इसमें राजकीय कोष्ठागार बने हुए थे, जिनमें घी, तेल और खाने-पीने की चीज़ें प्रभूत मात्रा में एकत्र कर ली जाती थीं।

महाकाव्‍यों में श्रावस्‍ती का वर्णन
महाकाव्यों में श्रावस्ती का विस्‍तृत वर्णन मिलता है। वायु पुराण और वाल्मीकि रामायण में वर्णन है कि रामचंद्र जी ने दक्षिण कौशल का अपने पुत्र कुश को और उत्तर कौशल का लव को राजा बनाया था। रामायण के अनुसार लव की राजधानी श्रावस्ती में थी। मधुपुरी में शत्रुघ्न को सूचना मिली कि लव के लिए श्रावस्ती नामक नगरी राम ने बसाई है और अयोध्या को जनहीन करके उन्होंने स्वर्ग जाने का विचार किया है। इस वर्णन से प्रतीत होता है कि श्रीराम के स्वर्गारोहण के पश्चात अयोध्या उजड़ गई थी और कौशल की नई राजधानी श्रावस्ती में बनाई गई थी। 

रामायण में दो कौशल नगरों की चर्चा
प्राचीन ग्रंथ रामायण में दो कौशल नगरों का उल्‍लेख मिलता है। जिनमें उत्तर कौशल जिसकी राजधानी श्रावस्ती थी और दक्षिण कौशल जिसकी राजधानी कुशावती थी। राम के शासन काल में इन दोनों राजधानियों का वर्णन मिलता है। राम ने अपने पुत्र लव को श्रावस्ती का और कुश को कुशावती का राजा बनाया था। वर्तमान समय में श्रावस्ती बलरामपुर से 10 मील, अयोध्या से 58 मील तथा राजगीर से 720 मील दूर स्थित है।

श्रावस्‍ती को लेकर ये मत भी हैं
मत्स्य, लिंग और कूर्म पुराणों में श्रावस्ती को गोंडा में स्थित बताया गया है। जिसका समीकरण कनिंघम ने आधुनिक गोंडा से किया है। एक मत के अनुसार श्रावस्ती की संस्थापना श्रावस्तक ने की थी। वायु पुराण के अनुसार श्रावस्तक के पिता का नाम अंध था। मत्स्य और ब्रह्म पुराणों में श्रावस्त या श्रावस्तक को युवनाश्व का पुत्र और अद्र का पौत्र कहा गया है। महाभारत में इनसे अलग सूचना मिलती है। इसमें श्रावस्तक को श्राव का पुत्र तथा युवनाश्व का पौत्र कहा गया है। कुछ पुराणों में श्रवस्तक या श्रावस्तक को युवनाश्व का पुत्र और अद्र का पौत्र कहा गया है। कालिदास ने रघुवंश में लव को 'शरावती' नामक नगरी का राजा बनाया जाना लिखा है। इस उल्लेख में 'शरावती', निश्चय रूप से श्रावस्ती का ही उच्चारण भेद है। श्रावस्ती की स्थापना पुराणों के अनुसार, 'श्रवस्त' नाम के सूर्यवंशी राजा ने की थी। लव ने यहां कौशल की नई राजधानी बनाई और श्रावस्ती धीरे-धीरे उत्तर कौशल की वैभवशाली नगरी बन गई।
 

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